साहित्य

कुमार विकल की कविता-पहचान

कुमार विकल की कविता-पहचान

यह जो सड़क पर खून बह रहा है

इसे सूंघकर तो देखो
और पहचानने की कोशिश करो
यह हिंदू का है या मुसलमान का
किसी सिख का या ईसाई का

किसी बहन का है या भाई का.

सडक पर इधर-उधर पड़े पत्थर के बीच दबे
टिफिन कैरियर से जो रोटी की गंध आ रही है
वह किस जा‍ति की है ?

क्या तुम मुझे बता सकते हो
इन रक्त सने कपडों,फटे जूतों,टूटी साइकिलों
किताबों और खिलौनों की कौम क्या है.

क्या तुम बता सकते हो
स्कूल से कभी न लौटने वाली बच्ची की प्रतीक्षा में खड़ी
मां के आंसुओं का धर्म क्‍या है
और अस्पताल में दाखिल
जख़्मियों की चीख़ों का मर्म क्या है.

हां मैं बता सकता हूं यह ख़ून उस आदमी का है
जिसके टिफ़िन में बंद रोटी की गंध उस जाति की है
जो घर और दफ़्तर के बीच साइकिल चलाती है
और जिसके सपनों की उम्र फाइलों में बीत जाती है.

ये रक्त सने कपड़े उस आदमी के हैं
जिसके हाथ मिलों का कपडा बनाते हैं
कारखानों में जूते बनाते हैं,खेतों में बीज डालते हैं
पुस्तकें लिखते हैं,खिलौने बनाते हैं
और शहरों की अंधेरी सड़कों के लैंपपोस्ट जलाते हैं.

लैंपपोस्ट तो मैं भी जला सकता हूं लेकिन
स्कूल से कभी न लौटने वाली बच्ची की
मां के आंसुओं का धर्म नहीं बता सकता.
जैसे जख़्मियों के घावों पर
मरहम तो लगा सकता हूँ
लेकिन उनकी चीख़ों का मर्म नहीं बता सकता.

- कुमार विकल 

 

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