साहित्य

छत्तीसगढ़ के देमार गांव के कुमेश्वर कुमार ने लिखी मुंशी प्रेमचंद को चिट्ठी

छत्तीसगढ़ के देमार गांव के कुमेश्वर कुमार ने लिखी मुंशी प्रेमचंद को चिट्ठी

प्रिय प्रेमचंद जी

मैं स्वस्थ प्रसन्न नहीं हूं. सांस्कृतिक भौगोलिक भिन्नताओं के बावजूद मेरी गति, धुन, गंध, सादगी और निश्छलता हिन्दुस्तान के किसी भी गांव की तरह है.  लमही हो या कोई भी गांव. हमारा एक ही पेट हैं और हमारी एक ही पीड़ा है.

आपसे पहले किसी अदीब ने हमारी इतनी सुध नहीं ली. आपने हमें मान सम्मान दिया. हमारे सुख दुःख, आस निराश, जीवन मरण को महसूस किया. किसानों मज़दूरों की दशा गिनाई. हमारे शरीर में उभरी साम्प्रदायिकता, जातिवाद, छुआ छूत, भूख, गरीबी, अज्ञानता, अन्धविश्वास, शोषण जैसे घावों की ओर संकेत किया. नैतिकता की दुहाई दी.

लेकिन आज ग्लोबल विलेज के नाटक में आपके लिखित नाटक मुंह बाए खड़े हैं. हम गांव को खदेड़ कर शहर चले आ रहे हैं. किसानों के खेतों पर मिल और कारखाने अट्टहास कर रहे हैं. श्रमिकों की कराहती कोठरियों पर दुकानें खिलखिला रही हैं. चारागाह के अभाव में पशुओं के झुण्ड गौठान में दुबराते खड़े हैं. हर तरफ बाजार का हल्ला है. तुम्हारे उपन्यास और कहानी के पात्र आज सिर्फ उपभोक्ता हैं. तुम्हारे विचित्र पात्र इतने सालों बाद यथावत कैसे रह सकते हैं? सब काइयां और कपटी हो गए हैं। इन चरित्रों के मनोविज्ञान बड़े जटिल हो गए हैं. उनका ब्लैक एंड व्हाइट सरलीकरण असंभव है। 

अलगू चौधरी और जुम्मन शेख अलग अलग राजनीतिक दलों के मॉडल हो गए हैं. पंच परमेश्वरों के नेतृत्व में सारे गांव दो फाड़ हो गए हैं. पंचायती राज का झुनझुना बजा रहे गंवार चुनावों में मांस मदिरा से लहालोट हैं. बड़े घर की बेटी हो या सोना रूपा, सुहानी प्रत्येक वर्ग की महिलाएं असुरक्षित हो गई हैं. बताते हैं, 'बूढी काकी' को वृद्धावस्था पेंशन मिलता है फिर वह भीख मांगती घूमती है ? और होरी की तो मत पूछो... वे बीज, रासायनिक खाद, ट्रैक्टर किराया और कीटनाशक दवाओं के कर्ज में डूबकर आत्महत्याएं कर रहे हैं...! धनियाओं की चूड़ी उतर रही है. गोबर ईंट भट्ठे में बंधुवा है. किसान अब मज़दूर हो रहे हैं और मज़दूर फाकों में दिन काट रहे हैं. हामिद और जानकीनाथ पढ़ना- लिखना भूलकर व्हाट्स एप्प पर गंदे जोक और नफरतों के सन्देश भेज रहे हैं... मोबाइल पर पोर्न देख रहे हैं.

ग्रामीण ढांचा पूरी तरह डांवांडोल है. हमें शहर बनाने पर तुले मतलबपरस्तों की शैली, सोच और व्यवहार में भारी तब्दीली आ गई है. आपके उपन्यास और कहानी के पात्र वहां की आपाधापी से तंग आकर हम गांव की गोद में गुजर बसर करते थे. कथा साहित्य का यह सुखान्त अब भयानक लगता है.

ज्यादा क्या लिखूं ... आप खुद समझदार हो. कम लिखे को ज्यादा समझना...

आपका

कुमेश्वर

देमार, थाना- अर्जुनी, जिला- धमतरी, पटवारी हल्का नंबर 19, छत्तीसगढ़

 

 

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