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इधर कलक्टर बनी शिखा राजपूत उधर लगा भ्रष्टाचार का आरोप

इधर कलक्टर बनी शिखा राजपूत उधर लगा भ्रष्टाचार का आरोप

रायपुर. छत्तीसगढ़ की पूर्व स्वास्थ्य संचालक शिखा राजपूत तिवारी अभी चंद दिनों पहले ही बेमेतरा कलक्टर बनाई गई है. जाहिर सी बात है कलक्टरों की पदस्थापना मुख्यमंत्री स्वयं करते हैं, लेकिन उनके कलक्टर बनने के साथ ही एक नया विवाद भी जुड़ गया है. शिखा अब से कुछ अरसा पहले कोण्डागांव जिले में भी कलक्टर थीं तब भी उन पर अपने परिजनों और रिश्तेदारों को उपकृत करने का आरोप लगा था.इधर उन पर आरोप है कि उन्होंने आयुष्मान भारत, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा और संजीवनी सहायता कोष के क्लेम में जमकर भ्रष्टाचार किया है. सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारीक को बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और रायपुर के कुछ चिकित्सकों ने लिखित में यह शिकायत दी है कि उनसे काम के एवज में पैसों की मांग की गई है. खबर है कि नेशनल हेल्थ एजेंसी ने भी स्वास्थ्य सचिव को एक मेल के जरिए गंभीर शिकायतें भेजी है. बताया जाता है कि आयुष्मान योजना के तहत तीन हजार आठ सौ से ज्यादा रिजेक्ट क्लेम के भुगतान में उन्होंने विशेष रुचि दिखाई. बहरहाल शिकायतों के मद्देनजर पूर्व स्वास्थ्य संचालक ( वर्तमान में बेमेतरा कलक्टर ) पर स्वास्थ्य विभाग ने अपने स्तर पर जांच बिठा दी है. स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी सुरेंद्रर बांधे ने विशेष सचिव भुनेश यादव को जांच की जिम्मेदारी सौंपी है.

जांच को लेकर उठे सवाल

इधर जांच को लेकर कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं. इसमें कोई दो मत नहीं है कि भाजपा के शासनकाल से ही स्वास्थ्य विभाग आर्थिक अनियमिताओं और गड़बड़ियों का एक प्रमुख केंद्र रहा है. वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव इन गड़बड़ियों को सुधारने की कवायद में भी लगे हुए हैं और काफी हद तक उन्होंने नियंत्रित भी कर लिया है बावजूद इसके विभाग में अफसरों के बीच खुन्नस और तनातनी कायम है. विभाग के ही एक गुट का कहना है कि शिखा राजपूत तिवारी ने  वैली गेयर नाम की एक स्वास्थ्य बीमा कंपनी कंपनी के कारनामों को लेकर उच्च अधिकारियों से पत्र- व्यवहार किया था जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है. बताया जाता है कि शिखा का विरोध इस बात को लेकर था कि स्वास्थ्य विभाग उस बीमा कंपनी को भुगतान कर रही है जिसका रिकार्ड ठीक नहीं है. पहले 700-800 करोड़ की प्रीमियम होती थीं, मगर अब यह प्रीमियम 1100 करोड़ के आसपास पहुंच गई है. ( विभाग के एक दूसरे सूत्र का कहना है कि यह प्रीमियम 536 करोड़ से ज्यादा नहीं है. ) बताया जाता है कि विभाग के सभी बड़े अफसर वैली गेयर के पक्ष में हैं और शिखा खिलाफ थीं.

इधर विभाग के ही एक दूसरे गुट का कहना है कि शिखा राजपूत तिवारी आयुष्मान योजना, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना और संजीवनी सहायता कोष से जुड़े भुगतान के लिए अस्पतालों से कमीशन की मांग करती थी. कई अस्पतालों से भेदभाव भी किया गया. नई सरकार के गठन के बाद जब प्रदेश के कतिपय अस्पतालों पर स्मार्ट कार्ड योजना में गड़बड़ी के चलते गाज गिरी तब शिखा राजपूत ने अपने परिजनों और खास लोगों को मध्यस्थता के खेल में लगाकर हर अस्पताल से अच्छी-खासी वसूली की. बहरहाल इस जांच को लेकर कई तरह की बातें हो रही है. यह भी कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य बीमा योजना के एडिशनल सीईओ विजयेंद्र कटरे की संविदा नियुक्ति के विरोध के चलते उन्हें निशाने पर लिया गया है. स्वास्थ्य विभाग के एक सूत्र का कहना है कि शिखा राजपूत भारतीय प्रशासनिक सेवा की अफसर है, सो उनके खिलाफ जांच का आदेश सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जारी होना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. इस बात में कितनी सत्यता है इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन प्रशासनिक गलियारों में इस बात की भी जबरदस्त चर्चा है कि शिखा राजपूत जिन दो लोगों को सामने रखकर बातचीत करती थी उन लोगों का ऑडियो-वीडियो एक तीसरे गुट ने अपने पास सुरक्षित रखा है.

 

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