विशेष टिप्पणी

पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की संपादकीय पर बिग्रेडियर प्रदीप यदु और निगम ने जताई गंभीर आपत्ति

पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की संपादकीय पर बिग्रेडियर प्रदीप यदु और निगम ने जताई गंभीर आपत्ति

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के मीडिया के विज्ञापन बंद करने संबंधी सुझाव पर पिछले दिनों पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने संपादकीय लिखी थी. इस संपादकीय पर छत्तीसगढ़ के बहुत से लोगों ने असहमति जताई है. हमारे पास ब्रिगेडियर प्रदीप यदु और एलएस निगम की आपत्ति पहुंची है जिसे यहां हम अपना मोर्चा के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. बिग्रेडियर यदु ने अपनी आपत्ति पत्रिका के राजस्थान स्थित कार्यालय को भी भेजी है. जनसामान्य की हर खबर को महत्व देने का दावा करने वाले इस अखबार में उनकी आपत्ति कब छपती है ? छपती है भी या नहीं... यह देखना फिलहाल बाकी है.

 

आदरणीय डॉ गुलाब कोठारी जी ,

1. आशा करता हूँ कि आप सपरिवार स्वस्थ होंगे , प्रसन्न होंगे । मेरी शुभकामनाएं स्वीकारें ।

2. इस राष्ट्रीय त्रासदी से पूरा देश  अभूतपूर्व परिस्थितियों से गुज़र रहा है । कुछ लोग जी जान लगाकर इससे लड़ रहे हैं , कुछ उनकी मदद कर रहे हैं , कुछ   इस त्रासदी के कारण जानने का प्रयास कर रहे हैं तो कुछ अभी भी अपना प्रिय खेल हिन्दू-मुस्लिम खेल खेलने से बाज नही आ रहे हैं ।आम भाषा में कही जाने वाली "गोदी मीडिया" या "बिकी मीडिया" सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ी दिखाई पड़ रही है जो शतक के स्कोर की तरफ तीव्र गति से बढ़ रही है ? इस बात को आपसे बेहतर कौन जान सकता है ?

3. इस लॉकडाउन में देश विदेश की खबरों को पढ़ने का अवसर मिला है , आपके सम्पादकीय भी इससे अछूते नही हैं , "पत्रिका' उठता हूँ तो सबसे पहले इन्ही लेखों पर नज़र टिक जाती है ये सोचकर कि एक निष्पक्ष लेख पढ़ने का मौका मिलेगा ? थोड़ा विचलित हूँ ये देखकर कि आपकी कलम में निष्पक्षता तथा सशक्तता की धार में कमी आ गई है ? अगर पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य सच की नींव पर टिका है तो हर जागरूक पाठक का उद्देश्य उस सच को खरे माँपदण्ड पर आंकलन करने का भी है , ऐसा में मानता हूँ ।

4. जबाबदेह कौन ?  बड़ी सावधानी से आपने लेखनी का स्टीयरिंग जिले के जिलाध्यक्ष तथा पुलिस अधीक्षक की ओर मोड़ दिया ये कहकर की केंद्र के गृह मंत्रालय ने कठोर निर्देश दिए हैं ताकि अन्तर्राज्यीय आवागमन को रोका जा सके , आपने सही कहा है पर आप इन छोटी मछलियों को ना पकड़ दिल्ली की  बड़ी मछलियों को पकड़ते तो बेहतर होता ? क्या दिल्ली में बैठी सरकार सो रही थी जब WHO ने 30 जनवरी को कोरोना को  वैश्विक त्रासदी बताते हुए अग्रिम चेतावनी दी थी ? हम तो तब कुआं खोदेंगे जब आग लग जायेगी ,इस पर आपकी कोई टिप्पणी देखने को नही मिली , शायद " नमस्ते ट्रम्प " इस त्रासदी के ऊपर भारी था ? आपने ये बताने की भी ज़हमत नही उठाई कि हज़ारों मजदूरों के दिल्ली के आनंद विहार में जमावड़े के लिए कौन जिम्मेदार था ? केंद्र सरकार ? दिल्ली सरकार? उत्तरप्रदेश सरकार ? जिलाध्यक्ष या पुलिस अधीक्षक ? बड़ी शार्क का निवाला बनने के लिए देश में छोटी मछलियां बहुतायत में हैं और मीडिया का "चतुर तड़का" भोजन को और स्वादिष्ट बना देता है । जब तक इन शार्कों के दांत सुरक्षित रहेंगे , देश तो असुरक्षित रहेगा ही ? पता नही आप मेरी बात से सहमत हैं कि नही , क्योंकि आप पत्रकारिता के भीष्म पितामह हैं और मैं महाभारत की लड़ाई में कौरवों की सेना का एक छोटा सा अंजान सैनिक ?

5. कोरोना मरे पर लोकतंत्र नही ? सोनिया गांधी के सुझावों को तो आपने सिरे से ही खारिज कर दिया, महोदय ? पांचों में से एक भी नही जँचा - तीन साधारण थे , चौथे से थोड़ी बहुत कोरोना की लड़ाई लड़ी जा सकती है पर पांचवां तो बिल्कुल गलत सुझाव लगा जिसमें विज्ञापनों की बात की गई थी ? आपने तो इस सुझाव को चौथे स्तम्भ पर सीधा प्रहार ही बता दिया , ये भी कह दिया कि ये एक अलोकतांत्रिक सुझाव है, मीडिया पर इमरजेंसी है , पत्रकारिता बंद हो जाएगी क्योंकि मंहगाई बहुत बढ़ गई है ? सही बात है ;  अगर हमारी रोटी ही सरकार के विज्ञापनों पर चलती है तो लाज़िमी है कि कलम की धार को अपना "तीखापन" तो कम करना ही पड़ेगा ?असंवैधानिक पदों पर आसीन , संगठनों के प्रमुख , सरकार के चहेते पूंजीपति , मीडिया घरानों की सुरक्षा में भी तो पैसा लगता है ,इसे थोड़े ही बंद किया जा सकता है ? हमें चिंता नही होनी चाहिए कि विधायकों की खरीद फरोख्त में और सत्तारूढ़ दल के आलीशान महलरूपी दफ्तरों के लिए पैसा कहां से आया ? अरे ये तो विदेश में निवास कर रहे ललित मोदी , नीरव मोदी , मेहरुल चौकसी , विजय माल्या व सन्देसरा का दान है , बड़े बड़े उद्योगपतियों का चढ़ावा है , आम आदमी का पैसा है ही नही तो आम आदमी इसपर कैसे तांका- झांकी कर सकता है ? जब हम पर आंच आती है तो हमें किसी ना किसी प्रकार की शील्ड सामने रखनी ही पड़ती है ताकि हम इस तपन में ना जलें , हैं तो बहुत लोग जलने वाले जो पैदल ही दिल्ली से सैकड़ों मील का सफर कर अपने घरों की ओर दौड़ रहे हैं - वो जलें हम क्यों अपनी त्वचा को धूप में झुलसायें ? 

6. प्रयासों पर पत्थर ? बड़ा सटीक चित्रण है राजस्थान की जनता की उदंडता का , बिल्कुल गलत किया जो विधायक अमीन काग़ज़ी ने किया , गलती उन गरीबों की है जिनका पेट कभी भरता ही नही ? और भरे भी कैसे क्योंकि ये तो "हिन्दू-मुस्लिम" के क्रिकेट मैच में पाकिस्तान टीम के हरी ड्रेस पहने खिलाड़ी हैं , बेचारे हमेशा मज़बूत हिंदुस्तानी भगवा रंग की ड्रेस पहने खिलाड़ियों के चौके / छक्कों को बाउंडरी लाइन के पार जाने से रोकने की जद्दोजहद में ही लगे रहेंगे ? "अनप्रोफेशनल" खिलाड़ी हैं ये, जो "अंपायर बनी मीडिया" की बातों को मानते ही नही ?जब से "तबलीगी जमात" नामक खिलाड़ी ने टीम में प्रवेश किया है ,मानों हिंदुस्तानी टीम और मीडिया अंपायर का परस्पर समन्वय इतना प्रगाढ़ हो गया जैसे " फेविकोल का जोड़ " हो जो भीम के सौ हाथियों की ताकत से भी अलग नही किया सकता ? माननीय , क्या आपको योगी आदित्यनाथ की मूर्ति स्थापना , शोलापुर की रामननवमी यात्रा , वर्धा के भाजपा विधायक के जन्मदिन पर खड़ी सैकड़ों की भीड़ , तेलंगाना के भाजपा विधायक का मशाल जुलूस , तिरुपति के 40 हजार भक्तों की भीड़, शिर्डी के 20 हजार दर्शनार्थी , वैष्णों देवी के 5 हजार पर्यटक नज़र नही आये जिनका अपराध उतना ही है जितना तबलीगी जमात के आयोजककर्ता का है। सिर्फ निज़ामुद्दीन नज़र आया ,देश में भगवाधारी खिलाड़ियों की गंदी करतूतें नज़र नही आईं ? ये मान्यता तो सरासर गलत तथा निंदनीय है कि " तुम्हारा कुत्ता - कुत्ता पर मेरा कुत्ता टॉमी "? एक उंगली जब सामने वाले पर उठती है तो तीन का इशारा अपने ऊपर होता है ।ये कहावत तो अब शायद किताबों में ही कैद हो गई है , मीडिया को इससे क्या मतलब ? हम तो उसी का भजन गाएंगे जो हमारी दुकान चलाता है , बाकियों से हमें क्या ? जिस टीम के खिलाड़ियों को राष्ट्रपति बनने के अवसर मिलें हो , देश के मुख्य न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त हो , मुख्य चुनाव आयुक्त भी बने हों , मरणोपरांत परमवीर चक्र भी मिला ही , ये उपलब्धियां मीडिया के लिए कोई मायने ही नही रखती हैं । इस गोदी मीडिया का काम ही है कि देश में धर्म व जाति के नाम भेदभाव बढ़ाया जाय और सत्तारूढ़ दल की इस नीति को जो शायद देश के मध्य स्तिथ "जीरो माइल " से निर्धारित होती है ,उसे अच्छी तरह पूरे जोर शोर से हवा दी जाय ; जब तक देश में आग नही लगेगी हम अपने हाथ कैसे सेंक पायेंगे ? शर्मनाक मीडिया की शर्मनाक नीति जिसे पूरा विश्व देख रहा है पर मीडिया को इसकी चिन्ता थोड़ी है कि देश की छवि तार तार हो रही है और हम सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं।

7. किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि तैरते तो वही हैं जो जिंदा होते हैं , धारा के साथ तो मुर्दे ही बहते हैं ? शायद मीडिया इसे भी भूल गई है कि " Eagles Fly Higher Against The Wind And Not With The Wind ".

8. आदरणीय , कृपया अन्यथा मत लीजिएगा , कई बुद्धिजीवी आपसे प्रेरणा लेते हैं । गलत को गलत कहना गलत नही होता पर गलत को गलत नही कहना गलत होता है । इस त्रासदी में अब ये मुद्दा सिर्फ पक्ष और विपक्ष का नही है । ये एक आम आदमी का है क्योंकि उसकी जिंदगी भी इस खेल में दावँ पर लगी है । अगर आपकी कलम की धार पैनी हो जाय तो सरकार भी अपनी गलतियों को देख सकेगी। ये गलतियां कतई क्षमा करने योग्य किसी भी दृष्टि से हो ही नही सकती ।

 जयहिंद . ब्रिगेडियर प्रदीप यदु, सेवानिवृत्त. रायपुर , छत्तीसगढ़

 

दूसरा खत- 

आदरणीय कोठारीजी,

पत्रिका मे प्रकाशित  संपादकीय, " कोरोना मरे, लोकतंत्र  नहीं "  देखा . सोनिया गाँधी  द्वारा प्रधानमंत्री को  कुछ  सुझाव दिए  गए हैं .इसमे  कुछ अवधि के लिए विज्ञापन  बंद करने सुझाव भी है़.उसी समय लगा था कि  मीडिया  इसे  पसंद नहीं करेगा .स्वाभाविक है़ कि समाचार पत्रों  के  संचालन मे विज्ञापन की महत्वपूर्ण  भूमिका  होती है़ और इसे  पूरी तरह से बंद नही किया जा सकता, लेकिन इस सुझाव ने आपको इतना विचलित कर दिया कि  आप व्यक्तिगत आलोचना करने लगे . राम और धोबी का उदाहरण  तथा इटली की  नागरिकता  का उल्लेख  भी कर दिया. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष और पी.एम. केयर्स  फंड का अंतर आप नही  समझते हों, यह  कल्पना  से परे  है़ . दोनो ही कोष  यदि प्रधानमंत्री  के नियंत्रण  हैं, तो अलग-अलग बनाने  की  क्या आवश्यकता है़. सोनिया गांधी  के सुझावों से असहमत  हुआ जा सकता है़ लेकिन इस प्रकार की  भाषा  की उम्मीद  आपसे  नहीं  थी क्योकि मै  आपकी  भाषा और ज्ञान  का  प्रशंसक   रहा हूं .

सादर

एलएस निगम 

 

 

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