संस्कृति

हल्बी- गोंडी तथा दोरली  को भी राजभाषा बनाने चलेगा अभियान

हल्बी- गोंडी तथा दोरली को भी राजभाषा बनाने चलेगा अभियान

रायपुर. हल्बी  गोंडी तथा दोरली  को भी छत्तीसगढ़ में  राजभाषा का दर्जा दिलाए जाने के लिए विगत कुछ दशकों से प्रयासरत  जनजातीय सरोकारों  की  मासिक पत्रिका के संपादक तथा आदिवासी शोध एवं कल्याण परिषद  के अध्यक्ष डॉ राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि बस्तर क्षेत्र विश्व के कई देशों से बड़ा है, हम बस्तरिया लोगों की बोली भाषा परंपराएं ही हमारी पहचान है.हमारी छत्तीसगढ़ी भाषा से द्वेष और आपत्ति नहीं है. हम तो छत्तीसगढ़ी भाषा को फलते फूलते देखकर खुश हैं, लेकिन हल्बी , गोंडी तथा दोरली  प्रदेश के एक बहुत बड़े भू- भाग में बोली जाने वाली मूल भाषा है इसलिए इन बोलियों को भी राजभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए.

राजाराम ने कहा कि इन दिनों यह तीनों  बोलियां बहुत ही तेजी से विलुप्त हो रही है और इसके साथ ही विलुप्त हो रहा है ,इन बोलियों में सन्निहित मानवजाति का कई सदियों का संजोया हुआ संचित विविध- ज्ञान, परंपरा संस्कृति ,साहित्य, लोक कथाएं, लोक गीत ,वनऔषधियों का ज्ञान, परंपरागत चिकित्सा ज्ञान ज्योतिषी ज्ञान तथा जलवायु , वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं से संबंधित अनुभवजन्य ज्ञान. डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि हम बस्तरिया , हर हाल में हल्बी , गोंडी तथा दोरली  बोलियों को इनका वास्तविक अधिकार दिला कर ही रहेंगे. जिस तरह झारखंड में 5 जनजातीय बोलियों को राजभाषा का दर्जा दिया गया है उसी प्रकार छत्तीसगढ़ में भी हल्बी तथा गोंडी एवं दोरली को भी राजभाषा का दर्जा दिया ही जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि इसके लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित सभी उचित मंचों पर निवेदन पत्र भेजने का क्रम जारी है.  उन्होंने बताया कि आदिवासी शोध तथा कल्याण परिषद इस मुद्दे को लेकर हर स्तर पर जागरूकता फैलाने के काम में लगी हुई है। राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि वे लोगों से सहायता एवं सक्रिय सहयोग देने के लिए बस्तर तथा इन भाषा-भाषी क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों से भी अपील कर रहे हैं, कि वे अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर बस्तर की जनजातीय परंपराओं ,बोली- भाषा आदि हमारी मूल पहचान की रक्षा के लिए आगे आएं तथा हमारा साथ दें. 

 

ये भी पढ़ें...