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दर्द की एक दवा और राजेश्वर सक्सेना

दर्द की एक दवा और राजेश्वर सक्सेना

राजकुमार सोनी

इसी महीने 10 और 11 दिसम्बर की बात है.

मैं छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी की ओर से देश के गहन अध्येता राजेश्वर सक्सेना पर आयोजित राजेश्वर सक्सेना एकाग्र कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए बिलासपुर गया हुआ था. इसमें कोई दो मत नहीं कि आलोचना, दर्शन, इतिहास, आधुनिकता-उत्तर आधुनिकता और मार्क्स की गहरी समझ रखने वाले राजेश्वर सक्सेना पर आयोजित कार्यक्रम कई मायनों में बेजोड़ था. अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त और उनकी टीम ने राजेश्वर सक्सेना की रचनाशीलता के विभिन्न पक्षों को रेखांकित करने के लिए देश के कई प्रमुख विद्वानों को आमंत्रित किया था. आयोजन में उनके रचनाकर्म पर गंभीर विमर्श देखने-सुनने को मिला. जब कहीं कोई एक सार्थक आयोजन होता है तो बहुत से लोग विचार के स्तर पर समृद्ध होते हैं. इस आयोजन की भी बड़ी सफलता यही थी कि बहुत से लोगों ने यह महसूस किया कि राजेश्वर सक्सेना को पढ़ा जाना क्यों जरूरी है.

जो लोग राजेश्वर सक्सेना को जानते हैं वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि वे आत्म प्रचार से दूर रहने वाले एक जबरदस्त साधक हैं. उनको देखकर, सुनकर और उनकी किताबों से गुजरकर लगने लगता है कि अभी कितना कुछ जानना-समझना बाकी है. हम कितने अज्ञानी है. हमने दुनिया को कितना थोड़ा जाना है?

 

राजेश्वर सक्सेना...86 साल के सबसे युवा प्रोफेसर है.

अब आप कहेंगे कि 86 साल का कोई बूढ़ा

भला युवा कैसे हो सकता है?

इस बात का जवाब कुछ ऐसा है कि जब 25-30 साल के युवा झड़ते हुए बालों के साथ बूढ़े हो सकते हैं तो हमारे समय का उत्साह से लबरेज एक बूढ़ा जवान क्यों नहीं हो सकता ?

अगर आपको यकीन ना हो तो कभी बिलासपुर जाइए. वहां नेहरू नगर के एलआईजी 52 में राजेश्वर सक्सेना रहते हैं. उनसे मिलिए. अपनी पसंद के किसी भी विषय पर बात करिए और फिर अपने दिमाग की बत्ती को जलते और गुल होते देखिए.

वे एक ऐसे प्रोफेसर हैं जो देश-दुनिया के किसी भी विषय पर तर्कसम्मत तरीके से आपसे बहस कर सकते हैं. उनसे मिलने के लिए देश-दुनिया के लेखक और विचारक बिलासपुर आते रहते हैं.जो लेखक और विचारक नहीं है वे लोग भी इस युवा प्रोफेसर से मिलते हैं और अपने दिमाग में जमी हुई काई को साफ कर लेते हैं.

दरअसल...प्रोफेसर राजेश्वर सक्सेना इसलिए भी युवा है क्योंकि वे अब भी कई-कई घंटों तक अध्ययनरत रहते हैं. सोशल मीडिया के इस भयावह दौर में जब हर इंसान ने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया है तब वे हिन्दू, टाइम्स आफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स सहित चार अंग्रेजी अखबारों को पढ़ते हैं.

नए जमाने के नौजवानों के साथ उनका संवाद निरन्तर जारी रहता है. ( उनके साथ सक्रिय रहने वाले युवाओं के बारे में आगे चर्चा होगी )  

उनके दो बच्चे हैं. एक बेटा प्रणव...कामकाज के सिलसिले में बैंगलोर रहता है. एक बेटी गुड्डी थीं जिसकी शादी हो गई है. कुछ साल पहले जब उनकी पत्नी गीता सक्सेना का निधन हुआ तो उनके पैर का एक हिस्सा भी अचानक खराब हो गया. उन्हें व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ा. बेटे प्रणव ने चाहा कि वे उनके साथ रहे, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया. बिलासपुर को यूं ही अलविदा नहीं कहने का एक बड़ा कारण यह भी था कि वहां उनकी जड़ें मौजूद थीं. यहीं रहकर उन्होंने जीवन का महत्वपूर्ण रचनात्मक हिस्सा गुजारा है. पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि बिलासपुर से नाता रखने की एक बड़ी वजह दो छोटे कमरों का वह मकान भी है जिसे उन्होंने अपनी गाढ़ी-बेशकीमती कमाई से मात्र 27 हजार रुपयों में खरीदा था. अब तो इस मकान के आसपास गगन को चुंबन देने वाली कई बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई है, लेकिन राजेश्वर सक्सेना का मकान ज्यो का त्यो है. मकान कई जगहों से झर रहा है. दीवालों से पपड़ी निकल रही है. सच तो यह भी है कि एक ईमानदार और प्रतिबद्ध लेखक के घर की दीवारों से पपड़ी नहीं तो क्या सोने और चांदी की ईंटें निकलेंगी ?  

बहरहाल व्हील चेयर में आ जाने के बाद राजेश्वर सक्सेना की पूरी देख-रेख मुदित मिश्रा और उनके लोक प्रबोधन टीम से जुड़े युवा साथी कर रहे हैं. मुदित के साथ आदित्य सोनी, उपासना, कृष्णा, शिवानी, वीनू, मोनिका, विवेक, शिवम, सत्यम, वीशू, युवराज, आदर्श, कान्हा, धनराज, योगेंद्र, गौरव, धीरज, निहाल और नीरज शामिल है.

बिलासपुर में रहने वाले इन युवाओं के साथ एक अच्छी बात यह है कि इनमें से कोई भी युवा सक्सेना सर के कालेज का विद्यार्थी नहीं है. लेकिन सभी युवा ज्ञान अर्जन को लेकर जिज्ञासु है. टीम के सारे सदस्य पढ़ना-लिखना और बोलना चाहते हैं, लेकिन वे यह भी चाहते हैं कि उनका ज्ञान थोथा साबित न हो. इन युवाओं का एक अच्छा पक्ष यह भी है कि इन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी, भाजपा की बीटीम आम आदमी पार्टी और हिन्दू-मुस्लिम के जरिए नफरत फैलानी वाली विभाजनकारी ताकतों से अब तक अपने आपको बचाकर रखा है. टीम से जुड़े सभी सदस्य संवेदनशील है इसलिए मानवीय मूल्यों के पक्षधर है.

टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य मुदित मिश्र कहते हैं- फिलहाल हमारी टीम राजेश्वर सक्सेना जी की देख-रेख कर रही है, लेकिन सर मतलब राजेश्वर दयाल सक्सेना  से पहले भी हमारी टीम के लोग बिलासपुर के शिवपुरी होटल में काम करने वाले बुजुर्ग दशरथ प्रसाद की सेवा किया करते थे. उनके निधन के बाद हम रंगकर्मी मनीष दत्त से जुड़े. वे भी अकेले रहते थे. मनीष दत्त जी के निधन के पश्चात हमें सर के अकेलेपन के बारे में पता चला. अब हमारे साथी बारी-बारी से तीन-तीन घंटे सर के साथ गुजारते हैं. एक साथी आदित्य सोनी हर रोज सुबह आठ बजे सर के घर उनकी दैनिक क्रिया को संभालने के लिए पहुंच जाता है. एक लड़की उपासना 24 घंटे उनके घर पर रहती है. जब वह गांव चली जाती है तो टीम का कोई न कोई सदस्य अपनी सेवा देने के लिए उपस्थित हो जाता है.टीम के सदस्यों ने राजेश्वर सक्सेना जी के घर एक सीसीटीवी कैमरा लगा रखा है. जो कोई भी उनसे मिलने आता है सब कैमरे में कैद होता है. उन्हें कोई जरूरत होती है तो वे घंटी बजा देते हैं. कोई उनकी कंघी करता है तो कोई उन्हें स्वेटर पहनाता है. कोई कोट तो कोई मफलर ठीक करता है. किसी प्रोफेसर  ( वह भी सेवानिवृत )  का युवाओं के साथ ऐसा पारस्परिक संबंध फिलहाल कहीं देखने में नजर नहीं आता है. कुछेक व्यावसायिक फिल्मों में ऐसा दृश्य मैंने अवश्य देखा है.

दर्द की एक दवा...

बिलासपुर जल संसाधन विभाग परिसर के प्रार्थना भवन में 11 दिसम्बर को एक सत्र का विषय था-संस्मरणों के आलोक में राजेश्वर सक्सेना. इस सत्र में लोक प्रबोधन टीम के आदित्य सोनी ने कहा- सर की रचनाओं से तो बहुत कुछ सीखा ही जा सकता है, लेकिन सर के व्यक्तित्व से भी खुद को बेहतर मनुष्य बनाया जा सकता है. सर न केवल अपने आस-पड़ोस की...बल्कि पूरी दुनिया की चिन्ता करते है. जहां कहीं भी अन्याय दिखता है... सर दुखी हो जाते है. एक बाल काटने वाला उनके घर आता है. सर उसे भी ज्यादा भुगतान अदा करते है. सर मानते हैं कि मेहनतकश मजदूरों को उनका वाजिब हक मिलना ही चाहिए. मैं तो कुछ भी नहीं था. एक बार सर ने मुझे कैमरा खरीदकर दिया और कहा- तुम बेहद कल्पनाशील हो. अपनी कल्पना को कैमरे में कैद करना सीखो, लेकिन अकेले कल्पनाशील होने से क्या होगा जब तक कल्पना को मूर्तरूप न मिले. मैं तुम्हें कैमरा नहीं... एक ऐसा यंत्र दे रहा हूं जो तुम्हारी कल्पना को व्यक्तिनिष्ठता के बजाय वस्तुनिष्ठता में परिवर्तित करेगा. सर का पूरा जोर रुपातंरण पर रहता है.आज मैं फोटोग्राफर बन गया हूं. एक बार मैंने देखा कि सर  देर रात तक जाग रहे थे. वे कुछ पढ़ रहे थे. मैं चुपके से उनके कमरे में गया और उनकी एक तस्वीर लेकर बाहर आ गया.  बाद में मैंने पूछा- सर... आप सोये नहीं. सर ने कहा- जब भी पैर में दर्द होता है तो मैं किताब पढ़ता हूं. किताब पढ़ने से दर्द का पता नहीं चलता.

पहली बार मैंने जाना कि दर्द की एक दवा का नाम किताब भी है.

 

 

 

 

 

 

      

 

 

 

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