विशेष टिप्पणी

...तो ऐसे थे पत्रकार कमाल खान

...तो ऐसे थे पत्रकार कमाल खान

साल याद नहीं आ रहा, लेकिन इतना याद है वह एनडीटीवी की ओर से हज कवर करने गए हुए थे। उनकी वहां से आने वाली रिपोर्ट देखने से ताल्लुक़ रखती थीं। उसी दौरान उनसे फ़ोन पर बात हुई। शायद उनका फ़ोन आया था किसी बारे में पूछने के लिए तो मैं ने उनकी तारीफ़ के साथ साथ कहा कि इसी बहाने उन्हें हज करने का मौक़ा मिल गया है। कहने लगे-मैं हज नहीं कर रहा हूं। मैंने कहा -उमरा तो करेंगे। कहने लगे- वह भी नहीं। मुझे हैरत हुई कि इतना अच्छा मौक़ा मिला है वह जाने कैसे दे सकते हैं। कहने लगे कि-मुझे मेरे चैनल ने इतना पैसा खर्च कर के यहां हज करने के लिए नहीं बल्कि हज को कवर करने के लिए भेजा है।

मैंने कहा -क्या दोनों साथ साथ नहीं हो सकते? किसी का नाम लिया कि वह यह झूठ बोल कर कि सिगनल नहीं आ रहे हैं यही करने गए हैं। वे बोले-मुझ से इतना बड़ा झूठ नहीं बोला जाएगा, और वह भी अल्लाह के घर में। मैं ने कहा-हज तो हो जाएगा। कहने लगे-एक हिंदू प्रणॉय रॉय ने मुझ पर भरोसा कर के कि मैं उसके चैनल के लिए हज की कवरेज करुंगा, मुझ पर कई लाख रुपए ख़र्च किए हैं और मैं यहां आकर यहां आने का मक़सद भूल कर कुछ और ही करने लगूं तो यह ग़लत होगा। अल्लाह कैसे मेरा हज क़बूल करेगा? हां इंशाअल्ला जब भी मौक़ा मिला अपने ख़र्च पर हज करूंगा और यही इस्लाम कहता भी है।

उनकी बात सुन कर हमें खुद से ही उस समय शर्म सी महसूस हुई क्योंकि हम उस दौरान ऑफिशल डेलिगेशन में शामिल होने के लिए कोशिश कर रहे थे। कमाल ख़ान से बात करने के बाद हमने जिनसे इसके लिए कहा था और जो कि लगभग हो ही जाने वाला था, अपना नाम वापस लेने के लिए कहा और कमाल ख़ान का जुमला दोहरा दिया कि अपने पास होगा तो उसी से हज करेंगे। हमें नहीं मालूम इतने पास जाके भी अपने उसूलों के लिए जो शख़्स इतना मज़बूत रहा हो, क्या उसका हज न होकर भी हो न गया होगा ? अल्लाह बेहतरीन अज्र देने वाला है। लेकिन हम तब से उन्हें हाजी मानते हैं।

- तहसीन मुनव्वर

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