संस्कृति

केवल गब्बर का नहीं जनाब...मेरा अपना बिस्कुट भी है यह

केवल गब्बर का नहीं जनाब...मेरा अपना बिस्कुट भी है यह

जब डाकू गब्बर सिंह की पहली पसंद ग्लूकोज़ बिस्किट हो सकती थीं तो हमारी तो होनी ही थीं. शोले के अमजद खान उर्फ गब्बर को कौन नहीं जानता.फिल्मी खबरों पर रुचि रखने वाले लोगों का कहना हैं कि आम तौर पर हीरो या हिरोइन ही विज्ञापन किया करते थे. किसी कंपनी ने पहली बार एक खलनायक को विज्ञापन में लिया था, गब्बर सिंह से पहले शायद प्रेम चोपड़ा वैसलीन का विज्ञापन कर चुके थे, लेकिन किसी ने उन्हें नोटिस में नहीं लिया. गब्बर को नोटिस में लेने की एक वजह यह थीं कि उनका डायलॉग- कितने आदमी थे ? तेरा क्या होगा कालिया घर-घर पहुंच चुका था. बचपन में जो भी चीजें मिलती थीं उसका महत्व होता था. किसी ने मां को बता दिया था कि अगर बच्चों को ग्लूकोज़ बिस्किट खिलाया जाय तो उनमें ताकत बनी रहती है. बस... चावल के डिब्बे में, भगवान की फोटो के नीचे, या फिर आंचल में जहां कहीं भी चार आना-आठ आना होता बिस्किट खरीद लिया जाता था.

इस बिस्किट के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि इसे छोटा- बड़ा हर कोई खाता था. अब तो चाय के साथ काले-पीले और जीवन स्तर को ऊंचा दिखाने वाले कई तरह के बिस्किट परोसे जाते हैं, लेकिन पहले ग्लूकोज़ बिस्कुट ही दिया जाता था.अमीर हो गरीब... हर आदमी को पसंद था यह बिस्कुट. एक बार छोटे भाई के सिर में दर्द उठा. मां ने मुझे एनासिन लाने के मार्केट भेजा. सेक्टर छह भिलाई में तब मनोहर मेड़िकल स्टोर ही फेमस था. वहां पहुंचकर जैसे ही मैंने एनासिन मांगा, बंदर टोपी पहनकर बैठे हुए बूढ़े ने कहा- थोड़ा ठहरो...नाश्ता करने के बाद देता हूं. हम तो जब भी भूख लगती थीं शक्कर और रोटी खा लिया करते थे. पहली बार नाश्ते में किसी को बिस्किट खाते देख रहा था. एक छोटे से गिलास में चाय थीं और बूढ़ा एक-एक बिस्कुट को डूबा-डूबाकर खा रहा था. ग्लूकोज़ बिस्किट को खाने का अंदाज इतना प्यारा था कि पूछिए मत. बूढ़ा बिस्किट को आधा गीला करता और आधा हिस्सा सूखा रहने देता... और फिर झट से मुंह में डालकर मेरी तरफ ऐसे देखता जैसे मैं उसका बिस्किट लेकर भाग जाने वाला हूं. उसके चेहरे का भाव कुछ सवालिया भी था-क्यों बेटा कभी बाप जनम में बिस्किट खाया है ? नहीं खाया न ? बिस्किट का पूरा एक बड़ा पैकेट खत्म करने के बाद बूढ़े ने पूछा- अब बोलो क्या चाहिए. मैंने कहा- वहीं दे दो जो खा रहे थे.

घर आकर मैंने मां से कहा-एनासिन नहीं थीं, लेकिन मेडिकल वाले ने बताया कि ज्यादा भूखा रहने से भी सिर में दर्द उठता है.उसने बिस्किट खाने को कहा है. भाई को बिस्किट दे दे और दो बिस्किट मुझे भी देना...मेरे सिर में भी दर्द हो रहा है. दोस्तों... सब कुछ भूल सकता हूं लेकिन इस बिस्किट को नहीं भूल सकता. इस बिस्किट को खरीदने में मां के आंचल में बंधा हुआ चार आना-आठ आना काम आता रहा है. यह गब्बर का नहीं... मेरा अपना बिस्कुट है.

राजकुमार सोनी की फेसबुक वॉल से

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