साहित्य

अंजन कुमार की कविताएं

अंजन कुमार की कविताएं

भिलाई के कल्याण महाविद्यालय में बतौर सहायक प्राध्यापक कार्यरत अंजन कुमार ने नाट्य संस्था कोरस से जुड़कर कई नाटकों में अभिनय किया. धीरे-धीरे वे कविताओं की ओर मुड़ गए. उनकी कविताएं खौफनाक समय से मुठभेड़ करती है. यहां अपना मोर्चा डॉट कॉम की तरफ से प्रस्तुत है उनकी कुछ चुनिंदा-बेजोड़ कविताएं.

 

आवाज

जब धुंध गिर रही हो चारों तरफ

रास्ते सुरंग में

और आदमी सायों में

बदल रहे हो

धुंध और सन्नाटा

कुछ इस तरह

बुन रही हो रात

कि किसी को पहचानना भी

मुश्किल हो रहा हो

तब

एक आवाज ही बच जाती है

जिसके सहारे

पहचाना जा सकता है आदमी।


हाथ

रोशनी चली जाये अगर

और अंधेरा हो जाये

अंधेरा इतना

कि रास्ता तक दिखाई न दे

चलना तक हो जाये मुश्किल

 

तब हाथ ही होते हैं

जो आँखों का काम करते हैं

जिसके सहारे ढूँढते हैं रास्ता

बढ़ते हैं आगे

अंधेरे में

ये हाथ ही होते हैं

जे ढूँढ निकालते हैं

हमारी खोई हुई रोशनी

बस, हाथों को

रोशनी का पता होेना चाहिए ।

 बाघ

अपनी शानदार खाल

चाटता हुआ

खुश था बाघ

कि सारा जंगल डरता है

उसके मजबूत दाँतों से

और तेज नाखूनों से

बाघ

इतना खुश था

कि बाघ ही रहा

निकला नहीं

कभी जंगल से बाहर

और एक दिन

अपनी शानदार खाल

मजबूत दाँत

और तेज नाखूनों के कारण ही

वह मारा गया.     

 

अंधेरे की उजली गुफा

उदास चेहरों के बीच

एक लालटेन थी

जिसमें अंधेरा नहीं

समय जल रहा था

अंधेरा

उजाले की मोटी दीवार के पीछे खड़ा हंस रहा था

उन कटे हुए हाथों पर

जो जमीन में हाथ गड़ाये

ढंूढ रहे थे अपनी घड़ी

जिसमें समय न जाने कब से

दफ्न पड़ा था

उन बूढ़ी आँखों पर

जो ढूंढते  हुए अपनी आँखों की रोशनी

ले आये थे मुफ्त में

जीवनभर का अंधेरा अपने लिए

उन स्त्रियों पर

जो गई थी देश के विकास में नसबंदी कराने

और दे आई थी अपनी जानें

उन तमाम लोगों पर

जो सायों की तरह उतरते सीढ़ियाँ

अपने घरों की

और गुम हो जाते भीड़ में

अपने खो चुके चेहरों की तरह

अंधेरा हंस रहा था

जिस उजाले पर

एक अंतहीन अंधेरे की उजली गुफा थी

एक तिलस्म अनंत इच्छाओं और भूख का

जिसकी मोहपाश में बंधें

गिरते है जहाँ, एक-एक कर

ठगे, पर फूले हुए चेहरे लिए

आश्चर्य लोक के यात्री बन सभी

उजाले के शोर में गुम

बाँधें हुए आँखों पर रंगीन चमकदार पट्टी

सब दिखते एक से

एक से भाव और उत्तेजना में लिप्त

अपने को ही उधेड़ते

खोलते आदिम वासनाओं के द्वार

भटकते रिक्तता के मरूस्थल में

उजाले की चमकती मृगमरीचिकाओं के साथ

रेत होते जीवन तक

जहां पाने के लिए कुछ भी नहीं

एक और नई इच्छा के सिवा

और इच्छा भी किसी इच्छाधारी सर्प की तरह

अपना रूप बदल-बदलकर डसने को तैयार

जहर बुझे तीरों की तरह आँखों को बेधती हुई

विषाक्त करती पूरे जीवन को

मैं गिरता हूँ इस उजली गुफा में

सूखी चाम पर

चूसी गई हड्डियों पर

पथराई आँखों पर

क्षत-विक्षत भूखी नंगी सैकड़ों मृत देहों पर

दबी हुई योजनाओं के बड़े-बड़े

विज्ञापनों के नीचे

जो कभी खबर नहीं बन पायी

किसी भी अखबार की मुख्य पृष्ठ की

ना ही दिखाई गई बार-बार किसी भी टी.वी. चैनल पर

जैसे दिखा दी जाती है अक्सर

किसी माडल के अधोवस्त्र के गिरने की खबर

बार-बार लगातार पूरी रोचकता के साथ

एक उजली और चमकदार गुफा है यह

जिसमें हर बड़ा चेहरा

प्रेतआत्माओं-सा घेरे हुए

लगातार लगा हुआ है

 

आत्महीन

विवेकहीन

चरित्रहीन

और व्यक्तित्व विहीन

करने में हमें।


मृत्यु के संगीत पर

 

एक नयी भाषा में

रची जा रही है दुनियाँ

जिसमें न हमारी आत्मा होगी           

न हमारी संस्कृति

और न ही हमारे जमीन की गंध

 

बदल जायेंगी जहाँ

जीवन की सारी परिभाषाएँ

बदल जायेगें स्वप्नों के अर्थ

 

स्वाद

जीभ तक सिमटकर रह जायेंगे

और भूख निकल आयेगी

पेट से बाहर

 

आदर्श

जूते की तरह

पहने जायेंगे

बदले जायेंगे मूल्य

कपड़ों की तरह

 

जहाँ विकास और विनाश में

कोई फर्क नहीं होगा

 

रात

जहाँ दिन से अधिक

चमकदार होगी

 

और

जीवन जहाँ नाचेगा

प्रेत की तरह

मृत्यु के संगीत पर।


एक रंग

एक रंग

ऐसा भी है

जिसे देख

अब श्रद्धा नहीं

 

उपजती है घृणा

उपतजा है क्रोध

उपजता है असंतोष

आती है उबकाई-सी

 

जिसने तमाम रंगों को

बांट दिया

रहने नहीं दिया

रंगों को रंगों की तरह

जीवन में

 

मिल-जुल कर

प्रेम से।

दीवार घड़ी

( एक ) 

रोज सुबह

आदत के मुतााबिक      

जब देखता हूँ दीवार की तरफ

तो याद आता है

अरे, यह तो बंद पड़ी है कई दिनों से

रोज सोचता हूँ

किसी अच्छे घड़ीसाज से

सुधारवा लूँ इसे

और अक्सर भूल जाता हूँ

अपनी व्यस्तता में

 

क्या करूँ

ऐसा लगता है मानों

किसी ने इसके कांटे निकालकर

दिमाग में फिट कर दिए हों

ताकि इसे देखने की जरूरत ही न पड़े

और चाबी अपने पास रख ली हो

जैसे समय के कांटों पर

उसी का हक हो

 

कांटों से याद आया

घड़ी का सबसे सुन्दर

वह छोटा-सा सेकण्ड का कांटा

जो सबसे तेज चलता था

जिसके कारण ही

घंटे और मिनट के कांटे आगे बढ़ते थे

जिसके कारण

घड़ी के चलने का पता चलता था

जिसके चलने की आवाज से

लगता था मानो

घर की धड़कने चल रही हों

रात घर की कोई पहरेदारी कर रहा हो

कोई खामोशी को तोड़

खालीपन को भर रहा हो

इसके यंू बंद पड़ने से

सन्नाटा सा पसर गया है घर में

हर चीेज जैसे ठहर सी गई हो घर की

यहाँ तक की हवा भी

इसकी आवाज के बिना

कितनी गहरी लग रही है रात

कितना वीरान लग रहा है घर

कितना खालीपन महसूस कर रहा हूँ मैं

दीवार पर

अनापेक्षित-सा टंगा होने के बावजूद

एक जरूरी हिस्सा था यह घर का

जिसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता इस हालत में

इसे ठीक करना ही होगा

ढूँढना ही होगा

कोई अच्छा घड़ीसाज।

 

( दो ) 


जिस घड़ीसाज को

मैंने घड़ी ठीक करने के लिए दी थी

उसने बदल दिये हैं

मेरी घड़ी के कांटे

 

निकाल दिया है उसने

मेरी घड़ी से सेकण्ड का वह कांटा

जो सबसे छोटा था

लेकिन सबसे तेज चलता था

पूछने पर बताया उसने-

कि बेकार हो गया था वह

और उसी की वजह से

बार-बार बंद पड़ जाती थी घड़ी

वैसे भी  

जब उसके बिना भी देखा जा सकता है समय

तो क्या जरूरत है उसकी

बाजार में अब तो

ऐसी सैकड़ों घड़ियाँ आ गई हैं

जिनमें सेकण्ड का कांटा होता ही नहीं

पर जिन्हें खरीदते हैं लोग

ले जाते हैं बड़े शौक से

देखते हैं समय

 

घड़ीसाज से

मैं अपनी घड़ी ले तो आया हूँ

पर जब भी देखता हूँ उसे

तो याद आता है मुझे

सेकण्ड का वह सबसे छोटा कांटा

जिसके बिना कितनी अधूरी लगती है यह घड़ी

 

यह घड़ी

जिसमें समय तो दिखता है

पर नहीं दिखता

सेकण्ड का वह छोटा-सा कांटा

जो बिना रूके, बिना थके

लगातार चलता रहता है।


मौतें

कुछ मौंते इतनी

क्रमिक और सुनियोजित ढंग से होती है कि

मरने वालों को पता ही नहीं चलता

कि वह कब मर गया

 

वह अपने हत्यारों के ही हाथों से

होता है सम्मानित

पाता है ढेरों पुरस्कार

उसके हत्यारें ही बन जाते हैं

उसके घनिष्ट मित्र

और उसे अपनी मौत का एहसास ही

नहीं होता

 

अखबार और टी.वी. चैनलों में

दिखाई देते हैं उसके

ढेरों जिन्दा तस्वीरें

और छुपा ली जाती है

उसकी मौत की खबर

 

जबकि

ऐसे मौतों की संख्या

होती है सर्वाधिक

और बढ़ती जा रही है लगातार. 

 

 

नाम                      - डा. अंजन कुमार                 

 

जन्मतिथि             वर्ष 1976

 

शिक्षा                    - एम.ए.(हिन्दी),  बी.एड.,  एम.फिल,  नेट,  सेट,  पी. एच. डी.

 

शोध कार्य             - पाब्लो नेरूदा और शमशेर बहादुर सिंह की रचनाओं का तुलनात्मक विवेचन  

 

संप्रति                   - सहायक प्राध्यापक,  हिन्दी विभाग,  कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय,  सेक्टर-7,

                                भिलाई नगर,  जिला-दुर्ग,  (छ.ग.), पिन-490006

 

प्रकाशन               - विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं एवं समीक्षाएं प्रकाशित।

 

अन्य                     - लम्बे समय तक रंगकर्म में सक्रिय।

 

पता                      - क्वा. नं.-4 , सड़क नं.-1, सेक्टर-8, भिलाई नगर,

                                जिला-दुर्ग, (छ.ग.) , पिन-490006,

                                मोबा. नं.- 9179356307, 9179385983

 








 

             

 

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