विशेष टिप्पणी

युद्ध और उन्माद : मीडिया की नकारात्मक भूमिका

युद्ध और उन्माद : मीडिया की नकारात्मक भूमिका

 
 
गिरीश पंकज
 
 किसी भी राष्ट्र को अपनी संप्रभुता बनाए रखने के लिए युद्ध की नौबत आने पर युद्ध करना ही चाहिए। दुश्मन अगर हमला करता है तो उसका जवाब देना फर्ज है । देश की आजादी के लिए हमारे अनेक क्रांतिकारियों ने बलिदान किया। अनेक स्वतंत्रता सेनानी जेलों में वर्षों तक कैद रहे । फिरंगियों के अत्याचार भी सहे। तब कहीं जाकर हमें यह आजादी मिली। हालांकि आजादी के बाद से ही हमें पाकिस्तान से जूझना पड़ा । भारत का ही एक टुकड़ा अलग से एक देश बना और आजादी के तत्काल बाद पाकिस्तान ने 1948 में युद्ध किया, तो हमें भी युद्ध करना पड़ा। कुछ वर्षों बाद 1962 में चीन ने आक्रमण किया, तब हमें उससे जूझना पड़ा।  फिर तीन साल बाद पाकिस्तान ने दोबारा आक्रमण किया।  फिर उसका मुकाबला करना पड़ा। उसे हमने पराजित भी  किया। 1971 को फिर पाकिस्तान ने आक्रमण किया और बुरी तरह से पराजित हुआ। और उसी युद्ध ने एक नए देश को जन्म हुआ, जिसका नाम पड़ा  बांग्लादेश।
 
 हम शांति के पक्षधर
 
भारत का इतिहास रहा है कि उसने कभी भी आक्रमण की कोशिश नहीं की। हम शांति प्रिय देश रहे हैं ।शांति के लिए ही समर्पित रहे। लेकिन जब युद्ध होता है तो शांति से काम नहीं चल सकता। तब क्रांति करनी पड़ती है। युद्ध लड़ना पड़ता है। भारत ने मजबूरी में हर युद्ध किया। पिछले दिनों पुलवामा में जब हमारे 40 जवान आतंकी हमले में शहीद हुए, तो भारत को मजबूरी में बालाकोट में हमला करके  आतंकियों के अनेक ठिकानों को तबाह करना पड़ा। और यह जरूरी भी था। लेकिन इस हमले के बाद मीडिया के माध्यम से जो दृश्य सामने आ रहा है, वह बेहद खतरनाक है। चिंताजनक है।
 
युद्ध-उन्माद ठीक नहीं
 
 युद्ध अपनी जगह है लेकिन युद्ध का वातावरण बने, यह चिंता की बात है। किसी भी राष्ट्र के लिए युद्ध कभी भी फायदे का सौदा नहीं हो सकता। युद्ध तो लड़े जाते हैं। कोई देश जीतता है, तो कोई  हारता है । लेकिन इस युद्ध के बाद  देश लगभग टूट जाता है। भारत जैसे देश में मध्यमवर्गीय लोग अधिक हैं ।उससे भी ज्यादा तादाद गरीबों की है। जब जब भारत में युद्ध हुए हैं, हमने देखा है कि महंगाई बढ़ी है। गरीबों को खाने के लाले पड़ गए। मध्यम वर्गीय व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से बेहद परेशान हुआ।
 भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में, जहां भी युद्ध हुए, उस देश में आर्थिक संकट गहराया है। इसलिए किसी भी देश को युद्ध से बचना चाहिए । दुर्भाग्य की बात है कि पाकिस्तान में छुपे आतंकवादी इस सत्य को नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्मादी होकर वे अपने ही देश के लोगों का नुकसान कर रहे हैं। पता नहीं यह कौन- सी मानसिकता है कि निर्दोषों की हत्या कर दो । आतंक फैला दो। खून खराबा करो और फरार हो जाओ। किसी भी देश के खिलाफ इस तरह की बर्बर कार्रवाई मानवता के माथे पर कलंक है । लेकिन समझ में नहीं आता पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवादी ऐसा क्यों करते हैं ? भारत की तरह पाकिस्तान के आम नागरिक भी युद्ध नहीं चाहते । सभी आतंकवाद के खिलाफ हैं लेकिन जब कुछ की मानसिकता में ही उन्माद हो, अराजकता हो, तो उसकी कोई दवा नहीं। भारत में भले ही बालाकोट में हमला करके 300 आतंकियों को मार डाला। उनके ठिकाने तबाह कर दिए लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसके बाद भी आतंकवादी कोई सबक लेंगे। वह नए उन्माद से लैस होकर फिर भारत पर हमला करने की कोशिश करेंगे। उस हमले के जवाब में फिर भारत सर्जिकल स्ट्राइक करेगा या कुछ और तरीके से देने की कोशिश करेगा । युद्ध का जवाब युद्ध ही हो सकता है। यह संभव नहीं है कि दुश्मन हमला करें और भारत हाथ जोड़कर के कहे कि आपने बहुत अच्छा किया । लेकिन नतीजा ?...तबाही । 
 
युद्ध, उन्माद और मीडिया
 
मेरे जैसे अनेक लोग युद्ध के खिलाफ हैं क्योंकि युद्ध अनेक तरह की विसंगतियों के साथ उपस्थित होता है। इसलिए इससे बचा जाना चाहिए।  किसी भी राष्ट्र के विवेक पर निर्भर करता है कि वह युद्ध की रणनीति बनाए या फिर शांति की परियोजनाएं। अमेरिका जैसे कुछ देश भारत और पाकिस्तान को एक बाजार की तरह देखते हैं। हथियारों का बाजार। भारत और पाकिस्तान दोनों का रक्षा बजट निरंतर बढ़ता जा रहा है । विकास के दूसरे क्षेत्रों में कटौती करके हम रक्षा सौदों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं । यह भारत की मजबूरी भी है क्योंकि जब पाकिस्तान अपना सैन्य बल बढ़ाता जा रहा है तो स्वाभाविक है कि भारत को भी अपनी तैयारी करनी पड़ेगी। एक देश के उन्माद के कारण दूसरे देश को मजबूरी में सावधान होना पड़ रहा है। यह दुखद स्थिति है। ऐसी स्थिति के बीच में मीडिया की मानसिकता पर भी गंभीर चर्चा जरूरी है। पिछले दिनों पुलवामा में आतंकी अटैक के बाद बालाकोट में जब हमारी सेना ने दुश्मन के घर में घुसकर उसके आतंकी ठिकाने तबाह किए, उसके बाद हमारा मीडिया अति उत्साह में आकर जिस तरह की भाषा में डिबेट करता नजर आया, वह काफी खतरनाक रहा । पाकिस्तान के खिलाफ अनेक बार उकसाने वाली शब्दावलियों का प्रयोग करने के कारण उन्माद की स्थिति और ज्यादा सघन होती गई। सीमा पर अभी युद्ध की नौबत नहीं आई है फिर भी मीडिया की हरकत के कारण ऐसा लगने लगा कि सीमा पर भीषण युद्ध हो रहा है। मीडिया, को गंभीरता के साथ देश में शांति का माहौल बनाना चाहिए था, लेकिन उसने अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में देश को युद्ध की ओर धकेलने की कोशिश की। देश के कोने - कोने में बैठे लोग टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग देखकर उत्तेजित होते रहे और पाकिस्तान से दो - दो हाथ करने के नारे लगाते रहे।  एक टीवी चैनल मैं देख रहा था। उसका एंकर चीख -चीख कर कह रहा था कि 'अब पाकिस्तान पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा।... हमारी सेना पूरी तरह से मुस्तैद है।...वह शत्रु का मुंहतोड़ जवाब देगी और देखते -ही- देखते पाकिस्तान खाक में मिल जाएगा।" लगभग इसी तरह के जुमले अनेक टीवी चैनलों में नजर आते रहे। मैं इस मूर्खता पर हँसता रहा कि भाई मेरे, पाकिस्तान को तबाह करके तुम्हें क्या मिलेगा ? क्या वहां के बाईस करोड़ नागरिकों को जीने का हक नहीं है ? तबाह करना है, तो आतंकवाद को तबाह करो । आतंकियों के अड्डे तबाह करो । खोज -खोज कर उनके बंकरों को नष्ट करो । देश को तबाह करने की बात क्यों करते हो? लेकिन जब मीडिया अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए नीचे गिर जाए तो उसके पास सिवाय उन्माद बढ़ाने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं रहता। टीवी चैनलों को देख देखकर लोग उत्तेजित होते हैं और देश का माहौल युद्ध के उन्माद से ग्रस्त हो जाता है।
 
मीडिया सकारात्मक बने
 
 यह समय सावधान रहकर विमर्श करने का है उन्मादग्रस्त आतंकियों को हमारी सेना ने मुंह तोड़ जवाब दिया है ।भविष्य में भी वह जवाब देती रहेगी। सेना अपना काम कर रही है । वह सीमा पर राष्ट्र की सुरक्षा के अपने मिशन पर निरंतर लगी हुई है । लेकिन हमें भी अपने मिशन के बारे में सोचना है । यह मिशन है शांति का, सद्भाव का, भाईचारे का। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि कैसे सद्भावना का वातावरण बने। कैसे अमन और चैन की बात की जाए । यह तभी संभव हो सकता है जब रचनाकार और मीडिया वाले सकारात्मक रूप से प्रेम और सद्भावना की रचना करें । मीडिया वाले अति रंजना पूर्ण कार्यक्रमों से बाज आएं । जितना उचित है , उतना ही कार्यक्रम दिखाएं। कई बार टीवी चैनल कुछ ऐसे निकृष्ट लोगों को आमंत्रित करता है जो केवल विष वमन ही करते हैं। अति उत्साह में या अनजाने में ही। इस पर भी विचार होना चाहिए । कुल मिलाकर यह समय चिंता जनक है । मैं कल्पना मात्र से सिहर जाता हूं कि अगर भारत और पाकिस्तान में एक बार फिर युद्ध हुआ तो देश की आर्थिक हालत क्या होगी । अभी भी देश महंगाई की मार से त्रस्त है ।सरकार की निरंतर आलोचना इसी बात के लिए होती है । आम आदमी का बजट गड़बड़ा जा चुका है। ऐसे समय मे अगर युद्ध होगा तो कल्पना कीजिए कि देश की क्या हालत होगी। लोग खाने के लिए तरस जाएंगे। महंगाई बढ़ जाएगी। घर का क्या देश का बजट भी बिगड़ जाएगा। हालांकि कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि युद्ध जरूरी है क्योंकि दुश्मन ने हमला किया है, तो मैं कहूंगा बेशक जरूरी है लेकिन उससे भी जरूरी और  महत्वपूर्ण बात है युद्ध को रोकने की पहल की जाए। भारत जैसे देश को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर के पाकिस्तान के खिलाफ बात करनी चाहिए कि वह आतंकवाद को प्रश्रय न दे। युद्ध के लिए उकसाने की कोशिश ना करे। उधर पाकिस्तान का मीडिया उन्माद फैलाता है और भारत के भी अनेक चैनल उन्माद फैलाने का काम करते हैं । यह सब बंद होना चाहिए। इसके लिए सरकार की ओर से गाइड लाइन जारी होनी चाहिए।  मीडिया अनावश्यक रूप से इस देश की जनता को भड़काने की कोशिश ना करे। जो घटना जितनी हो रही है, उतनी ही बताए। उस में नमक -मिर्ची लगा कर अलग से स्टोरी करने की जरूरत नहीं है । पता नहीं कब हमारा मीडिया रचनात्मक दिशा में सोचने की कोशिश करेगा? मीडिया तो जैसे देखता ही रहता है कि  कोई बड़ी घटना हो और वह लपक कर उसे उठाए, फिर दिन भर उसे ही चलाता रहे । जैसे बिल्ली के भाग से छींका  टूटता है ,उसी तरह से मीडिया के भाग से पहले पुलवामा अटैक हुआ, उसके बाद बालाकोट की घटना हो गई। उसे लेकर टीवी चैनल सुबह से लेकर रात तक चर्चा करते रहे। लोगों को बुलाते रहे। और जो आते रहे, उनमें अधिकतर की भाषा में भयानक उन्माद दिखाई देता रहा। उनकी तनी हुई मुट्ठियाँ, उनके उत्तेजित स्वर देख कर ऐसा लगता रहा, जैसे ये स्टूडियो से सीधे उठेंगे और सीमा पर जाकर बंदूक चलाने लग जाएंगे ।जबकि ऐसा कुछ नहीं है। ऐसे लोग अपनी छवि चमकाने के लिए पाकिस्तान को गालियां देते हैं, सरकार को भी कोसते हैं और घर जाकर कहते हैं,  "आज तो मैंने पाकिस्तान की बजा दी।" यह जो उन्माद है, इसे हवा देने के मामले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सबसे अधिक जिम्मेदार है । उसे आत्ममंथन करना चाहिए। अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए कैसे देश को युद्ध की ओर धकेल रहा है। भारतीय मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान को निरंतर गालियां देने के कारण स्वाभाविक है कि वहां के लोगों के मन में भी भारत के प्रति गुस्सा जागेगा ।बवहां का टीवी चैनल भारत को गाली देगा, तो यहां के नागरिकों के मन में गुस्सा स्वाभाविक है । इसलिए दोनों देशो के मीडिया का दायित्व है कि वह गाली गलौज की भाषा से ऊपर उठकर शांति और सद्भावना का संदेश देने का काम करे। दोनों देश की सेनाएं है। वे अपने-अपने देशों की सुरक्षा के लिए जो कर सकती हैं करेंगी। उसमें मीडिया को बहुत हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। मीडिया का दायित्व है कि वह कैसे एक राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से संपन्न होने की दिशा में काम करें, कैसे देश में अमन कायम हो।।
 
 

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