विशेष टिप्पणी

दूसरों का कंधा इस्तेमाल करने मे माहिर थे सावरकर

दूसरों का कंधा इस्तेमाल करने मे माहिर थे सावरकर

लंदन का इंडिया हाउस, भारतीय स्वतंत्र्यवादियो का मीटिंग स्थल था। यहाँ सावरकर ने एक सीक्रेट सोसायटी बनाई- अभिनव भारत। इसके एक सदस्य थे- मदन लाल ढींगरा। 

 

फिर वे इंडिया हाउस में कम, टोटेन्ह्म रोड के शूटिंग रेंज में ज्यादा दिखाई देते। मिशन की तैयारी में थे, मिशन था- लार्ड कर्जन को मारना

 

वही कर्जन, जिसने इंडिया के वाइसराय रहते, बंगाल विभाजन किया। मदनलाल ने कर्जन की हत्या के तीन प्रयास किये-फेल!! कभी हिम्मत न होती, कभी जगह पर पहुचने में लेट हो जाते।

 

गुरुवर सावरकर अपमानित करते। शर्मिंदा ढींगरा ने आखिर "अबकी बार- कर्जन पे वार" की कसम के साथ फाइनल अगला प्रयास किया। 

 

पर, मैं देर करता नही, देर हो जाती है। फिर से देर हो गयी। कर्जन भाषण देकर जा चुके थे। लेकिन कर्जन का भतीजा, कर्जन वाईली सामने मिल गया। इस बार खाली हाथ न जाने की कसम थी। ढींगरा ने भतीजे को ही गोली मार दी। 

 

मुकदमा चला, सावरकर भी गिरफ्तार हुए, मुकर गए। उनके खिलाफ सबूत नही। छूट गए। 

 

ढींगरा, फांसी चढ़े। 

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सावरकर के बड़े भाई इंडिया में अभिनव भारत के लिए सक्रिय थे। नासिक के कलेक्टर को मारने का प्लान बना। इस बार भी पैटर्न वही- किसी दूसरे क्रांतिकारी को उकसा कर गोली चलवाना। 

 

अनंत कन्हारे को उकसाया गया। घुट्टी पिलाई गयी, और पिस्तौल दी गयी। कन्हारे ने कलेक्टर को मार गिराया। फांसी चढ़ गए। 

 

लेकिन लफड़ा हो गया। पिस्टल जो थी, वो ट्रेस होकर बड़े सावरकर तक गयी। वहां से मामला छोटे सावरकर तक गया। इंग्लैंड से उन्होंने ही दस पिस्तौल स्मगल करके इंडिया भेजी थी। 

 

स्कॉटलैंड यार्ड को तार गया। छोटे सावरकर, दो साल पहले ढींगरा मामले मे संदेही थे, पर सबूत के अभाव में छूट गए। मगर इस बार मामला पुख्ता था। पकड़ लिया गया, और ट्रायल के लिए भारत लाये गए। 

 

बीच मे जहाज से कूदकर भाग निकले। फिर पकड़े गए। भारत मे उन्हें उम्रकैद हुई। खतरनाक अपराधी मानकर उन्हें लाकर उन्हें कालापानी भेजा गया।

 

माफी मांगकर छूटे। अनंत कन्हारे फांसी चढ़ गया। 

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तीसरा शिकार आप सब जानते हैं। इस बार ट्रिगर पुल करने के लिए गोडसे चुना गया। कोर्ट में आखरी बयान, जो बड़ा मशहूर है, असल मे सावरकर की भाषा शैली से मिलता है, गोडसे की नही। 

 

उसमे वह भारत विभाजन, पाकिस्तान को रिजर्व बैंक के हिस्सेदारी के पैसे जारी करने की गांधी की अनुशंसा आदि को कारण बताता है। पर सच यह है कि उसने हत्या का पहला प्रयास 1943 में ही कर चुका था। तब न पार्टीशन था, न पाकिस्तान। 

 

लेकिन सावरकर तब भी थे। वे 1966 तक रहे। किसी शातिर क्रिमिनल की तरह गांधी मर्डर में भी उनके खिलाफ सबूत न मिला, तो छूट गए। भरी पूरी उम्र, बाल बच्चेदार होकर मरे। 

 

गोडसे 1948 में फांसी चढ़ गया। 

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एक और शिकार, एक और शिकारी हो सकता था। जिन्ना को मारने के लिए चंद्रशेखर आजाद को सुपारी ऑफर की थी, बड़े सावरकर ने। पिस्तौल और पचास हजार रुपये देने को सहमत थे। 

 

आजाद ने कहा - हमे भाड़े का हत्यारा समझता है महानखोर 

 

(सिंहावलोकन-यशपाल) 

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और वो पिस्तौलें, कहते हैं 10 नही असल मे 20 बरेटा स्मगल होकर भारत आई थी। 3 का हिसाब दे चुका। बाकी अब भी कहीं मौजूद हैं। किसी गांधी पर इस्तेमाल के इंतजार में हैं। 

 

सावरकर के पूजक उनकी नीति पर चलते हैं। खुद देश, समाज, हिन्दू हित की बातें कर राजनीति के आकाश पर राज करते हैं। और आपके बच्चो, भाइयों, पिताओं, दोस्तों को वही "बरेटा" पकड़ाकर ... 

 

गोडसे, कन्हारे, ढींगरा, या भक्त बना देते हैं।

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