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... तो क्या झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं को मौत के घाट उतारने में पुलिस अफसर आरएन दास शामिल थे ?

रायपुर.  छत्तीसगढ़ के लोग मंतूराम पवार के नाम से भली-भांति वाकिफ है. मंतूराम वही है जो कभी कांग्रेस से जुड़े थे ( अब भाजपा में हैं. ) और जिन्होंने धुर माओवाद प्रभावित अंतागढ़ में होने वाले उपचुनाव के दौरान एकायक अपना नाम वापस लेकर सबको चौका दिया था. तब कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल थे. वे इस मामले को लेकर आरोप लगाते रहे कि मंतूराम की खरीद-फरोख्त हुई है, लेकिन तमाम तरह के दस्तावेजी सबूतों के बावजूद कहीं सुनवाई नहीं हुई. यहां तक चुनाव आयोग के सामने धरना-प्रदर्शन हुआ मगर आयोग हाथ में हाथ धरे बैठा रहा. मंतूराम जब भाजपा में चले गए तब भी किसी ने नहीं माना कि खरीद-फरोख्त का खेल हुआ है. शनिवार को मंतूराम ने अदालत के सामने यह मान लिया है कि उन्हें खरीदने के लिए कुल साढ़े सात करोड़ की डील हुई थी. मंतूराम की बात पर यकीने करें तो यह डील मंत्री राजेश मूणत के बंगले पर हुई थीं और खुद मूणत ने अपने हाथ से फिरोज सिद्दिकी और अमीन मेनन को सात करोड़ दिए थे. ( छत्तीसगढ़ के स्थानीय बाशिंदों को यह अवश्य सोचना चाहिए कि जब भाजपा की सरकार थी तब एक-एक मंत्री करोड़ों रुपए अपने बंगले में क्यों रखता था. ) बहरहाल एक ताजा घटनाक्रम में मंतूराम ने धारा 164 के तहत बयान देकर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, उनके दामाद पुनीत गुप्ता, अजीत जोगी, उनके पुत्र अमित जोगी को आरोपों के कटघरे में खड़ा कर दिया है. मंतू ने अपने बयान में  जो सबसे चौकाने वाली बात कहीं है वह यह है कि नाम वापसी के खेल में कांकेर के एसपी की भी भूमिका थी. मंतूराम की नाम वापसी का घटनाक्रम वर्ष 2014 से जुड़ा है, तब कांकेर एसपी आरएन दास थे. मंतूराम का कहना है- मुझे कांकेर के पुलिस अधीक्षक का फोन आया था. पुलिस अधीक्षक ने कहा- मंतूराम जो कहा जा रहा है वह करो... नहीं तो तुम्हे झीरम घाटी का परिणाम भुगतना होगा. उल्लेखनीय है कि 25 मई 2013 को बस्तर के झीरमघाट में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को माओवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था. मंतूराम ने जो कुछ अपने बयान में कहा है अगर उस पर यकीन करें तो यह सवाल स्वाभाविक तौर पर उठता है कि क्या कांग्रेस नेताओं की मौत भाजपा के नेताओं के द्वारा रची गई एक गहरी साजिश थी और उसमें पुलिस अफसर आरएन दास भी शामिल थे?

विवादों से नाता रहा है दास का

आरएन दास इन दिनों पुलिस मुख्यालय में पदस्थ है,लेकिन उनकी गिनती कभी भी संवेदनशील और काबिल पुलिस अफसर के तौर पर नहीं होती रही. उनका नाम हमेशा विवादों से जुड़ा रहा और उनकी पहचान विवादों से नाता रखने वाले पुलिस अफसर शिवराम कल्लूरी के शार्गिद के तौर पर ही बनी रही. यहां यह बताना लाजिमी है कि फरवरी 2017 में आरएन दास ने अधिवक्ता शालिनी गेरा को अपने मोबाइल की बजाय एक संदिग्ध के नंबर से फोन करके धमकाया था. दास ने शालिनी को माओवादियों के साथ संबंध रखने का आरोप लगाते हुए थाने बुलाया. जब शालिनी और उनके साथियों ने जब नंबर की पड़ताल की तो वह अग्नि संस्था के एक सदस्य फारूख़ अली का निकला था. शालिनी गेरा ने इस बात की शिकायत मानवाधिकार में भी की थी. इसके अलावा बस्तर में निर्दोष आदिवासियों और बच्चों को मौत के घाट उतारने के मामले में भी आरएन दास की भूमिका को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं.

पहली बार आया डाक्टर रमन सिंह का नाम

अंतागढ़ टेपकांड में खरीद-फरोख्त किए जाने को लेकर अब तक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी,अमित जोगी, पुनीत गुप्ता का नाम ही सामने आता रहा है, लेकिन पहली बार मंतूराम ने पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को भी निशाना बनाया है. धारा 164 के तहत दिए गए अपने बयान में मंतूराम ने कहा है कि जब मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था तब फिरोज सिद्दिकी और अमीन मेनन ने कहा था कि अगर तुम यह काम नहीं करोगे तो रमन सिंह तुम्हारे पूरे खानदान को नहीं छोडेंगे. झीरमघाटी की तरह ही तुम्हें पूरे परिवार के साथ मसलकर फेंक दिया जाएगा. मैं जिस क्षेत्र से आता हूं वहां यह बात चर्चित एवं स्पष्ट थीं कि झीरम घाटी हत्याकांड में बड़े नेताओं का हाथ है. मंतूराम ने अपने बयान में यह भी कहा है कि जब रमन सिंह अपनी पत्नी के इलाज के लिए विदेश गए थे तब फिरोज सिद्दिकी ( फिरोज इन दिनों जेल में हैं. )  ने किसी के फोन से उनसे बात करवाई थीं. फोन पर बातचीत के दौरान रमन सिंह ने कहा था वे लोग जो कह रहे हैं वो तुमको करना है और मैं तुमको आर्शीवाद दूंगा. मंतूराम ने बयान में साफ किया कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, अजीत जोगी और अमित जोगी मिलकर काम करते थे. यह बात उन्हें फिरोज सिद्दिकी और अमीन मेनन ने बताई थी. मंतूराम ने शपथपूर्वक दिए गए अपने बयान में यह भी कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने उसका राजनीतिक भविष्य बनाने और लालबत्ती दिलाने का आश्वासन दिया था. अंतागढ़ चुनाव को प्रभावित करने में रमन सिंह, अजीत जोगी, अमित जोगी शामिल थे. जबरन ही उनका नाम ( मंतूराम ) खराब किया गया.

 

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प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाः गुणवत्ता में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर

रायपुर. भूपेश सरकार के सबसे काबिल मंत्री टीएस सिंहदेव ने एक बार फिर बाजी मार ली है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गुणवत्ता को लेकर छत्तीसगढ़ ने पहला स्थान हासिल कर लिया है. फिलहाल टीएस सिंहदेव पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री है.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गुणवत्ता का सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है. इसके लिए सड़कों की तीन स्तरों पर जांच की जाती है. प्रथम स्तर पर विभागीय अभियंताओं के द्वारा जांच की जाती है. दूसरे स्तर पर राज्य के गुणवत्ता समीक्षकों के द्वारा और अंत में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से नियुक्त किए गए गुणवत्ता निरीक्षकों के द्वारा. बहरहाल वर्ष 2019 में राष्ट्रीय स्तर के गुणवत्ता समीक्षकों ने कुल 204 सड़कों का निरीक्षण किया था. निरीक्षण में 95.59 फीसदी कार्य संतोषजनक पाया गया था. निरीक्षकों ने इस पड़ताल के आधार पर छत्तीसगढ़ को प्रथम स्थान प्रदान किया है जबकि 45 सड़कों के निरीक्षण के आधार पर कर्नाटक दूसरे स्थान पर है. यहां यह बताना लाजिमी है कि वर्ष 2017-18 में जब भाजपा की सरकार थीं और उसके मंत्री अजय चंद्राकर थे तब राज्य को गुणवत्ता में तृतीय स्थान हासिल हुआ था.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी आलोक कटियार ने बताया कि राष्ट्रीय गुणवत्ता समीक्षकों के द्वारा सड़कों के निरीक्षण का कार्य पूर्ण पारदर्शिता के साथ किया जाता है. इसके लिए बकायदा समाचार पत्रों में जानकारी दी जाती है. यहां तक गुणवत्ता के समीक्षकों के नाम और मोबाइल नंबर की जानकारी भी दी जाती है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 से लेकर जून 2019 तक छत्तीसगढ़ में सात किलोमीटर प्रतिदिन के हिसाब से कुल 2414 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण सफलतापूर्वक कर लिया गया है. पिछले पन्द्रह सालों में किसी भी एक छमाही में इतनी लंबी सड़कों का निर्माण प्रदेश में पहले कभी नहीं हुआ. छत्तीसगढ़ के घोर माओवादी इलाकों में भी वृहत स्तर पर सड़कों का निर्माण कर लेना एक बड़ी उपलब्धि है. श्री कटियार ने इस उपलब्धि का श्रेय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव एवं अपर मुख्य सचिव आरपी मंडल के अलावा ग्रामीण विकास अभिकरण के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को दिया है. कटियार ने बताया कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के प्रथम चरण के अंतर्गत सभी कार्य पूर्ण हो चुके हैं. इसके बाद ही दूसरे चरण की पात्रता दी गई थीं. अब तीसरे चरण के लिए भी राज्य को अच्छा-खासा पैकेज मिलेगा.

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एक्सप्रेस- वे की सड़क धंसी... अनिल राय पर भी उठे सवाल

रायपुर. छोटी लाइन को हटाकर रेलवे स्टेशन से शदाणी दरबार तक बनाए गए 12 किमी फोरलेन एक्सप्रेस-वे की सड़क का एक हिस्सा गुरुवार को धसक गया. इस सड़क के धंसने से एक कार पलट गई और महावीर नगर निवासी अभिनव शुक्ला-दिव्या राज शुक्ला को गंभीर चोटें आई. सड़क के धसकने के साथ भाजपा बचाव की मुद्रा में आ खड़ी हुई तो कांग्रेस ने भाजपा शासनकाल की कमीशन खोरी को जिम्मेदार माना है. प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने एक्सप्रेस वे हुए हादसे के लिए पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत और पूर्व विधायक श्रीचंद सुन्दरानी को जिम्मेदार ठहराया है. जबकि कांग्रेस के संयुक्त सचिव नरेश गड़पाल ने सीधे तौर पर पीडब्लूडी विभाग के अनिल राय पर निशाना साधा है.

नरेश गड़पाल का कहना है कि 22 अप्रैल 2017 में इस सड़क के निर्माण कार्य का ठेका आयरन ट्रेंगल लिमिटेड को कुल 258.11 करोड़ में दिया गया था. धीरे-धीरे यह राशि और अधिक हो गई. गड़पाल ने कहा कि जिस रोज से यह सड़क बन रही थीं उसी रोज से इसकी गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने लगे थे और भ्रष्टाचार की बू आने लगी थीं.कई तरह की शिकायतों के बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई और अततः इस साल की पहली झमाझम बारिश में सड़क के कई हिस्से धसक गए. उन्होंने कहा कि पूर्व पीडब्लू मंत्री राजेश मूणत तो इसके जिम्मेदार है ही, लेकिन योजना को अंजाम देने वाले अनिल राय भी इसके मुख्य कर्ताधर्ता है. गड़पाल ने कहा कि अनिल राय वन विभाग के अफसर है जिन्हें सड़क निर्माण और उसकी गुणवत्ता का अनुभव भी नहीं है बावजूद इसके वे लंबे समय से पीडब्लूडी विभाग में जमे हुए हैं. 

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि एक्सप्रेस-वे के उदघाटन के लिए भाजपा ने प्रदर्शन किया था जो घटिया निर्माणकर्ता ठेकेदार के हित को समर्पित था. भाजपा को राजधानी में रहने वाली जनता की सुरक्षा नही बल्कि एक्सप्रेस वे का निर्माण करने वाले ठेकेदार की बिल की चिंता थी.इधर सड़क के धसक जाने के बाद लोक निर्माण मंत्री ताम्रध्वज साहू ने जांच के निर्देश तो दे दिए हैं, अब यह देखना बाकी है कि इस जांच में अनिल राय पर कोई कार्रवाई होती भी है या नहीं ? वैसे पिछले कुछ समय से राजनीति और प्रशासनिक  गलियारों में एक सवाल लगातार उठ रहा है कि मंत्रालय में पदस्थ रहे बहुत से वन अफसरों की उनके मूल विभाग में वापसी हो गई है तो फिर अनिल राय को वापस क्यों नहीं भेजा जा रहा है ? आखिर अनिल राय को किसका संरक्षण हासिल है ? 

 

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खुशखबरीः प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण के लिए छत्तीसगढ़ को मिल सकता है बड़ा पैकेज

रायपुर. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के क्रियान्वयन में देश में प्रथम स्थान हासिल करने के बाद छत्तीसगढ़ को तीसरे चरण के लिए केंद्र से एक बड़ा पैकेज मिल जाने की उम्मीद है. यह पैकेज तीन से पांच हजार करोड़ या उससे अधिक का हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो निश्चित रुप से इसका श्रेय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके सबसे काबिल मंत्री टीएस सिंहदेव के खाते में जाना तय है.

गौरतलब है कि इसी साल सात जून को केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग के सचिव की अध्यक्षता में प्रोजेक्ट रिव्यू कमेटी की बैठक हुई थी.इस बैठक में यह तथ्य सामने आया कि सभी राज्यों की अपेक्षा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निर्मित होने वाली सड़कों की प्रगति छत्तीसगढ़ में सबसे बेहतर है. प्रदेश में 2248.71 किमी सड़कों का निर्माण किया जाना था और छत्तीसगढ़ ने तय समय में गुणवत्ता के साथ 2013.65 किमी सड़कों का निर्माण कर लिया था. इतना ही नहीं पीएमजीएसवाय-2 के तहत छत्तीसगढ़ ने यातायात के हिसाब से अधिक घनत्व रखने वाली सड़कों में पुल-पुलियों के साथ डामरीकरण का कार्य भी सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया था.

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आलोक कटियार ने बताया कि तीसरे चरण में पूरे देश कुल 80 हजार किलोमीटर सड़कें बनेगी. इसके तहत छत्तीसगढ़ में भी ग्रामीण बसाहटों को सुगम बनाने के लिए सड़कों का निर्माण होगा. कटियार ने बताया है कि तीसरे चरण के लिए फिलहाल ड्राफ्ट गाइड लाइन जारी हुआ है. सभी जिलों में डीआरआरपी ( डायरेक्ट रुलर रोड़ प्लान ) तैयार कर लिया गया है. अब यूनिटी वैल्यू के आधार पर जिला स्तर पर प्राथमिकता का ध्यान रखते हुए सड़कों के चयन का काम चल रहा है. उन्होंने बताया कि डीपीआर कंसलटेंट की नियुक्ति के लिए निविदा आमंत्रण की कार्यवाही पूर्ण की जा चुकी है. मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने कहा है कि फेस-2 को लेकर केंद्र से मिली सराहना के बाद फेस-3 का काम भी शानदार ढंग से संपादित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि विभागीय मंत्री टीएस सिंहदेव की अगुवाई में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के समस्त कर्मचारी एवं अधिकारी प्रतिबद्धता के साथ कार्यरत है इसलिए यह तय है कि तीसरे चरण का काम भी पूरी गुणवत्ता के साथ निर्धारित समय में पूर्ण कर लिया जाएगा.

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मुकेश गुप्ता प्रकरण में पहली गिरफ्तारी...मचा हड़कंप

रायपुर. विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण यानी साडा के भंग होने के बाद अवैध ढंग से भूखंड हासिल करने के मामले में पुलिस को पहली सफलता मिल गई है. पुलिस ने देर रात आरके जैन नाम के एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. आरके जैन इन दिनों नगर निगम दुर्ग में पदस्थ है.इस मामले में मुकेश गुप्ता के अलावा चार अन्य आरोपी बनाए गए थे. एक आरोपी व्यास नारायण शुक्ला की मौत हो चुकी है. जबकि तीन फरार चल रहे थे. एक आरोपी जैन की गिरफ्तारी के बाद मुकेश गुप्ता की गिरफ्तारी तय मानी जा रही है. अन्य आरोपी एसबी सिंह की गिरफ्तारी के लिए टीम रवाना हो चुकी है.
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महिला वन अफसर कहती है- ज्यादा ची-चपड़ की तो छेड़खानी में अंदर करवा दूंगी

रायपुर. छत्तीसगढ़ में पदस्थ महिला अफसरों में अपने मातहतों से गाली-गलौच के साथ पेश आने की प्रवृति बढ़ती जा रही है. महिला पुलिस अफसरों के द्वारा गाली-गलौच किया जाना तो फैशन मान लिया गया है. इधर महिला कलक्टर और महिला वन अफसर भी इस फैशन परेड़ का हिस्सा बन चुकी है. प्रदेश की दो महिला कलक्टर ( कोरबा नहीं  ) को लेकर यह बात आम है कि उनके मुंह से जरा-जरा सी बात पर फूल झरते हैं. खैर...गाली पर केवल पुरुषों का अधिकार नहीं है, लेकिन अभी गाली-गलौच को कार्य संस्कृति का हिस्सा नहीं माना गया है इसलिए चाहे पुरुष हो या महिला...दोनों की अशिष्टता को लेकर शिकायतें होती रहती है. कुछ दिनों पहले जगदलपुर के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पदस्थ सहायक वन संरक्षक दिव्या गौतम का ऑडियो वायरल हुआ था. इस ऑडियो में महिला अफसर अपने घरेलू नौकरों से गाली-गुफ्तार कर रही थीं. गालियां इतनी भद्दी थीं कि सुनने वाला शर्मसार हो जाय. अभी हाल के दिनों में एक बार फिर उसी सहायक वन संरक्षक को लेकर शिकायत हुई है. कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र भेजकर दिव्या गौतम को बस्तर से बाहर भेजने की गुहार लगाई है.

दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को कहना है कि मुख्य वन संरक्षक श्रीनिवास राव जब तक जगदलपुर में पदस्थ थे तब तक उन्होंने दिव्या गौतम को संरक्षण दे रखा था. उनके हटने के बाद दिव्या गौतम को डीएफओ का प्रभार दे दिया गया. हालांकि अब दिव्या गौतम सहायक वन संरक्षक है, लेकिन उनके व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया है.

राधेश्याम बघेल, लक्ष्मी, देवेंद्र सिहं, दशमु, बुचा, कोयतू सहित अनेक कर्मचारियों ने हस्ताक्षरयुक्त शिकायत में कहा कि दिव्या गौतम ने अब तक कुल 17 लोगों को नौकरी से निकाल दिया है. महिला अफसर साफ तौर पर कहती है कि अगर किसी ने चीं-चपड़ की तो छेड़खानी का आरोप लगाकर अंदर करवा दूंगी. कर्मचारियों ने बताया कि पिछले दिनों इस महिला अफसर ने अपने पति के साथ मिलकर एक चौकीदार को बेरहमी से पीटा था जिसकी शिकायत बोधघाट थाने में दर्ज हुई थी, लेकिन पुलिसवालों ने पैसे खाकर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की. कर्मचारियों ने महिला के जाति प्रमाण पत्र को लेकर भी सवाल उठाए. कर्मचारियों ने कहा कि राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने उनका जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया है फिर वह पद पर जमी हुई है.

अशोक सोनवानी की साजिश

इधर अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को दिव्या गौतम ने निराधार बताया है. उनका कहना है कि जिले में अशोक सोनवानी नाम का एक रेंजर है जो उनके खिलाफ साजिश रचते रहता है. इसी रेंजर ने इधर-उधर से शिकायतें भिजवाई है. दिव्या गौतम ने कहा कि उसे अशोक सोनवानी उल्टे-सीधे गैर-कानूनी कार्य करने के लिए कहता रहा है. उनके द्वारा इंकार किए जाने की स्थिति में सोनवानी उसके पीछे लग गया है. दिव्या गौतम ने बताया कि जो शिकायतें अभी भेजी गई है उसकी जांच एक साल पहले ही हो चुकी है. सारी शिकायतें निराधार पाई गई थीं. यहां तक अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग में भी प्रमाण पत्र की जांच हो चुकी है. वहां से प्रकरण का निराकरण हो चुका है. अभी तबादलों का सीजन चल रहा है. सारी शिकायतें इसलिए करवाई जा रही है ताकि मेरा तबादला किसी और जगह किया जा सकें. रेंजर अशोक सोनवानी पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है. मेरे नहीं रहने से उसकी मर्जी चलने लगेगी. वायरल ऑडियो के संबंध में दिव्या गौतम ने कहा कि यह ऑडियो भी मैन्युप्लेट करके तैयार किया गया था ताकि मेरी छवि को नुकसान पहुंचाया जा सकें.

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संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के उपसंचालक जेआर भगत के खिलाफ शिकायत लेकर पत्रकार पहुंचा थाने

रायपुर. छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के उपसंचालक जेआर भगत के खिलाफ एक पत्रकार राहुल गिरि गोस्वामी ने सिविल लाइन थाने में एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायत दी है. पत्रकार का कहना है कि उसके द्वारा समय-समय पर संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में चल रही गड़बड़ियों को लेकर खबरें प्रकाशित की गई थी. खबरों का प्रकाशन पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर किया गया था, लेकिन वहां पदस्थ उपसंचालक जेआर भगत ने खबरों के प्रकाशन के बाद उसके खिलाफ दबाव बनाने के लिए अनुसूचित जाति-जनजाति थाने में एक झूठी शिकायत की है.

अपना मोर्चा डॉट कॉम से चर्चा में राहुल गिरि गोस्वामी ने बताया कि उपसंचालक भगत ने गड़बड़ियों से संबंधित समाचार के प्रकाशन के बाद पत्रकार के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करने के लिए विभागीय अनुमति ली है या नहीं यह जांच का विषय है, लेकिन प्रथम दृष्टया तो यही प्रतीत होता है कि उपसंचालक भगत उसे जातिगत मामले में उलझाना चाहते हैं. राहुल ने बताया कि उसकी ओर से इंडिपेंडेंड डॉट कॉम नाम के एक पोर्टल में खबरें दी गई थी और इसी महीने 11 जुलाई 2019 को अनादि टीवी में एक खबर प्रसारित की गई थी जिसके बाद भगत खफा चल रहे थे. उन्होंने उसे देख लेने की धमकी भी दी थी. राहुल ने कहा कि भगत की ओर से की जा रही गड़बड़ियों को लेकर कई मर्तबा उच्चाधिकारियों से शिकायतें हुई है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई फलस्वरुप हौसले बुलंद है. राहुल ने कहा कि भगत ने यह सब इसलिए किया ताकि दबाव के बाद दोबारा किसी भी तरह की खबरों का प्रकाशन न हो पाय. राहुल ने शिकायत की प्रति मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और प्रेस क्लब अध्यक्ष रायपुर को भी भेजी है. राहुल ने कहा कि वह अन्याय के खिलाफ अपना अभियान जारी रखेगा. इस बारे में उपसंचालक जेआर भगत से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन उनका मोबाइल आउट ऑफ रेंज बताता रहा.

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पत्रकारों की अधिमान्यता को लेकर भूपेश सरकार का शानदार फैसला

रायपुर. प्रदेश में कार्यरत पत्रकारों की अधिमान्यता को लेकर भूपेश बघेल की सरकार ने शानदार फैसला लिया है. इसके तहत अब प्रिंट मीडिया के अलावा टीवी न्यूज चैनल, न्यूज पोर्टल, समाचार पत्रिकाओं से जुड़े संवाददाताओं, छायाकार और कैमरामैन के  साथ-साथ विकासखंड में कार्यरत पत्रकारों को अधिमान्यता प्रदान करने का फैसला किया गया है. सरकार के इस फैसले पर पत्रकारों के एक बड़े वर्ग ने खुशी जाहिर की है. जल्द ही पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करेगा.

प्रदेश में पत्रकारों की अधिमान्यता का मसला हमेशा से विवादित रहा है. पिछली सरकार में अमूमन सभी बड़े अखबार के प्रतिनिधि यहां तक मुद्रक और स्वामी भी अधिमान्यता हासिल करने में सफल हो जाते थे. प्रदेश के वे पत्रकार जो संसाधनों के अभाव में भी पत्रकारिता के धर्म और कर्म का पालन करते थे वे वंचित थे, लेकिन अब छत्तीसगढ़ राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशन के साथ ही नए नियम प्रभावशील हो गए हैं. नए नियमों के लिए पिछले कुछ समय से जुटे रहे आयुक्त-सह-संचालक जनसंपर्क तारन प्रकाश सिन्हा ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप अधिमान्यता नियमों को व्यापक कर दिया गया है. नए नियमों में अब विकासखण्ड स्तर के समाचार मीडिया प्रतिनिधियों को भी जनसंपर्क संचालनालय द्वारा अधिमान्यता देने का फैसला किया गया है. इस कड़ी में राज्य के सेवानिवृत्त वरिष्ठ पत्रकारों को भी मानद अधिमान्यता प्रदान करने का प्रावधान भी रखा गया है.

उन्होंने बताया कि अभी तक प्रचलित अधिमान्यता नियम, छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 में बनाए गए थे. गत अठ्ठारह सालों के दौरान मीडिया परिदृश्य में अमूलचूल परिवर्तन आया है. इस दौरान टीवी न्यूज चैनल, समाचार वेबपोर्टल आदि प्रारंभ हुए हैं और कार्य परिस्थितियां भी बदली है. सो अधिमान्यता नियमों को समय के अनुसार प्रासंगिक बनाने और नए समाचार मीडिया को स्थान प्रदान करने के लिहाज से अधिमान्यता नियमों में व्यापक परिवर्तन अनिवार्य था.

उन्होंने बताया कि नया नियम काफी सरल है. समाचार मीडिया के प्रचार संख्या, प्रसारण क्षेत्र, वेब पोर्टल की दशा में व्यूवर्स की संख्या आदि के आधार न केवल अधिमान्यता कोटा निर्धारित किया गया है. इतना ही नहींअधिमान्यता की संख्या में भी व्यापक बढ़ोत्तरी कर दी गई है.

आयुक्त ने यह भी बताया कि समाचार मीडिया प्रतिनिधियों को अधिमान्यता प्रदान करने का कार्य पूर्व की भांति राज्य एवं संभाग स्तरीय अधिमान्यता समितियों द्वारा ही किया जायेगा किन्तु समितियों में इलेक्ट्रानिक मीडिया के समाचार प्रतिनिधियों को भी शामिल किये जाने का प्रावधान किया गया है. श्री सिन्हा ने आशा व्यक्त की है कि नए अधिमान्यता नियमों के प्रभावशील होने के बाद समाचार मीडिया प्रतिनिधियों की अधिमान्यता न मिलने संबंधी दीर्घ अवधि से चली आ रही शिकायत का निराकरण हो सकेगा।

 

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संचालक की अनुमति लिए बगैर कर दी कर्मचारियों की नियुक्ति... उपसंचालक भगत को नोटिस

रायपुर. संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय में एक से बढ़कर कारनामे होते हैं. जो कोई भी इस संचालनायल में पदस्थ होता है वह यहां से जल्द से जल्द छुटकारा पाने की कवायद में जुट जाता है. वैसे तो यह संचालनालय गढ़ कलेवा से सटा हुआ है. कभी निकट भविष्य में गढ़कलेवा शायद बंद भी हो जाय, लेकिन इस संचालनालय में जिस तरह के कारनामे होते हैं उसे देखकर यह लगता नहीं है कि गड़बड़ी और अनियमितताओं के इस गढ़ को कभी कोई मंत्री ध्वस्त कर पाएगा ? बहरहाल लंबे समय से इस संचालनालय में उपसंचालक की हैसियत से पदस्थ जेआर भगत सुर्खियों बटोर रहे हैं. उनकी ढ़ेरों शिकायतें मुख्यमंत्री, संस्कृति मंत्री और उच्चाधिकारियों तक पहुंची है. फिलहाल उनके द्वारा दो कर्मचारियों की नियुक्ति का मामला चर्चा में हैं. बताया जाता है कि उन्होंने संचालक से अनुमति लिए बगैर देवेंद्र नाम के एक शख्स और एक महिला कर्मचारी की नियुक्ति कर दी थीं. इस मामले में संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय के संचालक ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है जिसका कोई जवाब उनकी तरफ से नहीं दिया गया है.

ज्ञात हो कि किसी भी दैनिक वेतनभोगी को नियुक्त करने का अधिकार संचालक के पास ही होता है. इतना ही नहीं जो दैनिक वेतनभोगी होता है उसका स्थानीय होना अनिवार्य है. दैनिक वेतनभोगी का स्थानांतरण भी नहीं किया जा सकता, लेकिन दोनों कर्मचारियों की नियुक्ति के मामले में सारे नियम-कानून ताक पर रख दिए गए. उपसंचालक भगत वर्ष 2011 में  जब जगदलपुर में पदस्थ थे तब उन्होंने अपने हस्ताक्षर से देवेंद्र कुमार की नियुक्ति का आदेश निकाला और फिर सीधे उसकी सूचना संचालक को भेज दी. उन्होंने दूसरी नियुक्ति 13 जनवरी 2012 को की. इस तिथि में जिस महिला की नियुक्ति की गई वह कस़डोल की रहने वाली हैं. वर्ष 2015 में भगत रायपुर मुख्यालय में आ गए तो उन्होंने एक बार फिर अपने आदेश से दोनों कर्मचारियों का तबादला आदेश जारी किया और उन्हें कोरबा के जिला पुरातत्व संघ संग्रहालय में अटैच कर दिया. नियमानुसार किसी दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी का तबादला नहीं हो सकता था. दोनों कर्मचारियों ने अपनी उपस्थिति वहां दी और उनका वेतन भी वहां से निकलने लगा. बताते हैं इस उठापटक में बस्तर में पदस्थ एक अफसर अमृतलाल को नाहक ही परेशानी का सामना करना पड़ा था. उन्होंने कर्मचारियों की नियुक्ति सहित पूर्व में किए गए अन्य कामकाज पर सवाल उठाए तो उन पर धारा 376 के तहत मामला दर्ज हो गया. पैकरा जैसे-तैसे अपनी जान बचाने भागते-फिरते रहे. अब जाकर उन्होंने भी शिकायत का मन बना लिया है. संचालक की अनुमति के बगैर कर्मचारियों की नियुक्ति और नोटिस को लेकर पुरातत्व संचालनालय के उपसंचालक जेआर भगत से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया.

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चिटफंट घोटालाः पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा,आईएएस रीना बाबा साहेब कंगाले, कोमल परदेसी, भीमसिंह, नीलकंठ टेकाम, अमृतलाल ध्रुव और रतनलाल डांगी पर एफआईआर

रायपुर. छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थी तब आम लोगों की गाढ़ी-मेहनत की कमाई पर डाका डालने वाली चिटफंड कंपनियों को सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने प्रश्रय दे रखा था. अभी कुछ दिन पहले अनमोल इंडिया नाम की एक चिटफंड कंपनी को प्रश्रय देने के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के पुत्र और राजनांदगांव के पूर्व सांसद अभिषेक सिंह पर अंबिकापुर में मामला दर्ज किया गया था. फिलहाल अंबिकापुर की जिला अदालत से होकर यह मामला उच्च न्यायालय बिलासपुर जा पहुंचा है. इधर महासमुंद के खल्लारी में भी पुलिस ने पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, आईएएस रीना बाबा साहेब कंगाले, सिद्धार्थ कोमल परदेसी, भीमसिंह, नीलकंठ टेकाम, अमृतलाल ध्रुव और सहित सनसाइन चिटफंड कंपनी के निदेशक, संचालक और प्रचारक बनवारी लाल, वकील सिंह, राजीव गिरी पर मामला दर्ज कर लिया है. खबर है कि पुलिस अफसर रतनलाल डांगी पर भी खल्लारी थाने में एक हफ्ते पहले मामला दर्ज किया गया है. इधर एफआईआर में कई बड़े अफसरों के नाम आने से हडकंप मच गया है. पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी का कहना है कि यह मामला कोर्ट के निर्देश के बाद दर्ज किया गया है. उन्होंने बताया कि पूरे मामले में रायपुर आईजी से रिपोर्ट मांगी गई है. यह तो देखना ही होगा कि चिटफंड कंपनियों के साथ किस-किस अफसर ने किस तरह की भूमिका निभाई है. चिटफंड कंपनी से उनके किस तरह के संबंध रहे हैं.

बताते हैं कि एक ग्रामीण दिनेश पानीकर ने सनसाइन इन्फ्रा बिल्ड कार्पोरेशन लिमिटेड में लगभग 13 लाख 11 हजार 881 रुपए अपने परिजनों के नाम पर जमा किए थे. कंपनी ने साढ़े छह साल में रकम दोगुना होने का वायदा किया था. पानीकर को तब झटका लगा जब कंपनी ताला लगाकर फरार हो गई. दिनेश अपनी रकम को पाने के लिए भटकता रहा. उसने इस मामले में थाना प्रभारी से लेकर पुलिस अधीक्षक सबसे शिकायत की थी, लेकिन तब किसी ने उसकी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. गौरतलब है कि इस मामले में जिन अफसरों का नाम सामने आया है वे सभी भाजपा के शासनकाल में सरकार की नाक के बाल बने हुए थे. एक अफसर पर बगैर अनुमति के विदेश जाने का आरोप लगा था. तब इस बात का खूब हल्ला मचा था कि अफसर ने सरकार के एक करीबी के काले धन को ठिकाने लगाने विदेश का दौरा किया है. यह भी कहा गया था कि छत्तीसगढ़ में संविदा में पदस्थ अफसर ने दुबई में एक बेशकीमती आलीशान मकान खरीदा था जिसकी तमाम औपचारिकताएं यहां के अफसर ने वहां जाकर पूरी की थीं. एक अन्य अफसर जो राजनांदगांव में पदस्थ था वह मंत्रिमंडल के एक सदस्य को मम्मी-डैडी कहता था. पूर्व सरकार में एक अफसर की पत्नी शौचालय बनवाने के नाम पर साफ-सफाई के खेल में लगी हुई थीं. अफसर अपने काम की वजह से कम और अपनी पत्नी के प्रचार की वजह से ज्यादा सुर्खियों में रहा. एक अफसर पर अब भी इधर-उधर खबरें प्लांट करवाने का आरोप है. बताते हैं कि यह अफसर दुर्ग जिले में पदस्थ एक वरिष्ठ पुलिस अफसर को बदनाम करने के खेल में लगा हुआ है. इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक से भी हुई है.

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वन अफसर के होटल में सेंट्रल एक्साइज का छापा

रायपुर. वीआईपी रोड़ में एक वन अफसर का भव्य होटल है. खबर है कि इस होटल में सोमवार को सेंट्रल एक्साइज ने छापा मारा है. हालांकि वन अफसर ने काफी समय पहले इस होटल को किराए पर दे दिया था. नियमानुसार यह कार्रवाई किराएदार पर की गई है, लेकिन होटल पर मालिकाना हक वन अफसर और उसके परिवार वालों का ही है. यहां यह बताना लाजिमी है कि प्रदेश में जब भाजपा की सरकार थीं तब यह अफसर संविदा में पदस्थ सुपर सीएम के नाम से विख्यात एक अफसर के बेहद करीब था. एक अन्य अफसर के करीब रहने की वजह से यह अफसर वन विभाग के बजाय लंबे समय तक मंत्रालय में पदस्थ रहा. प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तब इस अफसर को वापस वन विभाग भेजा गया. खबर हैं वन अफसर ने भाजपा के शासनकाल में कई जगह जमीनों की खरीदी और करोड़ों की संपत्ति अर्जित की. वन अफसर के होटल में एक बार इंकम टैक्स का छापा भी पड़ चुका है. खबर है कि सेंट्रल एक्साइज ने लंबे समय तक जीएसटी नहीं पटाने की वजह से छापा मारा है. पिछले कुछ सालों में इस होटल में सर्वाधिक शादियां हुई है. इधर एक शराब कारोबारी सुभाष शर्मा के लाभांडी स्थित जमीन को इंकम टैक्स ने कुर्क कर लिया है. बताया जाता है शराब कारोबारी ने दस करोड़ से अधिक का टैक्स अदा नहीं किया है.
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अंडा है या बम !

राजकुमार सोनी

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अंडा राजनीति चल रही है. दरअसल छत्तीसगढ़ की सरकार आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों में दिए जाने वाले मध्यान्ह भोजन में गर्भवती माताओं और बच्चों को पोषक आहार के रुप में अंडा देना चाहती है. प्रदेश के आदिवासी और प्रगतिशील जनसंगठन सरकार के इस फैसले का जोरदार ढंग से समर्थन कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष को इस बात की आशंका है कि अगर किसी बच्चे ने अंडे को आलू समझकर खा लिया तब क्या होगा? कहने-सुनने में यह बात हास्यास्पद तो लगती है, मगर यही हास्यास्पद स्थिति फिलहाल छत्तीसगढ़ में विरोध की राजनीति का सच है.

भाजपा ने इस बार मानसून सत्र में स्कूलों में अंडा परोसने के सैद्धांतिक फैसले के खिलाफ काम रोको प्रस्ताव प्रस्तुत किया. यहां यह बताना लाजिमी है कि काम रोको प्रस्ताव तब लाया जाता है जब वास्तव में कोई बड़ी घटना घटित हो जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में विपक्ष का काम रोको प्रस्ताव अंडे के खिलाफ था. विपक्ष के सदस्य बृजमोहन अग्रवाल ने सदन में आरोप लगाया कि बच्चों की थाली में अंडा परोसने के कार्यक्रम से अंडे का कारोबार करने वाले चंद व्यापारियों को लाभ पहुंचेगा और बच्चों में मांसाहार की प्रवृति पैदा होगी. बृजमोहन अग्रवाल ने सदन में यह भी बताया कि कबीरपंथी, जैन, अग्रवाल, वैष्णव, मारवाड़ी, माहेश्वरी समाज के लोग ज्ञान के मंदिर में अंडा वितरण किए जाने के खिलाफ है. भाजपा विधायक अग्रवाल यह तक कह गए कि सावन के महीने में सरकार ने अंडा बांटने का फैसला लिया है इसलिए इंद्रदेव नाराज हो गए हैं... पानी नहीं गिर रहा है.

भाजपा विधायक के इस बयान के बाद कांग्रेस के मंत्री कवासी लखमा ने यह कहते हुए विरोध जताया कि छत्तीसगढ़ में जब पन्द्रह साल तक भाजपा की सरकार थीं तब तो मुर्गी पालन और मछली पालन पर खूब जोर दिया गया, लेकिन अब भाजपा बेमतलब का विरोध कर रही है. शोर-शराबा और हो-हल्ले के बीच कांग्रेस के सदस्यों ने यह भी कहा कि कई राज्यों में जहां भाजपा की सरकार है वहां के सरकारी स्कूलों में अंडा परोसा जा रहा है.

स्कूलों में अंडा परोसने को लेकर सरकार का तर्क है कि छत्तीसगढ़ के 38 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है और अनुसूचित जनजाति के बच्चों में कुपोषण की यह दर 44 फीसदी है.अंडे में विटामिन सी जैसे एक- दो तत्व छोड़कर सभी तरह के पोषक तत्व मिलते हैं.अगर बच्चों को अंडा मिलेगा तो वे स्वस्थ्य रहेंगे और उनकी पढ़ाई-लिखाई भी अच्छी होगी. अपना मोर्चा डॉट कॉम से बातचीत में स्कूली शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह कहते हैं- अंडा मांसाहार है या शाकाहार इसे लेकर बहुत सा भ्रम काफी पहले टूट चुका हैं. कौन सा बच्चा अंडा खाएगा और कौन सा बच्चा अंडा नहीं खाएगा... इसे लेकर कोई बाध्यता नहीं रखी गई है. जो बच्चे अंडा खाना चाहेंगे उन्हें अंडा दिया जाएगा और जो बच्चे अंडा नहीं चाहेंगे उन्हें दूध- केला या उतनी ही कैलोरी का अन्य प्रोटीनयुक्त पदार्थ परोसा जाएगा. प्रेमसाय ने बताया कि स्कूलों में अंडा बंटेगा या नहीं इसका फैसला शाला विकास समिति तय करेगी. जहां की समिति अंडा परोसने के पक्ष में होगी वहां स्कूलों में अंडा दिया जाएगा. जहां समिति नहीं चाहेगी वहां बच्चों के घर अंडा पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन बच्चों को अंडा अवश्य दिया जाएगा.

इधर अंडा परोसे जाने के फैसले के खिलाफ आंदोलन करने वाले कबीरपंथियों के गुरु प्रकाश मुनि का कहना है कि ज्ञान के मंदिर में अंडा नहीं परोसा जाना चाहिए. सरकार को स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडा वितरण करने से पहले एक सर्वे करा लेना चाहिए था. जो बच्चे अंडा खाना चाहते हैं सरकार उनके परिजनों को अंडा दे दें ताकि वे अपने बच्चों को घर पर ही अंडा खिला सकें. बहुत से धार्मिक संगठन अंडा वितरण योजना को धर्म और आस्था के खिलाफ भी मान रहे हैं. इस बारे में पीयूसीएल के पूर्व अध्यक्ष लाखन सिंह का कहना है कि अंडे का विरोध करने वाले लोग बच्चों के कुपोषण को कैसे दूर करें... इस विषय पर बातचीत के लिए तैयार नहीं है. धर्म-कर्म और आस्था से तो बच्चों का कुपोषण दूर नहीं होगा. अगर एक सस्ता और सुलभ प्रोटीन बच्चों के भोजन का हिस्सा बनता है तो इससे अच्छी बात कोई दूसरी नहीं हो सकती. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव तुहिन देव का कहना है कि भोजन में शाकाहार और मांसाहार दोनों का महत्व होता है. केवल कुछ लोगों की आस्था या धार्मिकता के नाम पर एक बड़ी आबादी के खानपान पर प्रतिबंध लगाने की कवायद किसी भी स्तर पर जायज और प्रजातांत्रिक नहीं मानी जा सकती है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं- सरकार ने बम नहीं ब्लकि अंडा बांटने की योजना बनाई है. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को अगर भोजन में अंडा मिलता है तो उसका हर स्तर पर स्वागत होना चाहिए. जो लोग आज अंडे का विरोध कर रहे हैं वे लोग कल मछली का विरोध करेंगे. फिर चिकन का विरोध करेंगे और फिर इस बात का भी विरोध होगा कि हमें क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं पहनना चाहिए. फासीवाद को प्रश्रय देने वालों का विरोध कुछ इसी तरह का होता है. वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं.

अंडा विरोध की राजनीति के बीच लोरमी के विधायक धर्मजीत सिंह का बयान भी काफी दिलचस्प है. वे कहते हैं- मैं अंडा खाता हूं. चिकन खाता हूं. मटन खाता हूं...लेकिन अगर बहुत से लोगों की भावनाएं आहत होती है तो चाहूंगा कि स्कूलों में अंडे का वितरण न हो. बहरहाल छत्तीसगढ़ में इन दिनों हर कोई एक-दूसरे को अंडे का फंडा... समझाने की कवायद कर रहा है. एक फुटकर अंडा व्यापारी लालजी का कहना है-जबसे विरोध हो रहा है अंडा खूब बिक रहा है. सोशल मीडिया में एक मजेदार टिप्पणी चल रही है- बड़े दिनों के बाद विपक्ष को एक मुद्दा मिला.... मगर मिला क्या... अंडा !

 

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इधर कलक्टर बनी शिखा राजपूत उधर लगा भ्रष्टाचार का आरोप

रायपुर. छत्तीसगढ़ की पूर्व स्वास्थ्य संचालक शिखा राजपूत तिवारी अभी चंद दिनों पहले ही बेमेतरा कलक्टर बनाई गई है. जाहिर सी बात है कलक्टरों की पदस्थापना मुख्यमंत्री स्वयं करते हैं, लेकिन उनके कलक्टर बनने के साथ ही एक नया विवाद भी जुड़ गया है. शिखा अब से कुछ अरसा पहले कोण्डागांव जिले में भी कलक्टर थीं तब भी उन पर अपने परिजनों और रिश्तेदारों को उपकृत करने का आरोप लगा था.इधर उन पर आरोप है कि उन्होंने आयुष्मान भारत, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा और संजीवनी सहायता कोष के क्लेम में जमकर भ्रष्टाचार किया है. सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारीक को बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और रायपुर के कुछ चिकित्सकों ने लिखित में यह शिकायत दी है कि उनसे काम के एवज में पैसों की मांग की गई है. खबर है कि नेशनल हेल्थ एजेंसी ने भी स्वास्थ्य सचिव को एक मेल के जरिए गंभीर शिकायतें भेजी है. बताया जाता है कि आयुष्मान योजना के तहत तीन हजार आठ सौ से ज्यादा रिजेक्ट क्लेम के भुगतान में उन्होंने विशेष रुचि दिखाई. बहरहाल शिकायतों के मद्देनजर पूर्व स्वास्थ्य संचालक ( वर्तमान में बेमेतरा कलक्टर ) पर स्वास्थ्य विभाग ने अपने स्तर पर जांच बिठा दी है. स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी सुरेंद्रर बांधे ने विशेष सचिव भुनेश यादव को जांच की जिम्मेदारी सौंपी है.

जांच को लेकर उठे सवाल

इधर जांच को लेकर कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं. इसमें कोई दो मत नहीं है कि भाजपा के शासनकाल से ही स्वास्थ्य विभाग आर्थिक अनियमिताओं और गड़बड़ियों का एक प्रमुख केंद्र रहा है. वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव इन गड़बड़ियों को सुधारने की कवायद में भी लगे हुए हैं और काफी हद तक उन्होंने नियंत्रित भी कर लिया है बावजूद इसके विभाग में अफसरों के बीच खुन्नस और तनातनी कायम है. विभाग के ही एक गुट का कहना है कि शिखा राजपूत तिवारी ने  वैली गेयर नाम की एक स्वास्थ्य बीमा कंपनी कंपनी के कारनामों को लेकर उच्च अधिकारियों से पत्र- व्यवहार किया था जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है. बताया जाता है कि शिखा का विरोध इस बात को लेकर था कि स्वास्थ्य विभाग उस बीमा कंपनी को भुगतान कर रही है जिसका रिकार्ड ठीक नहीं है. पहले 700-800 करोड़ की प्रीमियम होती थीं, मगर अब यह प्रीमियम 1100 करोड़ के आसपास पहुंच गई है. ( विभाग के एक दूसरे सूत्र का कहना है कि यह प्रीमियम 536 करोड़ से ज्यादा नहीं है. ) बताया जाता है कि विभाग के सभी बड़े अफसर वैली गेयर के पक्ष में हैं और शिखा खिलाफ थीं.

इधर विभाग के ही एक दूसरे गुट का कहना है कि शिखा राजपूत तिवारी आयुष्मान योजना, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना और संजीवनी सहायता कोष से जुड़े भुगतान के लिए अस्पतालों से कमीशन की मांग करती थी. कई अस्पतालों से भेदभाव भी किया गया. नई सरकार के गठन के बाद जब प्रदेश के कतिपय अस्पतालों पर स्मार्ट कार्ड योजना में गड़बड़ी के चलते गाज गिरी तब शिखा राजपूत ने अपने परिजनों और खास लोगों को मध्यस्थता के खेल में लगाकर हर अस्पताल से अच्छी-खासी वसूली की. बहरहाल इस जांच को लेकर कई तरह की बातें हो रही है. यह भी कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य बीमा योजना के एडिशनल सीईओ विजयेंद्र कटरे की संविदा नियुक्ति के विरोध के चलते उन्हें निशाने पर लिया गया है. स्वास्थ्य विभाग के एक सूत्र का कहना है कि शिखा राजपूत भारतीय प्रशासनिक सेवा की अफसर है, सो उनके खिलाफ जांच का आदेश सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी होना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इस बात में कितनी सत्यता है इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन प्रशासनिक गलियारों में इस बात की भी जबरदस्त चर्चा है कि शिखा राजपूत जिन दो लोगों को सामने रखकर बातचीत करती थी उन लोगों का ऑडियो-वीडियो एक तीसरे गुट ने अपने पास सुरक्षित रखा है.

 

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छत्तीसगढ़ के छह अफसरों के खिलाफ लोक आयोग ने की कार्रवाई की अनुशंसा

रायपुर. भारतीय प्रशासनिक,पुलिस और वन सेवा के छह अफसरों के खिलाफ लोक आयोग ने कार्रवाई की अनुशंसा की है. यह जानकारी एक लिखित प्रश्न के उत्तर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में दी है. कांग्रेस विधायक अरूण वोरा ने यह जानना चाहा था कि एक अप्रैल 2016 से एक अप्रैल 2019 तक लोक आयोग ने किन-किन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई अथवा जांच की अनुशंसा की है. जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर एन एस मंडावी, हीरालाल नायक, सेवानिवृत्त अफसर जे. मिंज, वन अफसर एस एस बजाज, पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता के अलावा एक महिला अफसर पर लोक आयोग ने कार्रवाई की अनुशंसा की है.
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छत्तीसगढ़ के छह अफसरों के खिलाफ लोक आयोग ने की कार्रवाई की अनुशंसा

रायपुर. भारतीय प्रशासनिक,पुलिस और वन सेवा के छह अफसरों के खिलाफ लोक आयोग ने कार्रवाई की अनुशंसा की है. यह जानकारी एक लिखित प्रश्न के उत्तर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में दी है. कांग्रेस विधायक अरूण वोरा ने यह जानना चाहा था कि एक अप्रैल 2016 से एक अप्रैल 2019 तक लोक आयोग ने किन-किन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई अथवा जांच की अनुशंसा की है. जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर एन एस मंडावी, हीरालाल नायक, सेवानिवृत्त अफसर जे. मिंज, वन अफसर एस एस बजाज, पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता के अलावा एक महिला अफसर पर लोक आयोग ने कार्रवाई की अनुशंसा की है.
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क्या अमित जोगी पागल हो गए हैं?

रायपुर. सोशल मीडिया में सक्रिय रहना तो अच्छी बात है, लेकिन छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी की ताबड़तोड़ ढंग की सक्रियता उनके आलोचकों की संख्या में लगातार इजाफा कर रही है.एक बड़ा वर्ग यह मानकर चल रहा है कि वे सरकार के कामकाज और नीतियों पर कम बल्कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निजी तौर पर ज्यादा हमला करते हैं. उनकी पोस्ट और टिव्हट में एक खींझ साफ तौर पर दिखाई देती है.अभी हाल के दिनों में जब सात जुलाई को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की माता जी का निधन हुआ तो उन्होंने कुछ ऐसा टिव्हट किया कि लोग उन पर पिल पड़े.

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल को लिखना पड़ा- अमित का विवादों और खुराफातों से पुराना रिश्ता है. अभी 7 जुलाई को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की माता जी का एक स्थानीय अस्पताल में निधन हो गया. वह पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रही थीं. निधन की सूचना के बावजूद उसी दिन न जाने किस नशे में चूर अमित जोगी ने मुख्यमंत्री श्री बघेल के खिलाफ अनाप-शनाप लिखकर अपने ट्विटर एकाउंट पर पर डाल दिया. विपक्षी भी अमित जोगी के ट्विट-खुराफात पर हैरत में हैं. आखिर किसी नेता-पुत्र, जो स्वयं भी राजनीति में दाखिल है,में ऐसी निकृष्ट सोच, संवेदना-शून्य आचरण और अशिष्टता कहां से आती है? अब अमित जोगी और उनके पिता अजीत जोगी क्षमा-प्रार्थी मूड में दिख रहे हैं.

सोशल मीडिया में क्षमा मांग लेने के बाद तो बात खत्म होनी चाहिए मगर लोग उनके अन्य पोस्ट और टिव्हट की मीमांसा करने में लग गए हैं. राजनीति के जानकार उनके असामान्य व्यवहार पर हतप्रभ है.एक पुराने खांटी नेता का कहना है- पागल होना और पागलपन का शिकार हो जाना... अलग तरह का मसला है. पागलपन से मंजिल तय होती है, लेकिन पागल आदमी दूसरों पर पत्थर फेंकता है या फिर कपड़े फाड़ता है. अमित जोगी एक कुशल राजनीतिज्ञ के बेटे हैं. उन्हें कम से कम अपने पिता से यह तो सीख ही लेना चाहिए कि जीवन में नपे-तुले शब्दों का क्या महत्व होता है?

यह था विवादित टिव्हट 

अमित जोगी ने कहा-  वे सोमवार को बाराद्वार जा रहे हैं, लेकिन भूपेश बघेल अपनी स्वर्गवासी मां को मुखाग्नि देते हुए यह तय कर लें कि या तो वे बाराद्वार की शराब दुकान को बंद कर लें या फिर मुझे ?

 

 

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