विशेष टिप्पणी

कोरोना काल और टोटका

कोरोना काल और टोटका

कोरोना काल में अंधविश्वास बुरी तरह से बढ़ गया है. साहित्यिक पत्रिका समय के साखी की संपादक आरती इसी बात को लेकर चितिंत है. अपने इस लेख में वे कहती है- हमारे और आपके सोचने-समझने से क्या होगा.देश के प्रधान सेवक को अपने इवेंट पर पूरा भरोसा है.

राज्य के अलग-अलग गांव कस्बों से तरह-तरह की अफवाहें आ रही हैं. कहीं कोई शीतला माता की पूजा कर रहा है, कहीं दरवाजे पर चौक पूरा जा रहा है, कहीं हल्दी के छापे लगाए जा रहे हैं. गाय को रोटी खिलाने से लेकर कुत्ते को तेल पिलाने तक की अफवाहें, अनेक तरह के अंधविश्वास चल पड़े हैं.

ज्ञान की जिज्ञासा जिस समाज से जितनी दूर रहती है या उसे दूर रखने के लिए जितने तरह के प्रयास जो समाज करता है. जैसे कि स्त्रियों को, दलितों को विभिन्न ज्ञान माध्यमों से दूर रखने के लिए मनुस्मृति जैसे फर्जी किस्म के ग्रंथ और उनसे जुड़ी नीतियां और परंपराएं बनाई गई, वह समाज उस स्वत: खोदी हुई खाई को कभी पाट नहीं पाता. वह समाज वैसे भी अंधविश्वास की जकड़न में गहरे जकड़ा हुआ समाज होता है. कहीं थोड़ा कम कही थोड़ा ज्यादा.

आजादी के बाद लोगों के भीतर नई शिक्षा नीतियों और विज्ञान के प्रवेश ने एक आशा जताई थी कि हम परंपराओं और विज्ञान के बीच की दूरी को धीरे-धीरे कम कर सकेंगे. वह लंबी दूरी हमने थोड़ा कम की भी थी. लेकिन इतनी नहीं जितनी होनी चाहिए थी.

किसी घटना की प्रतिक्रियाओं को देखते हुए कई प्रश्न उठते हैं कि क्या इस समाज की बुनावट ही ऐसी है? अंधविश्वासों को पैदा करने में सुकून महसूस करता है? क्या उसके पास कोई ऐसी खिडकी नहीं जो यह सच देख सके या उसे महसूस कर सकें.   इसमें समाज का नहीं, इसके आदि व्यवस्थापकौ का ही दोष है. व्यवस्था से जुड़े हुए और सच की खोज करने वाले तमाम आदि ऋषि  पुरुषों ने खुद लोगों और सत्ता के बीच में एक बड़ी  दीवार बना दी थी ताकि वह जन हमेशा भ्रांति में रहा आए. इसलिए समाज की संरचना अभी भी उतनी नहीं बदली कि वह महानायक की अवधारणा से हटकर किसी और सत्य को देख सके. 

इस कोरोना टाइम में,जब दुनिया को विज्ञान ही एकमात्र सहारा है, जब दुनिया के सारे देश वैक्सीन खोजने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं, जब संकट से निपटने के लिए अधिक से अधिक चिकित्सीय आपदा प्रबंध में लगे हुए हैं, तब हमारे देश का प्रधानमंत्री हर 3 दिन में एक टोटका लेकर आता है और 130 करोड़ लोगों को झुनझुने की तरह पकड़ा कर चला जाता है. और लोग उसे प्रसाद की तरह सिर माथे पर लगा लेते हैं. 

जो लोग कहते हैं कि सकारात्मकता खोजी जाए, वे भी सकारात्मक बिंदुओं को सामने नहीं रख पा रहे.

क्या ऐसा नहीं लगता कि इस समय देश के प्रमुख को, स्वास्थ्य मंत्री को, स्वास्थ्य विभाग से जुड़े  एक्सपर्ट को लोगों को भरोसा दिलाना चाहिए था कि हम ऐसी तैयारी कर रहे हैं कि मुसीबत कितनी भी बड़ी हो जाएगी हम उससे निपट लेंगे... लोगों में डर है, घर के भीतर छुपे हुए भी उस बीमारी के अदृश्य  दुश्मन से, वे मुस्कुराते हुए भी घबराए हुए हैं....

हम सब जानना चाहते हैं कि हमारा देश इस महामारी से निपटने के लिए कैसी तैयारी कर रहा है? हम जानना चाहते हैं डॉक्टरों की सुरक्षा, सफाई कर्मियों की सुरक्षा, टेस्टिंग किट, वेंटीलेटर आदि के बारे में जानना चाहते हैं.. हम जानना चाहते हैं उन लोगों के बारे में जो हजारों की संख्या में बेघर महानगरों के किसी कोने में बैठा दिए गए हैं, जो खैरात के भोजन पर निर्भर हैं.. हम जानना चाहते हैं उन लोगों के बारे में जो 800 किलोमीटर का सफर तय करके अपने घर पहुंचने के रास्ते के बीच में अभी भी हैं.. और भी बहुत सी चीजें हैं जानने के लिए. उनकी व्यवस्थाओं के बारे में जानने के लिए.

लेकिन आपके चाहने से होगा क्या? हमारे देश के प्रमुख को अपने इवेंट पर पूरा भरोसा है... उन्हें पता है इवेंट मैनेजिंग कैसे करनी है.... 

 

 

 

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