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खैरागढ़ उपचुनाव...फिलहाल कांग्रेस का पलड़ा भारी

खैरागढ़ उपचुनाव...फिलहाल कांग्रेस का पलड़ा भारी

रायपुर. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ में इसी महीने 12 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के लिए जंग तेज हो गई है. प्रदेश में भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद दंतेवाड़ा, चित्रकोट और मरवाही के उपचुनाव में जीत का परचम फहरा चुकी कांग्रेस के हौसले फिलहाल बुलंद नजर आ रहे हैं तो दूसरी ओर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अंतिम लड़ाई लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह और उनकी चिर-परिचित टीम का जोर-शोर भी चुनाव में देखने को मिल रहा है.

वैसे तो खैरागढ़ की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है. यहां मौजूद इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की ख्याति पूरी दुनिया में फैली हुई है. इलाके की अपनी सांस्कृतिक महत्ता होने के बावजूद यह क्षेत्र कई तरह की समस्याओं से जूझता रहा है. इलाके के लोग लंबे समय से खैरागढ़ को जिला बनाने की मांग करते रहे हैं. उनकी इस मांग पर पहली बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह कहते हुए मुहर लगा दी है कि कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव जीत जाने के 24 घंटे के भीतर खैरागढ़ जिला बन जाएगा. मुख्यमंत्री की इस घोषणा के साथ ही बाजी ही पलट गई है. भाजपा के लोग भी अब दबे स्वर में यह मानने लगे हैं कि मुख्यमंत्री ने जिले की घोषणा के जरिए एक तरह से ब्रम्हास्त्र चला दिया है. हालांकि भाजपा यह प्रचार करने में भी जुटी है कि मुख्यमंत्री ने पहले भी बड़ी-बड़ी घोषणाएं की थीं, लेकिन एक भी घोषणा पूरी नहीं हो पाई है. जनता को उनके वादे पर यकीन नहीं करना चाहिए. एक तरह से भाजपा कांग्रेस की इस घोषणा का विरोध करते हुए ही दिख रही है. भाजपा के इस विरोध का परिणाम भी यह हुआ है कि कई गांव के रहवासियों ने पोस्टर-बैनर में यह लिखकर तान दिया है कि जो लोग भी खैरागढ़ को जिला बनाने का विरोध कर रहे हैं वे लोग कृपया हमारे गांव में प्रवेश ना करें.

जहां तक मुख्यमंत्री की घोषणा और वादे की बात है तो लोग जिला बन जाने की बात पर यकीन कर रहे हैं. इलाके के रहवासियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने अब तक जनता के सामने जो कुछ भी कहा है उसे समय रहते पूरा किया है. सरकार के गठन के तुरन्त बाद मुख्यमंत्री ने किसानों का कर्ज माफ करते हुए उन्हें बोनस दे दिया था. यह सिलसिला अब भी चल रहा है. अभी पिछले महीने ही किसानों के खाते में अच्छी-खासी धनराशि स्थानांतरित की गई है. इसके अलावा भाजपा के शासनकाल में जिन आदिवासियों की जमीन हथिया ली गई थीं उसे भी लौटा दिया गया है. खैरागढ़ का पूरा चुनाव अब प्रत्याशियों की मौजूदगी का ना होकर मुख्यमंत्री की ओर से किए गए वादे की धुरी बनकर रह गया है.

खैरागढ़ के  पत्रकार प्रशांत सहारे कहते हैं-इलाके के नागरिक अपनी छोटी-बड़ी सभी तरह की समस्याओं के निराकरण के लिए 40 किलोमीटर दूर राजनांदगांव आना-जाना करते थे, लेकिन जैसे ही खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा हुई है वैसे ही वे उत्साह से भर गए हैं. इलाके में गोधन न्याय योजना का लाभ भी किसानों को मिल रहा है तो स्वाभाविक ढंग से पूरा चुनाव कांग्रेस की तरफ टर्न हो गया है.यशोदा वर्मा के चुनाव जीतने से कम से कम खैरागढ़ जिला तो बन ही जाएगा. अंबागढ़ चौकी के पत्रकार हरदीप छाबड़ा भी मानते हैं कि खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है. छाबड़ा कहते हैं- वर्ष 2018 के चुनाव में जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी देवव्रत सिंह मात्र 870 वोट से ही भाजपा के प्रत्याशी कोमल जंघेल से जीत हासिल कर पाए थे. पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थीं. साल्हेवारा का वह क्षेत्र जहां 52 बूथ हैं वहां पिछली बार भाजपा मात्र 12 में ही आगे थीं, शेष पर देवव्रत सिंह ने बढ़त बनाई थीं, लेकिन इस बार लगता है कि साल्हेवारा में कांग्रेस मजबूत होकर उभरेगी. गंडई के नागरिक रोहित देवांगन का कहना है कि इलाके में लोधी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है. दोनों प्रमुख पार्टियों ने लोधी समाज के प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा है. कांग्रेस की प्रत्याशी यशोदा वर्मा को भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल अच्छी टक्कर दे रहे हैं. कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि दोनों में से कौन जीत हासिल कर पाएगा ? रोहित आगे कहते हैं- भाजपा के कार्यकर्ताओं की जबरदस्त मेहनत के बावजूद गांव-गांव में यह संदेश फैल गया है कि अगर कोमल जंघेल जीत भी गए तो 18 महीने के विधायक बनकर क्षेत्र के विकास के लिए भला क्या कर पाएंगे ? गंडई के ही रवि जंघेल का कहना है कि कोमल जंघेल पहले भी दो बार चुनाव हार चुके हैं. वे जब विधायक थे तब भी उन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए कोई महत्वपूर्ण काम नहीं किया था. अब तीसरी बार उन्हें इसलिए मैदान में उतारा गया है ताकि 2023 के चुनाव से उन्हें तीन बार का हारा हुआ प्रत्याशी बताकर बाहर किया जा सकें. रवि कहते हैं- देखिएगा अगली बार भाजपा के बड़े नेता खैरागढ़ से किसी के बेटे, भतीजे-भांजे या राजपरिवार के सदस्य पर दांव लगाएंगे. बाजार अतरिया के सुरेश वर्मा का कहना है कि कोमल जंघेल को लेकर यह अंडर  कंरट भी चल रहा है कि चूंकि वे दो बार चुनाव हार चुके हैं इसलिए इस बार उन्हें चुनाव जीता देना चाहिए.

खैरागढ़ में वर्तमान में कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 11 हजार 540 हैं, जिसमें से एक लाख छह हजार 290 पुरूष मतदाता एवं एक लाख पांच हजार 250 महिला मतदाता है. इन मतदाताओं में कितने लोग अपने मतदान का प्रयोग करेंगे यह फिलहाल साफ नहीं है. चुनाव में कुल दस प्रत्याशी मैदान में हैं. पिछली बार जोगी कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की थीं लेकिन इस मर्तबा जोगी कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में अवश्य है,किंतु उसकी चर्चा नहीं के बराबर है. कुछ प्रत्याशी वोटकांटू भी हैं. सीधे तौर पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है. अगर यह चुनाव कांग्रेस के पक्ष में जाता है यह 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेसजनों में दोगुने उर्जा का संचार करेगा. भाजपा की जोर आजमाइश भी इसलिए चल रही है कि उसे अपने बुझे और थके हुए कार्यकर्ताओं को बुस्टअप करना है. चुनाव में जीत हासिल करने के लिए हर रोज नए-नए पैंतरे आजमाए जा रहे हैं. बीजेपी के लगभग 40 से ज्यादा आला नेता खैरागढ़ में प्रचार कर रहे हैं जबकि अन्य नेताओं के साथ मुख्य रुप से प्रचार-प्रसार की बागडोर भूपेश बघेल ने संभाल रखी हैं. उनकी ठेठ छत्तीसगढ़ी को सुनने के लिए लोग एकत्रित हो रहे हैं. उनकी हर सभा में कोई न कोई यह कहते हुए मिल ही जाता है- झन चिंता कर...अरे...कका जिंदा हे.

राजकुमार सोनी

9826895207

 

 

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