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15 साल तक पत्रकारों को कुचलते रहे डाक्टर रमन और अब अर्णब की तरफदारी
रायपुर. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में पत्रकार किस दबाव में काम कर रहे थे यह किसी से छिपा नहीं है. ( कुछेक दरबारी पत्रकारों को छोड़कर ) सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले हर पत्रकार के ऊपर किसी न किसी गंभीर धारा के तहत जुर्म दर्ज था. ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा यही रहती थी कि पत्रकार घुटनों के बल रेंगकर हत्यारी विचारधारा का साथ देते हुए अपने काम को संपादित करते रहे.
इधर हाल के दिनों में जब रिपल्बिक टीवी पर भड़काऊ खबरें दिखाकर देश को सांप्रदायिक उन्माद की ओर ले जाने वाले अर्णब गोस्वामी पर कांग्रेस ने एफआईआर के जरिए शिकंजा कसा तो डाक्टर रमन सिंह अर्णब गोस्वामी के समर्थन में आ खड़े हुए. उन्होंने अर्णव गोस्वामी पर हुए कथित हमले को लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बताया. डाक्टर रमन ने कहा कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस मामले में देश और ख़ास कर प्रेस जगत से निःशर्त क्षमायाचना करनी चाहिए.
डाक्टर रमन सिंह के इस बयान के बाद कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने भी जोरदार हमला बोला है. एक बयान में त्रिवेदी ने कहा कि रमन सिंह और उनकी सरकार ने 15 साल में पत्रकारों के साथ जो बर्ताव किया उसे भी याद रखना चाहिए. पत्रकारों की एक- एक नकारात्मक रिपोर्ट पर न केवल उनका तबादला करवाया गया बल्कि उन्हें नौकरी छोड़ने पर मजबूर भी किया गया. पत्रकारों की पत्नी और परिजनों की नौकरी छीनी गई. पत्रकारों को तरह-तरह की धमकियां दी गई और खासकर माओवादी इलाकों में कार्यरत पत्रकारों का जीना मुश्किल कर दिया गया. अफसरों ने पत्रकारों को जान से मारने की धमकी भी दी. बस्तर में पत्रकारों के काम करने की जो स्थिति रही उसे लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की एक सनसनीखेज रिपोर्ट है. अगर बयान जारी करने के पहले डाक्टर रमन इस रिपोर्ट को पढ़ लेते तो ज्यादा बेहतर होता. इस रिपोर्ट की पूरी दुनिया में चर्चा हुई जिससे वे तिलमिला गए थे. रमन सिंह सरकार में पत्रकारों पर जो दबाव बनाया गया और पत्रकारों को जिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया डाक्टर रमन सिंह को उस पर भी एक नजर डालनी चाहिए. भाजपा सरकार के शासनकाल में पत्रकारों को जिस तरीके से धमकियां दी गई जान से मारने और झूठे मामलों में फंसाने की साजिशें की गयीं उसे छत्तीसगढ़ अभी भूला नहीं है.
त्रिवेदी ने कहा है कि आज रमन सिंह को पत्रकारों की सुरक्षा,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की याद आ रही है. जब कलबुर्गी की हत्या हुई थी जब गौरी लंकेश की हत्या हुई थी तब प्रधानमंत्री मोदी और रमन सिंह जैसे नेता उस पर चुप्पी साधे रहे मगर अब अर्णव पर स्याही फेंके जाने की कथित घटना से रमन सिंह को सब कुछ याद आ रहा है. मोदी रमन की पोल खोलने वाले एक कार्यक्रम के प्रसारित होने के बाद एबीपी न्यूज़ चैनल के साथ क्या किया गया. किस तरीके से एबीपी न्यूज़ के सिग्नल को डिस्टर्ब किया गया यह किसी से छिपा नहीं है. देश के वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपाई को किन परिस्थितियों में नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया उसे पूरा देश जानता और समझता है.
त्रिवेदी ने कहा है कि पूरा देश और छत्तीसगढ़ इस बात को बखूबी समझ रहा है कि अर्णव गोस्वामी ने 16 अप्रैल को राहुल गांधी की पत्रकार वार्ता को लेकर झूठे तथ्य प्रसारित किए थे. उसके बाद सोनिया गांधी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई. ऐसा करके अर्णव गोस्वामी ने यह जता दिया कि वे केंद्र की मोदी सरकार द्वारा करोना से निपटने में हुई लापरवाही और आपराधिक भूल से ध्यान हटाने के एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं.
स्याही फेंकने की कथित घटना को लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बताने वाले डाक्टर रमन सिंह को यह भी बताना चाहिए कि 25 मई 2013 को बस्तर के झीरम में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुआ हमला क्या था? अर्णव पर दो लोगों द्वारा स्याही फेंकने से भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह इतने विचलित और उद्वेलित हो गए कि इसे लोकतंत्र का भारी नुकसान बताकर प्रवचन देने लगे. रमन सिंह के दामाद डॉ पुनीत गुप्ता के माध्यम से अंतागढ़ में लोकतंत्र को पहुंचाए गए नुकसान पर तो रमनसिंह ने कभी कुछ नहीं बोला ?