साहित्य

आरती तिवारी की छह कविताएं

आरती तिवारी की छह कविताएं

पचमढ़ी में जन्मी और फिलहाल मंदसौर में निवासरत आरती तिवारी की कविताएं भयावह समय में उम्मीद और भरोसा जगाती है. अपना मोर्चा डॉट कॉम के लिए फिलहाल उनकी छह कविताएं यहां प्रस्तुत है. उम्मीद है पाठक उनकी कविताओं को पसन्द करेंगे.

( एक ) स्वागत

हमने देखा कल सपना

जो पलकों की चिलमन से उठाया

पपोटों की सूजन से दुलराया गया था

सपने में

नई सदी का स्वागत

इस विश्वास के साथ

नष्ट हो जायेगा वो कूड़ा करकट

जो सड़ाता रहा 

सभ्यता के,विराट खजाने

 

जीवाश्म बन चुकी

दफ़्न अनेक ज़िंदा देहों के

काले इतिहास को भुला

हम सबक लेंगे

 

स्वागत करेंगे उस सदी का

जिसमें नही रोयेगी नदी

जिस्म में समेटे कलुष

हमारे अपशिष्टों का

 

हम स्वागत करेंगे 

उस सदी का

जिसमे पहाड़ों की

कराहें न शामिल हों

सुराखों से छलनी ह्रदय पहाड़

नही गाते हों

उत्पीड़न का विदारक गान

 

जंगलों में नही उतरता हो

हरीतिमा विहीन मटमैला सा उजाला

हिरणियों की कुलांचे विहीन

खरगोशों की दौड़ रहित

डरावने दृश्य नही होते हों जहाँ

हाँ हम स्वागत करेंगे उस सदी का

 

जहाँ बच्चे जा रहे होंगे स्कूल

कोखों में अंगड़ाइयाँ लेंगी

नन्ही कोंपले

स्त्री मुस्कुराएगी सचमुच में

बिना किसी लाचारी के

हम स्वागत करेंगे

उस नई सदी का

                 

( दो )  उम्मीद

जैसे एक नदी गुज़र जाती है

एक शहर से

एक उम्मीद लिए

एक उम्मीद जगा कर

भविष्य की ओर बढ़ते क़दम

पर नहीं भूलते

पीछे मुड़कर देखना

 

जैसे जड़ें खींचती हैं

पेड़ को अपनी नमी से

एक सदी को जिलाये रखने के लिए

 

जैसे पृथ्वी खींचती है

अपने गुरुत्वाकर्षण से

हर अपनी तरफ आती चीज़ को

भले ही फेंकी गई हो

वो विपरीत दिशा में

वैसे ही जनवरी भी फ़रवरी में

क़दम रखते हुए बंधा जाती है

एक उम्मीद साल दर साल

 

( तीन ) रिश्ते

कैसे / किससे/क्यों

बनते/ मिटते/दम तोड़ते

वजह..........

निर्दयी अपेक्षाएं

कद्दावर की कमज़ोर से

सक्षम की अक्षम से

अमीर की गरीब से

प्रदर्शन.......

अपने वैभव का/ऐश्वर्य का

स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने का

दूसरों को नीचा दिखाने का

इस सब में सफल व्यक्ति

निरन्तर ऊगा रहे

एक विकृति जो करती जा रही

ध्वस्त संस्कृति को प्रतिपल

रिश्ते सिसक सिसक के

तोड़ रहे दम

जैसे मुरझा जाते हैं पौधे

जिन्हें नहीं मिलती

ज़मीन की पोषकता

हवा का माधुर्य

पानी की तृप्ति

सूर्य के प्रकाश का भोजन

मर जाते हैं

वैसे ही मरते जाते रिश्ते

धन के भोंडे प्रदर्शन और

अवसरवादिता से

 

( चार ) क़ुबूलनामा 

पिता की तस्वीर पर चढ़ी 

प्लास्टिक की माला के फूल उदास 

आँखों पर चढ़ा चश्मा शर्मिन्दा

माथे की सिलवटें अनमनी

 

भाई के कांपते होंठ

टूटती आवाज़ आँखों की लाली

भींच कर खोली जाती मुट्ठियाँ

खुद पर व्यक्त

आक्रोश की निशानियाँ

चेहरे पर उभरी लकीरें

खा रही हैं चुगलियाँ

 

माँ की तस्वीर के गिर्द

सिसकता सन्नाटा

गवाह है कुतरी गई ममता का

 

वे सिसकियाँ जो घोंट दी गईं

गले में ही 

विजातीय प्रेम की भ्रूण हत्या

पनपने से पहले

बांध कर बेमेल गठजोड़

विदा हुई कहीं एक और सुकुमारी 

 

साथ ले चली

प्रेम की कल्पना के गुनाह पर

बरसाये गए थप्पड़ लातें जूते

गालियों की बौछार

 

तुम्हारी पगड़ी उछलने से 

बचाने के लिए

सांसें रोके चली

 

( पांच ) अब नहीं डरतीं लड़कियाँ

 

उन्हें बताया गया

कि गुनाह है उनका हर क़दम

ज़माने के फ़रमान के खिलाफ

 

मगर लड़कियाँ गुज़र रही हैं शान से

कंधे पर टांगे बस्ते

उन्हीं सड़कों से होकर

जहाँ उन्हें कल 

सबक सिखा देने की बात कही गई थी

 

वे आज भी 

वहीं खड़े होकर बतिया रही हैं

जहाँ से कल धकियायी गईं थीं

बस्ते छीन कर

 

वे नही रोतीं अब

बुक्का फाड़ कर

कि आंसुओं के खारेपन के साथ

उनका डर भी बह गया

अब मीठे पानी की झीलों में

तैर रही हैं

उनके बचपन की बेलौस नावें

 

खौफ़नाक मंज़र के बदलने पर 

वे बदल गई हैं

खिलखिलाती कहकशाओं में

रख कर हाशिए पर

उन्होंने भुला दिए

बेबसी के किरदार

 

अब वे गाती हैं

आज़ादी के तराने

मुस्कुराती गुनगुनाती

बेख़ौफ़ बेबाक लड़कियाँ

 

लड़कियाँ अब नहीँ डरतीं।

 

 ( छह )  सबूत 

मौका-ए-वारदात से मिले कुछ सबूतों में

एक टूटा हुआ कड़ा

नींद की गोलियों की खाली शीशी

और एक पुरानी डायरी तो मिली

जिसमें सूखे हुए आंसुओं से

खरोंचे अक्षर चस्पा थे

 

पर कहीं नही मिले

उदास तराने, घुटी हुई सिसकियाँ

बेआवाज़ पुकार, खाली मुट्ठियाँ

भोगे जाने के बाद

ठुकराये जाने के बेहिसाब दर्द

 

आत्महत्या के लिए

पथराये सबूत ही काफी थे

 

पर जिलाये रखने को

नाकाफी थे,.फरेबी दिलासे

ढोंगी थपकियाँ और अंतहीन प्रतीक्षा

 

ये आत्महत्या काफ़ी नही थी क्या ?

सिखाने को सबक

 

कुछ और भी ज़िन्दगियाँ

कुछ घुटी घुटी सिसकियाँ

घासलेट की खाली बोतलें

मज़बूत रस्सियाँ,बिना मुंडेरों के कुए

और कितने और कब तक

सुरंगें या दीवारें

ज़िल्ले इलाही

 

परिचय- 

 

आरती तिवारी- जन्म-08 जनवरी पचमढ़ी

शिक्षा- बी एस सी एम ए बीएड

वर्तमान में मन्दसौर में निवासरत

 

प्रकाशन- अक्सर' निकट, कादम्बिनी, अक्षरपर्व ,कृतिओर, जनपथ ,कथादेश ,जनसत्ता ,यथावत, बया, इंद्रप्रस्थ भारती, दुनिया इन दिनों, कविता विहान ,आकंठ,आजकल,गंभीर समाचार, साक्षात्कार ,साहित्य सरस्वती  ,विश्वगाथा ,पंजाब टुडे ,समकालीन कविता खण्ड प्रथम ,विभोम स्वर, पुरवाई, शब्द संयोजन ,रविवार ,सबलोग, किस्सा कोताह, विपाशा ,बाखली ,माटी,दो आबा, कथाक्रम, नवयुग, नई दुनिया, दैनिक भास्कर ,राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, जनसंदेश ,सुबह सवेरे स्दिसृजन सरोकार त महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ कहानी आलेख संस्मरण यात्रा वृत्तान्त एवं अनुदित कविताएँ निरन्तर प्रकाशित

प्रसारण- आकाशवाणी इंदौर से एकल काव्य पाठ कहानी पाठ एवं काव्य गोष्ठियां वार्ताएं प्रसारित

सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन

मोबाइल-09407451563

 

 

ये भी पढ़ें...