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अब मॉल में छत्तीसगढ़ी फिल्में नहीं लगाई तो खैर नहीं

अब मॉल में छत्तीसगढ़ी फिल्में नहीं लगाई तो खैर नहीं

रायपुर. महाराष्ट्र में प्रत्येक सिनेमाघर को साल में दो महीने के लिए मराठी भाषा में बनी फिल्मों का प्रदर्शन अनिवार्य किया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक ऐसी स्थिति नहीं बनी है. यहां छविगृह और मॉल के मालिक अपनी मर्जी के मुताबिक छत्तीसगढ़ी फिल्मों का प्रदर्शन करते हैं और जब मन करता है तब फिल्मों को उतार देते हैं. छत्तीसगढ़ सिने एंड टेलीविजन एसोसिएशन के सदस्यों ने छविगृह संचालकों की इस मनमर्जी के खिलाफ आंदोलन करने का फैसला कर लिया है. पहली शुरूआत पांच जून को सभी मॉल के सामने प्रदर्शन के जरिए की जाएगी. एसोसिएशन के नवनियुक्त अध्यक्ष संतोष जैन ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हर साल लगभग 20 फिल्में रिलीज हो रही है. फिल्म के निर्माता और निर्देशक अपने घर-बार को बेचकर फिल्में बना रहे हैं, लेकिन सिंगल थियटेर के कम होने की वजह से फिल्म बनाने वालों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. सिनेमाघरों के संचालक फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर अड़ियल रवैया अख्तियार किए रहते हैं. यदि कोई छत्तीसगढ़ी फिल्म अच्छा बिजनेस कर रही है तब भी बाहर के वितरकों के दबाव में फिल्में उतार दी जाती है. जैन ने बताया कि उनका एसोसिएशन अब फिल्म को उद्योग का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर भी संघर्ष करेगा. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में क्षेत्रीय फिल्म बनाने वालों को सरकार शूटिंग के लिए जगह और सब्सिडी भी देती है. छत्तीसगढ़ में फिल्मों के विकास को लेकर बातें तो खूब बड़ी-बड़ी की गई है, लेकिन कोई सार्थक पहल नहीं की गई.

एक छत्तीसगढ़ी क्यों नहीं देख सकता मॉल में फिल्में

संतोष जैन ने एक वाक्या बताते हुए कहा कि पिछले दिनों वे एक स्थानीय मॉल में घूमने के लिए गए थे. उनके सामने ही तीन-चार छोटे बच्चे जो छत्तीसगढ़ी में बात कर रहे थे वे भी आए. उनके कपड़े थोड़े गंदे थे इस वजह से मॉल के बाहर खड़े हुए गार्ड ने उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया. क्या एक गरीब और छत्तीसगढ़ी आदमी को मॉल में घूमने का कोई अधिकार नहीं है. जैन ने कहा कि अब एसोसिएशन इस बात के लिए आंदोलन करेगा कि हर मॉल में साल में कम से एक बार छत्तीसगढ़ी अनिवार्य रुप से लगे. जैन ने बताया कि महाराष्ट्र के लोग सिनेमाघरों में अपना टिफिन, पानी सब लेकर जाते हैं. क्या छत्तीसगढ़ का रहवासी अपनी खुरमी-ठेठरी के साथ फिल्म नहीं देख सकता. जैन ने कहा कि जब तक मॉल के संचालक छत्तीसगढ़ी फिल्मों का प्रदर्शन करने के लिए तैयार नहीं हो जाते तब तक आंदोलन चलते रहेगा.

हाल ही में अध्यक्ष बने हैं जैन

छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी भाषा में फिल्म बनाने वाले संतोष जैन एक रंगकर्मी भी है. उनके निर्देशित कई नाटकों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुका है. अभी हाल के दिनों में ही उन्हें छत्तीसगढ़ सिने एंड टेलीविजन एसोसिएशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. एसोसिएशन में पहले भी कई नामी फिल्मकार अध्यक्ष और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं, लेकिन उन पर पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ी फिल्मों के कारोबार को मटियामेट करने का आरोप लगता रहा. एक अभिनेता पर एक सांसद के साथ मिलकर जनसंपर्क व अन्य विभागों पर धंधा करने का आरोप लगा. फिलहाल इस मामले की जांच चल रही है. एक फिल्म निर्माता ने पूर्व मुख्यमंत्री के निवास में पदस्थ एक अफसर के उपन्यास पर फिल्म बनाई और साहू वोटरों को साधने के लिए किशोर साहू फिल्म समारोह के लिए एक डाकूमेंट्री भी बनाई. इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में ताबड़तोड़ ढंग से फिल्में बन रही है और कुछ फिल्में अच्छी भी बन रही है, लेकिन साल में एक-दो फिल्मों को छोड़कर अधिकांश फिल्में बंबई की किसी हिट हिंदी फिल्म का रीमेक ही होती है. मुबंई की अधकचरा नकल की वजह से छत्तीसगढ़ी फिल्मों को सिर आंखों पर उठाकर रखने वाले दर्शक नहीं मिल पा रहे है. छत्तीसगढ़ी फिल्मों के अधिकांश फिल्मकार और अभिनेता आत्ममुग्धता के शिकार भी है. यहां हर दो दिन बाद यह खबर आती है कि अमुक अभिनेता भाजपा से चुनाव लड़ने जा रहा है. अभिनताओं के चुनाव लड़ने की खबरों की वजह से सामान्य दर्शक उन्हें स्वाभाविक ढंग से अंगीकार भी नहीं कर पा रहा है. हर कलाकार के पीछे किसी न किसी पार्टी का ठप्पा लगा है. छत्तीसगढ़ का हर दूसरा हीरो सुपर स्टार है और हर दूसरा खलनायक सुपर खलनायक. हद इस बात की भी है कि हर किसी ने अपने आपको हिंदी फिल्मों के सफलतम लोगों के नाम से जोड़ रखा है. कोई कामेडियन है तो जॉनी लीवर... कोई खलनायिका है तो अरूणा ईरानी.अब श्री जैन एसोसिएशन के अध्यक्ष बन गए हैं तो फिल्मों के शौकीन उनसे यह अपेक्षा भी करेंगे कि छत्तीसगढ़ में मौलिक विषयों पर फिल्में भी बने.स्मरण रहे  हर अच्छी फिल्म अपना प्रचार स्वयं कर लेती है. इस प्रचार को सीधी और सरल भाषा में माउथ पब्लिसिटी कहते हैं. 

 

 

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