विशेष टिप्पणी

दुर्ग शहर के पागल !

दुर्ग शहर के पागल !

राजकुमार सोनी

कोरबा जिले के कटघोरा में कोरोना से सात लोग प्रभावित पाए गए हैं. ऐसे समय जबकि छत्तीसगढ़ से मरीजों का स्वस्थ होकर घर लौटना जारी था तब एकाएक नए कोरोना प्रभावितों के मिल जाने से हलचल मच गई है. सबसे ज्यादा हलचल उन लोगों में देखी जा रही है जो यह मान बैठे हैं कि इस देश को बरबाद करने में मुसलमानों का सबसे बड़ा हाथ है.  मुसलमानों से बड़ा कोई वायरस नहीं है. सारी बेचैन आत्माएं एक साथ निकल पड़ी है और फेसबुक... वाट्सअप- सोशल मीडिया में चिल्ला रही है- देखिए... जमातियों ने मरवा दिया. इनको  बाहर निकालों. दो-चार दिन समझाओ... नहीं तो सीधे गोली मार दो. मूर्ख जमाती. मूर्ख बाराती और भी न जाने क्या- क्या ? यह तो हुई सोशल मीडिया की बात...। वैसे कल का अखबार भी देखिएगा... सारे अखबार के प्रथम पेज पर यहीं खबर होगी और खबर के भीतर का पूरा मजबूत स्वर यहीं होगा कि जमातियों के कारण छत्तीसगढ़ बरबादी के कगार पर आ खड़ा हुआ है. आदि-आदि... अनादि. ( कल सभी अखबार की हैडिंग देखिएगा और समझने की कोशिश करिएगा. ) मीडिया की बांछे खिल गई है साहब.

यह बड़ा खौफनाक समय है. इस खौफनाक समय में यह तय करना बड़ा मुश्किल हो गया है कि कौन अपना है और कौन पराया. कौन है जो देश के लिए सोच रहा है... और सोच भी रहा है तो क्या सोच रहा है ? एक सीधा सा सवाल है कि क्या कोरोना को देश में जमाती लेकर आए थे. देश में कोरोना से अब तक जितने लोगों की मौत हुई है क्या वे सारे जमाती थे ? लोग यह बात क्यों समझ नहीं पा रहे है कि कोरोना...हिन्दू, मुस्लिम-सिक्ख और ईसाई धर्म को देखकर प्रवेश नहीं करता है. यह बहुत साफ है कि जो कोई भी लापरवाही बरतेगा...कोरोना उसे अपनी चपेट में ले लेगा. जिन लोगों ने कोरोना को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है उन पर तो कार्रवाई होनी चाहिए... लेकिन अभी क्या कोरोना प्रभावित सारे लोगों को जेल में ठूंस देना चाहिए ताकि जेल में बंद कैदियों की मौत हो जाय.क्या बेहद अमानवीय होकर उनको गोली मार देना चाहिए ताकि फिर मामूली सी सर्दी-खांसी पर भी दनादन गोलियां बरसाने का खेल चलता रहे. जब छत्तीसगढ़ में नौ मरीज ठीक हो सकते हैं तो वे लोग क्यों ठीक नहीं हो सकते हैं जो आपकी नजर में जमाती  है. अभी जरूरत ज्यादा एहतियात बरतने की है.

बहरहाल... यह सब मैं क्यों लिख रहा हूं और मुझे क्यों लिखना चाहिए. मैं शायद इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मेरे भीतर कट्टरता ने अपना टीला नहीं बनाया है. लेकिन जिनके भीतर कट्टरता बैठी है वे भी तो लिख रहे हैं और पूरी कट्टरता के साथ लिख रहे हैं. कट्टर लोग अपना काम करते रहे तो मुझे भी अपना काम इसलिए जारी रखना चाहिए क्योंकि देश के पढ़े-लिखे और उदार लोगों ने बचपन में ही यह समझा दिया था कि कट्टरता का साथ देते ही आप जाहिलों की पंक्ति में शामिल हो जाते हैं. भला मुझे जाहिलों की कतार में क्यों शामिल होना चाहिए ?

चलिए...अब बात करते हैं दुर्ग शहर के कुछ पागलों के बारे में. इस शहर में रहने वाले अजहर जमील कट्टर नहीं है. उनके दोस्त फजल फारुखी भी कट्टर नहीं है. इन दोनों के साथ वाट्सअप ग्रुप रक्षक से जुड़े राजू खान, असलम कुरैशी, रिजवान खान, आबिद, अंसार भी कट्टर नहीं है. अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि अरे... ये तो पूरे के पूरे वहीं लोग है. दाढ़ी रखने वाले. टोपी पहनने वाले.

जी नहीं... इस ग्रुप में राजेश सराफ, अजय गुप्ता, रमेश पटेल, डाक्टर संतोष राय, ज्ञानेश्वर ताम्रकार, आनंद बोथरा, सुनील, राधे और सूरज आसवानी जैसे लोग भी जुड़े है. ये सब लोग भी अपने-अपने ढंग से पूजा- इबादत करते हैं मगर कट्टर नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि इस वाट्सग्रुप में देश-दुनिया के बदलते हालात को लेकर बहस नहीं होती है. खूब बहस होती है और जमकर होती है. कई बार कुछ लोग ग्रुप छोड़कर भी चले जाते हैं मगर फिर अजहर उन्हें यह कहकर मना लेते हैं कि मामू क्या हम लोग हंसी-मजाक भी नहीं कर सकते ? अरे लड़ना- झगड़ना तो चलते रहता है. ऐसे ही हमसे रूठकर चले जाओगे क्या मामू.

इस ग्रुप से जुड़े सभी लोग गत 15 दिनों से साढ़े तीन सौ लोगों को भोजन का वितरण कर रहे हैं. ग्रुप के सदस्यों ने इसके लिए बकायदा नगर निगम से अनुमति ली और भोजन बनाने के लिए कार्यशाला भी खोली है. हर सुबह ग्रुप के सदस्य पूरे एहतियात और सुरक्षा के साथ चावल-दाल- सब्जी, मसाले के जुगाड़ में लग जाते हैं और दोपहर तक गरम भोजन पैक कर चिन्हित जगहों पर पहुंच दिया जाता है. इस ग्रुप ने अब तक 124 परिवारों को एक महीने का राशन भी वितरित किया है.

एक बार फिर सोच रहा हूं कि आखिर इस वाट्सअप ग्रुप रक्षक को क्या जरूरत है यह सब करने की ? मस्त पड़े रहते. दिनभर मोदी-फोदी का मैसेज फारवर्ड करते रहते हैं. गंदे चुटकुलों और टिकटॉक में लगे रहते. क्या मिल रहा है इन पागलों को ?

अगर आप जानते हैं कि इन पागलों को कुछ हासिल हो रहा है तो मुझे अवश्य बताइएगा. मेरी समझ तो यहीं कहती है कि ये पागल दिनभर खुश रहते हैं. मुस्कुराते रहते हैं. यह तो तय है कि ये पागल कभी उस पागलखाने में तो नहीं जाएंगे जहां मोदी ने आपको भेजने की तैयारी कर रखी है.

दुर्ग शहर के इन पागलों को आप भी फोन करके बधाई दे सकते हैं. याद रखिए...हौसला-आफजाई से पागलों की संख्या में बढ़ोतरी होती है. अभी हमें ढ़ेर सारे पागलों की जरूरत है. हमें वैसे पागल तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए जो टकले पर दीया जलाकर गो-कोरोना-गो के मंत्रोच्चार को ही अपने जीवन का कर्म मान बैठे हैं. )

अजहर जमील- 9329009549

फजल फारुखी- 9826165494

 

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