साहित्य

मुंबई में गूंज उठी बस्तर की दास्तां

मुंबई में गूंज उठी बस्तर की दास्तां

रायपुर. उदारीकरण के इस दौर में जहां हर कहीं पैसा बोलता है, वैसे में मुंबई जैसे महानगरों में भौतिक संसाधन के लिए मची होड़ के बीच विकास के क्रम में पिछले पायदान पर अबतक रहने वाले बस्तर की दास्तां गूंज उठी. दरअसल, बीते दिनों मुंबई प्रेस क्लब में श्रुति संवाद कला अकादमी की ओर से आयोजित सम्मान समारोह में बस्तर के रहने वाले देश के प्रसिद्ध प्रगतिशील किसान व संवेदनशील जनकवि डॉ राजाराम त्रिपाठी ने अपनी कविता ‘मैं बस्तर बोल रहा हूं’ के माध्यम से बस्तर की दशा-दिशा से लोगों को परिचित कराया. कविता मानों शब्दचित्र गढ़ रही हो. डॉ त्रिपाठी ने इसके इतर कई अन्य कविताओं का भी पाठ किया. कविता की पंक्ति – ‘हां मै बस्तर बोल रहा हूं., अपने जलते जख्मों की कुछ परतें खोल रहा हूं...जल जंगल जमीन के बदले, मुफ्त का चावल तौल रहा हूं, हां मैं बस्तर बोल रहा हूं.../  लोगों को बस्तर की दर्द के साथ एकाकार कर दिया. 

सम्मान समारोह में डॉ. त्रिपाठी को साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया. डॉ त्रिपाठी के सम्मान में प्रशस्ति-पत्र डॉ मेधा श्रीमाली ने पढ़ा. उल्लेखनीय है कि डॉ त्रिपाठी की ‘मैं बस्तर बोल रहा हूं’ प्रतिनिधि  कविता है, डॉक्टर त्रिपाठी की इस कविता के बाद ही रचनाकारों में बस्तर की व्यथा कथा को कविता इस तेवर में ढालने का चलन चल निकला है. इसके अलावा उन्होंने पद्य और गद्य में भी काफी लेखन किया है. जनजातीय समुदाय पर केंद्रित साहित्यिक व समाचार पत्रिका ‘ककसाड़’ व वैश्विक मामलों की अंग्रेजी पत्रिका ‘कल्ट करंट’ का संपादन करते हुए देश-विदेश के पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन करते रहे हैं. समारोह में श्रुति संवाद कला अकादमी के अध्यक्ष अरविंद राही ने डॉ. त्रिपाठी के साहित्यिक उपलब्धियों से लोगों को रू-ब-रू कराया. 

डॉ. त्रिपाठी ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि कविता अनुभवों के झंझावात से छन कर स्वतः बहती है. कोई भी कविता आस-पड़ोस, गांव-समाज, रिश्ते-भावनाओं के नम धरातल पर अंकुरित होती  है. मैं बस्तर के सुदूर गांव कहें या जंगल, मैं वहीं रहता हूं. आस पास जो चीजें घटित होती हैं, वह मुझे संवेदित करती है. मेरी कविताएं या अन्य लेखन का विषय ज्यादातर गांव-खेती-किसानी से संवंधित है. मैं स्वयं एक किसान हूं. 

उन्होंने आगे कहा कि अगर देश की कृषि के बारे में बात की जाए, तो यह भारत के कृषि का कृष्णपक्ष है. कृषि आईसीयू में है. इसके उद्धार के लिए संजीदा इलाज की जरुरत है. उन्होंने कहा कि उनके नेतृत्व अकिल भारतीय किसान महासंघ ने किसानों की आर्थिक स्थिति में बेहतरी के लिए किसानों के पेंशन के लिए सरकार को सुझाव दी थी, जिसे सरकार ने मान लिया और किसान पेंशन योजना की शुरुआत हुई है. इसके लिए उन्होंने सरकार को बधाई तो दी लेकिन उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र को आईसीयू से निकालने के लिए नीतिगत स्तर पर बड़े फैसले लेने की आवश्यकता है. इसके बगैर हम भारतीय कृषि के शुक्लपक्ष की कल्पना नहीं कर सकते.

सम्मान समारोह के पश्चात आयोजित कवि गोष्ठी में वरिष्ठ कवि पं. किरण मिश्र ‘अयोध्यावासी’, चित्रा देसाई, नीलम दीक्षित, रासबिहारी पांडे, अरविंद राही, अलका पाण्डे, रीता दास, सुरेश शुक्ल ने काव्य पाठ किया. हिंदी पत्रकार संघ के महासचिव विजय सिंह ने डॉ त्रिपाठी की कृषि क्षेत्र की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला. अतिथियों का स्वागत सुरेश शर्मा तथा डॉ रश्मि पटेल ने किया।

 

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