विशेष टिप्पणी

मसीही समाज के पागल !

मसीही समाज के पागल !

राजकुमार सोनी

लॉकडाउन के दौरान जब दो लेख-एक पागल लड़का...एक पागल लड़की और दुर्ग शहर के पागल में गरीबों की मदद करने वालों को मैंने पागल कहकर संबोधित किया तो ज्यादातर लोगों ने यह माना कि जनता के बीच... जनता के लिए पूरी सुरक्षा और संवेदना के साथ काम करने वाला पागलपन बेहद जानदार है.

बहुत से लोगों ने पागलों के साथ काम करने की इच्छा जताई तो कुछेक लोगों की यह शिकायत भी थी कि मैं पागलपन की आड़ लेकर टकले पर दीया जलाने वाले भक्तों पर हमले कर रहा हूं. कतिपय भक्तगणों का कहना था कि मैं अब निष्पक्ष नहीं रहा. ( हालांकि भक्तों के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है ) फिर भी यह साफ कर देना चाहता हूं कि अब मैं उस तरह की मीडिया का हिस्सा नहीं हूं जिसे लोग सुबह-शाम गंदी-गंदी गाली देते है. कोई चैनल वालों को गाली बकता है तो कोई अखबार वालों को. हर रोज दलाल... फलाल... हलाल जैसे शब्द इधर-उधर विचरण करते हुए मिल जाते हैं. जो लोग निष्पक्ष पत्रकारिता का दावा करते हैं उन्हें एक बार यह बताना मेरा काम है कि मीडिया से जुड़े ज्यादातर घराने सबसे बड़े फेंकू की ब्रांडिग को ही पत्रकारिता मान बैठे हैं. इसलिए हे जगत के पालनहारों...आप लोगों को भी कथित तौर पर निष्पक्ष दिखने वाली पवित्रता का पाखंड बंद कर देना चाहिए. गंगाजल से नहा-धोकर तिलक-चंदन चुपड़कर ज्ञान बघारने की प्रवृति पर जितनी जल्दी विराम लग जाय उतना हम सबके लिए अच्छा है. फेंकूराम के समर्थकों को तो लोग अंधभक्त...और भी न जाने कौन-कौन सी उपाधियों से नवाजते हैं, लेकिन मीडिया को गोदी मीडिया क्यों कहा जाने लगा है इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

बहरहाल आज हम बात करने जा रहे हैं मसीही समाज से जुड़े पागलों की. छत्तीसगढ़ में क्रिश्यन फोरम नाम का एक संगठन है. इस फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल और महासचिव अंकुश बरियेकर को कई सालों से जानता हूं. पिछले 22 मार्च को जब पूरे देश को लॉकडाउन में तब्दील कर देने की घोषणा हुई तो मुझे उनकी याद आई. मैं इस बात के लिए आश्वस्त था कि चाहे जो हो... सेवा कार्य में जुटा क्रिश्यन फोरम इधर-उधर फंसे हुए गरीबों और मजदूरों की मदद अवश्य करेगा. मेरा सोचना सही था. लॉकडाउन के दूसरे दिन यानी 23 मार्च को मुझे यह संदेश मिला कि फोरम से जुड़े रविन्द्र सिंह, अतुल आर्थर, राजू गोसाला, कुसुम, शीतल, चित्रलेखा और निर्मला, रामू यादव, त्रिलोचन बाघ, सुभाष महानंद, राकेश जयराज, दयानंद, सतीश गंगराड़े, एल्विन, रवि सोनकर, सुमीर राव, संजय महालिंगे, मनोहर साहू, केशव जगत, लाकेश्वर, दीनू बाघ, शिवकुमार, जयप्रकाश, पूरनलाल, प्रदीप तांडेकर युद्ध स्तर पर सक्रिय हो गए हैं. ( इतने सारे नाम यहां इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि कोई अखबार इन नामों को छापने की जहमत नहीं उठाएगा. ये सारे लोग विज्ञापनदाता नहीं है और सेलिब्रिटी तो बिल्कुल भी नहीं है. )

फोरम को यह सूचना मिली थी कि लॉकडाउन के दौरान 17 मजदूर भूखे-प्यासे मजदूर मंदिर हसौद के पास मौजूद है और अपना हौसला खो चुके हैं. सदस्यों ने वहां पहुंचकर सबसे पहले पुलिस को सूचना दी और फिर उनके भोजन का प्रबंध किया. मुंगेली और जांजगीर जिले के करीब 22 मजदूर फरीदाबाद में फंस गए थे. इस बात की सूचना अतुल आर्थर को मिली तो वे फरीदाबाद का संपर्क सूत्र निकाल लेने में कामयाब हो गए. जैसे-तैसे वहां के एक पार्षद नरेश को भोजन आदि की व्यवस्था के लिए तैयार कर लिया. फोरम ने अब तक कोरबा, बिलासपुर और रायपुर के सैकड़ों मजदूरों को राहत पहुंचाई है. फोरम के सदस्य अब भी रायपुर की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बूढ़े, विकलांग और कमजोर लोगों को गरम भोजन मुहैय्या करवा रहे हैं. अभी तीन रोज फोरम को यह सूचना मिली थी कि मारवाड़ी श्मशान घाट के पीछे झुग्गियों में रहने वाले कई लोग भूखे-प्यासे बैठे हैं. फोरम के इस नेक काम के लिए छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध अधिवक्ता फैजल रिजवी और अशरफ ने भरपूर सहयोग दिया.

अब एक बार फिर सोच रहा हूं कि आखिर छत्तीसगढ़ क्रिश्यन फोरम को यह सब करने की जरूरत क्या है ? घर में बैठकर... मनमोहन देसाई की अमर-अकबर-अंथोनी जैसी कोई चालू फिल्म देख सकते थे. प्रभु ईशु आया... मेरा जीवन बदला.... यहां पाप नहीं नहीं वहां पुण्य नहीं जैसा कोई गीत कोरस में गा सकते थे. घर में बैठकर कांगो-बांगो ड्रम और गिटार बजा सकते थे. जो मजदूर भोजन-पानी लेकर बिहार- झारखंड चले गए हैं क्या उन सारे मजदूरों को अरुण पन्नालाल और उनके साथियों ने यह कहते हुए अपना विजिटिंग कार्ड दिया होगा कि भाइयों जैसे ही लॉकडाउन खुल जाएगा... हमको फोन करना... हम तुम्हें प्रभु के चरणों में श्रेष्ठ स्थान दिलवा देंगे.

आखिर मसीह समाज से जुड़े इन पागलों को यह सब करके क्या मिल रहा है ? दर्द को महसूस करने के लिए दर्द से गुजरना पड़ता है. घर में बैठकर गजल लिखने से बात नहीं बनने वाली है. एक दर्द ही है जो हर संवेदनशील इंसान को परेशान करता है. ताली-थाली-घंटी-घंटा और शंख बजाने लोग शायद यह कभी नहीं समझ पाएंगे कि देश का गरीब किस दर्द से गुजर रहा है? गरीब की आंख के नीचे आंसुओं की पपड़ी क्यों बन गई है. पता नहीं क्यों यह लगता है कि एक न एक दिन जमी हुई पपड़ी पिघल जाएगी. जिस रोज भी पिघलेगी उस रोज जलजला आ जाएगा. ( तब भी शायद मसीह समाज के लोग कहेंगे- हे प्रभु इन्हें माफ कर देना... ये नहीं जानते थे कि अन्जाने में क्या कर रहे थे ? )  

मेरे पास फिलहाल फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल का ही नंबर है. अगर आप चाहे तो उनसे बात कर सकते हैं. उन्हें और उनकी पागल टीम को बधाई दे सकते हैं-  9893290025

 

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