विशेष टिप्पणी

भक्तों के लिए आज सेल्फी का दिन

भक्तों के लिए आज सेल्फी का दिन

हे...आर्यपुत्रों सादर प्रणाम. खुश तो बहुत होंगे आज. सोच रहे होंगे कि कब रात के नौ बजे और तरह- तरह के पोज़ देते हुए सेल्फी लेने, वीडियो बनाने का मौका मिले. आज आप सबको एक फिर यह साबित करना है कि आप ही सबसे बड़े वाले देशभक्त हो. बाकी सब गदहे के बच्चे और राष्ट्रद्रोही हैं.

आप लोगों की बुद्धि पर मुझे कभी शक नहीं रहा. आप सबकी तादाद इतनी ज्यादा और भंयकर हैं कि कई बार हम मुठ्ठी भर लोग सोच में पड़ जाते हैं कि कौन सी चक्की का आटा खाकर मुकाबला किया जाय ? वैसे मुकाबला शब्द सही नहीं है.आप लोगों का मुकाबला स्वयं प्रभु श्री राम भी नहीं कर पा रहे हैं तो हमारी क्या बिसात. देश महामारी के एक भयावह दौर से गुजर रहा है. हर आदमी की हालत यह सोचकर पस्त है कि न जाने कल क्या होगा ? हर किसी को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है तब आप लोगों को मस्ती सूझ रही है. ऐसा आप ही लोग कर सकते हैं. फलस्वरूप मुकाबला न केवल मुश्किल है बल्कि नामुमकिन जान पड़ता है.

आप लोगों को लगता है कि मोदी जी सब कुछ ठीक कर देंगे, लेकिन न जाने क्यों मुझे यह लगता है कि कोरोना से लड़ना उनके बस की बात नहीं है. अगर बस में होता तो आप लोगों से ताली-थाली पिटने और दीया-टार्च जलाने के लिए नहीं कहा जाता. जिस रोज आप सब लोगों ने थाली-ताली पिटने का उपक्रम प्रारंभ किया था उस रोज से ही कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. अब तो आप सब लोगों को यह मान लेना चाहिए कि कोरोना सामूहिक मूर्खता से भागने वाला वायरस नहीं है.

फिलहाल हताशा और निराशा के एक भयानक दौर में हम मुट्ठीभर नागरिक सोशल मीडिया पर डटे हुए हैं. हमें कोरोना से भी लड़ना है और अज्ञानता से भी. अखबारों और चैनलों से हमने इसलिए भी उम्मीद छोड़ रखी है क्योंकि हमें यह बात अच्छी तरह से मालूम हैं कि कथित मीडिया अब एक निर्धारित एजेंडे के तहत काम करता है. अभी कथित देशभक्त मीडिया का सबसे बड़ा एजेंडा यहीं है कि कैसे देश के मुसलमानों को कोरोना से भी बड़ा वायरस बना दिया जाय.

अब मेरे एक-दो छोटे-छोटे सवाल है. आपको यह पता ही होगा कि परम आदरणीय मोदी जी ने गरीबों को सम्मानित करने के लिए दीया- टार्च- लाइटर- जलाने के लिए कहा है. क्या अलग-अलग राज्य अलग-अलग दिन प्रकाश फैलाने का काम नहीं कर सकते थे. चलिए 3 अप्रैल की बात छोड़िए... क्या यह काम  4 अप्रैल को नहीं हो सकता था ? आप कहेंगे कि कभी भी हो सकता है... फिर मोदी जी के आदेश और सामूहिकता का क्या मतलब है ? 

इसमें कोई दो मत नहीं है कि एकजुटता का अपना महत्व होता है, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि आपकी यहीं एकजुटता कई तरह की परेशानियों  का कारण बन रही है. मोदी की घोषणा के बाद बिजली विभाग वालों की हालत खराब है. उन्हें अपील करनी पड़ रही हैं कि सब कुछ करना पर बत्ती मत बुझाना. भक्तों इतना तो जानते ही होंगे कि लॉकडाउन की वजह से ट्रेनें बंद हैं. उद्योग बंद है. जहां- जहां भी बिजली की खपत होती हैं ऐसे सारे संस्थान बंद है. अब ऐसे में देश की एक बड़ी आबादी बत्ती बंद करके बैठ जाएगी तो क्या पावरग्रिड का भठ्ठा नहीं बैठ जाएगा ? बिजली विभाग के जानकार बार- बार यह अपील कर रहे हैं कि भइया... सब कुछ कर लेना, लेकिन बत्ती मत बुझाना. क्या आप लोग उनकी अपील पर गौर करने के बारे में कुछ विचार कर रहे हो? ( अरे... यहां तो अपने दिमाग की बत्ती जला लो. )

हे भक्तों... अगर आप छत्तीसगढ़ से हैं तो आपको अच्छी तरह से याद होगा कि प्रदेश में जब भाजपा की सरकार थीं तब बस्तर में ब्लैक आउट की स्थिति पैदा हुई थीं. ऊर्जा नगरी कोरबा में बिजली घरों के खराब होने का खामियाजा भी छत्तीसगढ़ को समय- असमय भुगतना पड़ा है. इसलिए हे दानवीरों... मां भारती के लालों...रात को नौ बजे कछुआ छाप मच्छर अगरबत्ती से लेकर कपूर, लोभान, हेलोजन सब कुछ जला लेना... मगर देश को अंधेरे में डूबने से बचा सकते हो तो बचा लेना ? 

गर्मी का मौसम है और लॉकडाउन की वजह से हालत पस्त है. उम्मीद करता हूं कि खुद भी गर्मी में नहीं सड़ोंगे और हम लोगों को भी सड़ने का मौका नहीं दोंगे. और हां... रात को नौ बजकर नौ मिनट के बाद दांतों-तले ऊंगली दबा लेने वाले मुहावरे को चरितार्थ करने वाली तस्वीरें और वीडियो शेयर करना मत भूलना. हम लोगों के मनोरंजन का ख्याल रखना भी आप सबका कर्तव्य है. एक बात और...दीया-बत्ती का खेल खेलने के बाद यह भी चेक कर लेना कि मंगलू, समारू और दुकालू के घर चूल्हा जला था या नहीं ?

- राजकुमार सोनी  पांच अप्रैल 2020

 

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