साहित्य
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अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ डालो अरे ओ रोशनी वालों
अंधेरे में जो बैठे हैं, नज़र उन पर भी कुछ डालो
अरे ओ रोशनी वालों
बुरे हम हैं नहीं इतने, ज़रा देखो हमें भालो
अरे ओ रोशनी वालों ...
कफ़न से ओढ़ कर बैठे हैं, हम सपनों की लाशों को
जो किस्मत ने दिखाए, देखते हैं उन तमाशों को
हमें नफ़रत से मत देखो, ज़रा हम पर रहम खालो
अरे ओ रोशनी वालों ...
हमारे भी थे कुछ साथी, हमारे भी थे कुछ सपने
सभी वो राह में छूटे, वो सब रूठे जो थे अपने
जो रोते हैं कई दिन से, ज़रा उनको भी समझा लो
अरे ओ रोशनी वालों ...
गीतकार- प्रदीप