साहित्य
भात दे हरामजादे
बांग्ला देश के कवि रफीक आजाद ने यह कविता तब लिखी थीं जब अकाल पड़ा था. इस कविता को लेकर कई नाटक खेले गए हैं. जब-जब यहां-वहां किसी भी देश में कोई गरीब भूख का शिकार होता है तब-तब यह कविता सड़ी-गली व्यवस्था का सीना चीरने के लिए बाहर आ जाती है. फिलहाल सोशल मीडिया में लोग इस कविता को खूब वायरल कर रहे हैं. अपनी सुविधाओं की रजाई को महत्वपूर्ण मानने वाले लोग कृपया इस कविता को न पढ़े.
बेहद भूखा हूं
पेट में , शरीर की पूरी परिधि में
महसूसता हूं हर पल ,सब कुछ निगल जाने वाली एक भूख .
बिना बरसात के ज्यों चैत की फसलों वाली खेतों में
जल उठती है भयानक आग
ठीक वैसी ही आग से जलता है पूरा शरीर .
महज दो वक़्त दो मुट्ठी भात मिले , बस और कोई मांग नहीं है मेरी .
लोग तो न जाने क्या क्या मांग लेते हैं . वैसे सभी मांगते है
मकान गाड़ी , रूपए पैसे , कुछेक में प्रसिद्धि का लोभ भी है.
पर मेरी तो बस एक छोटी सी मांग है , भूख से जला जाता है पेट का प्रांतर
भात चाहिए , यह मेरी सीधी सरल सी मांग है , ठंडा हो या गरम
महीन हो या खासा मोटा या राशन में मिलने वाले लाल चावल का बना भात ,
कोई शिकायत नहीं होगी मुझे ,एक मिटटी का सकोरा भरा भात चाहिए मुझे .
दो वक़्त दो मुट्ठी भात मिल जाय तो मैं अपनी समस्त मांगों से मुंह फ़ेर लूंगा.
अकारण मुझे किसी चीज़ का लालच नहीं है, यहां तक की यौन क्षुधा भी नहीं है मुझ में
मैं तो नहीं चाहता नाभि के नीचे साड़ी बाधने वाली साड़ी की मालकिन को
उसे जो चाहते है ले जाएं. जिसे मर्ज़ी उसे दे दो .
ये जान लो कि मुझे इन सब की कोई जरुरत नहीं
पर अगर पूरी न कर सको मेरी इत्ती सी मांग
तुम्हारे पूरे मुल्क में बवाल मच जाएगा.
भूखे के पास नहीं होता है कुछ भला बुरा कायदा कानून
सामने जो कुछ मिलेगा खा जाऊंगा बिना किसी रोक-टोक के
बचेगा कुछ भी नहीं , सब कुछ स्वाहा हो जायेगा निवालों के साथ
और मान लो गर पड़ जाओ तुम मेरे सामने
राक्षसी भूख के लिए परम स्वादिष्ट भोज्य बन जाओगे तुम .
सब कुछ निगल लेने वाली महज़ भात की भूख
खतरनाक नतीजों को साथ लेकर आने को न्योतती है
दृश्य से द्रष्टा तक की प्रवहमानता को चट कर जाती है .
और अंत में सिलसिलेवार मैं खाऊंगा पेड़ पौधें , नदी नालें
गांव-देहात , फुटपाथ, गंदे नाली का बहाव
सड़क पर चलते राहगीरों , नितम्बिनी नारियों
झंडा ऊंचा किए खाद्य मंत्री और मंत्री की गाड़ी
आज मेरी भूख के सामने कुछ भी न खाने लायक नहीं
भात दे हरामजादे... वर्ना मैं चबा जाऊंगा समूचा मानचित्र