साहित्य

विष्णु नागर की दो कविता- 1- मोदी 2- गांव की ओर

विष्णु नागर की दो कविता- 1- मोदी 2- गांव की ओर

1- मोदी

मोदी के घर में उसके कई सेवक हैं

उसका वहां कोई भाई, कोई बहन नहीं
उसके आंगन में खेलता कोई बच्चा नहीं
उसके अनुयायी लाखों में है
उसका कहने को भी कोई मित्र नहीं
वह जब आधी रात को चीख़ पड़ता है भय से कांप कर

उसे हिलाकर, जगाकर
‘क्या हुआ’, यह पूछने वाला कोई नहीं
‘कुछ नहीं हुआ’ यह उत्तर सुनने वाला कोई नहीं
ऐसा भी कोई नहीं जिसकी चिन्ता में
वह रात-रात भर जागे
ऐसा कोई नहीं
जिसकी मौत उसे दहला सके

किसी दिन उसे उलटी आ जाए
तो उसकी पीठ सहलाने वाला कोई नहीं
आधी-आधी रात जागकर
उसके दुख सुन सके, उसके सुख साझा कर सके
ऐसा कोई नहीं
कोई नहीं जो कह सके आज तो तुम्हें
कोई फ़िल्मी गाना सुनाना ही पड़ेगा
उसकी एक मां ज़रूर हैं
जो उसे आशीर्वाद देते हुए फ़ोटो खिंचवाने के काम
जब-तब आती रहती हैं

यूं तो पूरा गुजरात उसका है
मगर उसके घर पर उसका इन्तज़ार करने वाला कोई नहीं
उसे प्रधानमंत्री बनाने वाले तो बहुत हैं
उसको इंसान बना सके, ऐसा कोई नहीं.

2- गांव की ओर

जैसे आंधी से उठी धूल हो

लोग शहर से गांव चले जा रहे हैं 

जैसे 1947 फिर आ गया हो 

लोग चले जा रहे हैं 

भूख चली जा रही है  

आंधी चली जा रही है 

गठरियां चली जा रही हैं

झोले चले जा रहे हैं

पानी से भरी बोतलें चली जा रही हैं

जिन्होंने अभी खड़े होना सीखा है

दो कदम चलना सीखा है

जिन्होंने अभी- अभी घूंघट छोड़ना सीखा है

जिन्होंने पहली बार जानी है थकान

सब चले जा रहे हैं गांव की ओर

 

कड़ी धूप है ,लोग चले जा रहे हैं 

बारिश रुक नहीं रही है 

लोग भी थम नहीं रहे हैं 

भूख रोक रही है 

लोग उससे हाथ छुड़ा कर भाग रहे हैं 

महानगर से चली जा रही है उसकी नींव

उसका मूर्ख आधार हँस रहा है

 

 उसका बेटा चला जा रहा है

 मेरी बेटी चली जा रही है

आस टूट चुकी है 

आंखों में आंसू थामे

चले जा रहे हैं लोग

बदन तप रहा है

लोग चले जा रहे हैं

चले जा रहे हैं कि कोई 

उन्हें देख कर भी नहीं देखे

 चले जा रहे हैं लोग

आधी रात है 

आंखें आसरा ढूंढना चाहती हैं

पैर थकना चाहते हैं

भूख रोकना चाहती है

कहीं छांव नहीं है

रुकने की बित्ता भर जमीन नहीं है

लोग चले जा रहे हैं

 

सुबह तब होगी

जब गांव आ जाएगा 

रोना तब आएगा

जब गांव आ जाएगा

थकान तब लगेगी

बेहोशी तब छाएगी

जब गांव आ जाएगा

हाथ में बीड़ी नहीं 

चाय का सहारा नहीं होगा

800 मील दूरी फिर भी

पार हो जाएगी

गांव आ जाएगा

 

एक नर्क चला जाएगा

एक नर्क आ जाएगा 

अपना होकर भी 

जो कभी अपना नहीं रहा

वह आसमान आ जाएगा 

गांव आ जाएगा

 

एक दिन फिर लौटने के लिए

गांव आ जाएगा

फिर आंधी बन  लौटने के लिए

गांव आएगा

मौत आ जाएगी

शहर की आड़ होगी

गांव छुप जाएगा.

 

 

 

ये भी पढ़ें...