संस्कृति

एल्युमिनियम वाली स्कूल की पेटी

एल्युमिनियम वाली स्कूल की पेटी

एल्युमिनियम वाली स्कूल की पेटी अब तो स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए एक से बढ़कर बस्ते आ गए हैं लेकिन जब मैं स्कूल में था तब कुछ ठीक-ठाक कमाई-धमाई करने वाले पालक अपने बच्चों को एल्युमिनियम वाली पेटी देकर ही स्कूल भेजा करते थे. मेरे पास ऐसी पेटी नहीं थीं. यह पेटी हमेशा से गरीब बच्चों के बीच काम्पलेक्स पैदा करती रही है. जो बच्चा एल्युमिनियम वाली पेटी लेकर आता था सब उसकी इज्ज़त करते थे. उस बच्चे की पेटी में कुछ न अनोखा अवश्य होता था. पेटी खोलते ही भगवान की फोटो देखने को मिलती थीं.भगवान को प्रणाम करके ही पढ़ाई चालू होती थीं. हमें भी लगता कि साला... जब तक एल्युमिनियम वाली पेटी में कापी किताब को सुरक्षित नहीं रखा जाएगा तब तक होशियार नहीं बन सकते.

इस पेटी में और भी कई तरह की खासियत थीं.पेटी खूबसूरत दिखती थीं. पेटी में किताब और कापी को बरसात से बचाया जा सकता था. उन दिनों ठीक-ठाक बारिश होती थीं. पेटी को लेकर आने वाला बच्चा बाल कलाकार सचिन लगता था. अगर कोई लड़की पेटी लेकर आती थीं तो फिल्म दो कलिया की नीतू सिंह नजर आती थीं. हमारे पास पेटी नहीं थीं इसलिए हम खुद को मुकंदर का सिकंदर वाला मास्टर मयूर समझते थे और हर पेटी वाले को साब... और पेटी वाली को मेमसाब कहते थे.

तो भैया एक रोज आधी छुट्टी में एक पेटी वाले साब और पेटी वाली मेमसाब के बीच राड़ा हो गया. मतलब झगड़ा हो गया. दोनों भिंड गए. झगड़े की वजह बेहद छोटी थीं. किसी मास्टर राजू टाइप के बाल कलाकार ने नीतू सिंह और मास्टर सचिन की पेटी की जगह बदल दी थीं. दोनों ने पहले एक-दूसरे का बाल खींचा और फिर पेटी लेकर टूट पड़े. पेटियां आपस में टकराती रही. खूब टकराई.किसी ने जाकर गुरुजी को बता दिया. वे भागते हुए आए.भारत के हस्तक्षेप के बाद युद्ध थम गया लेकिन पहली बार पता चला कि पेटी युद्ध से सिर पर गुमड़ निकल जाता है और जिसके सिर पर गुमड़ निकल जाता है वह हारकर भी जीत जाता है और हारकर जीतने वाला बाजीगर कहलाता है.

इस युद्ध में मास्टर सचिन हार गए थे लेकिन दूसरे दिन वे अपनी झगडालू मां को लेकर स्कूल पहुंच गए तो जीत गए. सचिन की मां अपने साथ अपनी बड़ी बेटी को लेकर स्कूल पहुंची थीं.मां-बेटी ने स्कूल में जमकर कोहराम मचाया. सचिन की मां ने चंद्राकर गुरुजी से साफ-साफ कहा-अगर उसके बेटे को कुछ हुआ तो पूरे स्कूल की चटनी बनाकर रख देगी.

तीसरे दिन डरते-सहमते नीतू सिंह की मां माला सिन्हा ( फिल्म दो कलिया में नीतू सिंह की मां माला सिन्हा ही थी. )  पहुंची. सचमुच बहुत खूबसूरत थीं माला सिन्हा. अपने को लगा यार... जिसकी मां खूबसूरत है उसकी बेटी तो खूबसूरत होगी ही. बेटी खूबसूरत होगी तो बेटी की पेटी कैसे बेकार हो सकती है.

...... लेकिन बेटी के युद्ध में सक्रिय ढंग से भाग लेने और मास्टर सचिन के सिर पर गुमड़ निकाल देने की शिकायत के बाद बाद माला सिन्हा ने नीतू सिंह को झोला थमा दिया था.

हालांकि झोला भी खूबसूरत था , लेकिन पेटी...पेटी थीं.

राजकुमार सोनी की फेसबुक वॉल से 

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