साहित्य
मैं बहुत सेंसिटिव हूं
मोहन देस
बार-बार मत दिखाओ
सैकड़ों तपे हुए मील के पत्थरों
और उन झुलसे हुए लोगों को
मत दिखाओ उनके बाल-बच्चों को
उनके छालों भरे पांवों को
देखा नहीं जाता यह सब...
मैं बहुत सेंसिटिव हूं!
मैं अर्थात्,
महज़ मैं ही नहीं...
हम सब देशवासी...
वे, जो कल्चर्ड हैं
जिनके पास घर है
दरवाज़ा है
दरवाज़े पर बंदनवार है
रंगोली है
खिड़की में थाली, चम्मच
तालियां हैं
दीए में तेल है
देह में योग है
प्राणायाम है
छंद है
गंध है
मद्धिम संगीत है
मेडिटेशन है
धुर आनंद है,
इस तरह
आप की तरह
मैं भी बहुत सेंसिटिव हूं!
इसीलिए कहा पत्नी से
बाई नहीं है,
मैं मांज देता हूं बर्तन
झाडू-पोंछा कर देता हूं
उससे कहीं बेहतर...
तुम देखना !
स्त्री -मुक्ति !
और साथ-साथ व्यायाम भी...
सुनते ही पत्नी भी
घर में मटर की गुजिया
बनाने के लिए
खुशी-खुशी तैयार हो गई
कितना मोहक और कुरकुरा रिश्ता है हमारे बीच!
बहुत सेंसिटिव हूं मैं !
फिर भी बेकार में वे लोग
बार-बार
नज़र के सामने आ ही जाते हैं...
अरे, कोई न कोई इंतज़ाम
हो ही जाएगा उनका
सरकार उन्हें खिचड़ी दे तो रही है न
तो और क्या चाहिए उन्हें?
बैठे रहना चाहिए न चुपचाप
जहां कहा जाए...
जल्द से जल्द उन्हें
नज़रों से ओझल हो जाना चाहिए
देखा नहीं जाता
पीड़ा होती है
बहुत सेंसिटिव हूं जी मैं !
सच कहूं तो उनके बगैर शहर
सुंदर साफ-सुथरे और शांत लगने लगे हैं
और हां, सामाजिक अंतर या दूरियां
तो ज़रूरी ही है न?
अरे, यह सब तो सनातन है
हमारी पुरानी चिर-परिचित संस्कृति में
पहले से ही
यह विद्यमान है,
इस सच को छिपाया नहीं जा सकता.
आजकल के प्रगतिशील,
लिबरल्स, वामपंथी, शहरी नक्सल, टुकड़े टुकड़े गैंग वाले...
कहते हैं, नासा ने अब इन शब्दों को
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल कर लिया है...
और वो...
क्या कहते हैं उसे...
ओह, याद नहीं आ रहा...
क्या है!
हां, मानवाधिकार वाले...
इनमें से कोई भी नकार नहीं सकता
इस सच को !
अमेरिका में बसा हुआ मेरा भांजा बताता है
वहां इस तरह के लोग नहीं मिलते
घरेलू काम, बागवानी मैं ही करता हूं
घर में रंगरोगन पत्नी-बच्चे करते हैं
मामा, घर भी हमने खुद ही बनाया है
अरे, सब की किट्स मिलती हैं ऑनलाइन...
डॉग को भी हम ही ले जाते हैं बाहर घुमाने
उसकी टट्टी-पेशाब ‘सक’ करने की मशीन लेकर.
सभी काम मशीन से ही होते हैं यहां...
हम भी काम करते हैं मशीन की तरह ही
समय बेहतर गुज़रता है !
भाग्यशाली है मेरा भांजा...
भारत भी बहुत जल्द हो जाए सुपर पॉवर
साथ ही विश्वगुरू भी
इस मामले में मैं ज़्यादा सेंसिटिव हूं...
अरे ओ बीवी !
ज़रा रिमोट तो देना...
क्यों दिखाते हैं ये फालतू बातें बिकाऊ मीडियावाले
दुनिया में भारत को बदनाम करते हैं...
बंद करो !
इन पैदल चलने वालों
और उनके छालेभरे पैरों को दिखाना...
क्या ज़रूरत है?
एक बात बहुत अच्छी है
कि
यह रिमोट मेरे जैसा ही सेंसिटिव है.
मराठी से अनुवाद: उषा वैरागकर आठले