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नाटक फांस में होगा किसान आत्महत्याओं की साजिश पर्दाफाश, मंचन 22 को

नाटक फांस में होगा किसान आत्महत्याओं की साजिश पर्दाफाश, मंचन 22 को

रायपुर. भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) रायपुर द्वारा 22 जून शनिवार की शाम साढ़े सात बजे रंगमंदिर सभागार में नाटक 'फांस' का मंचन किया जाएगा. हिन्दी के सुप्रसिद्ध कथाकार व उपन्यासकार संजीव के मूल उपन्यास पर आधारित कृति का छत्तीसगढ़ी नाट्य रूपांतरण संजय शाम ने किया है. नाटक के गीत देश के सुपरिचित गीतकार जीवन यदु ने लिखे हैं तथा इसकी परिकल्पना व निर्देशन मिनहाज असद ने की है.                               

नाटक में प्रमुखता से यह दर्शाया गया है कि भारत अब कृषि प्रधान देश से उद्योग प्रधान देश हो गया है. खेतों पर अब किसान नहीं मजदूर काम करते हैं और फार्म हाउस के मालिक आज तथाकथित किसान हैं. फिर खेत मजूरों पर अलग से कोई औद्योगिक श्रम कानून भी तो  नहीं है.गांव के बेबस किसान खेती की दिन-प्रतिदिन बढ़ती लागत, बैंक और सूदखोरों के कर्ज में डूबकर आत्महत्या कर रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस सालों में लगभग 8 लाख किसानों ने आत्महत्या की है.किसान जीवन की त्रासदी पर आधारित हिन्दी के प्रख्यात लेखक संजीव के बहुचर्चित उपन्यास "फांस" में किसानों की समस्याओं पर गंभीरता से विस्तार पूर्वक विचार किया गया है. प्रस्तुत नाटक फांस में  किसान जीवन की उसी  त्रासदी को रंगमंच के माध्यम से समाज  के सामने लाने का एक छोटा सा प्रयास है. सरकार की कृषि विरोधी नीतियों और किसानों की लगातार उपेक्षा के कारण आज खेती जीवनयापन का साधन न होकर किसानों के गले की फांस बन गई है. किसान जीवन के अनगिन दुखों की मार्मिक कहानी नाटक ,फांस  में पूरी शिद्दत के साथ शीबू के अंतहीन जीवन  संघर्ष के माध्यम से कृषि समाज और कृषकों के जीवन से सीधा संवाद करती है. यह सिर्फ किसानों की गरीबी, भूखमरी और अभावों की कहानी भर नहीं है बल्कि  इसमें किसानों की सामाजिक दुर्दशा , लगातार बढ़ता वर्ग संघर्ष ,आदमी और आदमी के बीच की  असमानता ,उसकी बेबसी और जीवन के प्रति जिजीविषा की कहानी भी है.शीबू को बेटी छोटी ठीक ही कहती है- कौन कहता है कि गरीब आदमी सिर्फ भूख ,कर्ज और  गरीबी से मरता है, शीबू जैसे लोग तो अपने मान- सम्मान के लिए भी मरते हैं. दरअसल शीबू जैसे लोग एक बार में कहां मरते हैं वो तो रोज पैदा होते है रोज मरते हैं.

नाटक में मंच पर बलराज पाठक, प्रतिमा गजभिए, साक्षी शर्मा, अलका दुबे, अनिल पटेल, नरेश साहू, नंदा रामटेके, सुरेंद्र बेड़गे, दलेश्वर साहू, सुरेश बांधे, संगीता सोनी, सुनिता गजभिए, सूर्या महिलांगे, नीतेश लहरी, अशोक ताम्रकार ने भूमिका निभाई है. प्रकाश और मंच व्यवस्था अरुण काठोटे व बालकृष्ण अय्यर, संगीत- संतोष चंद्राकर, सुभाष बुंदेले, हरजीत जुनेजा, आबिद अली, सिद्धार्थ बोरकर, अरविंद ठाकुर, गौतम चौबे, पुष्पा साहू, सुनिता गजभिए, लच्छीराम सिन्हा, गौतम धीवर, ठालेंद्र यादव ने दिया है. रूप सज्जा दिनेश धनगर ने की है.

 

 

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