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जनता के बीच सबसे बड़ा सवाल... मुकेश गुप्ता को जेल कब होगी

जनता के बीच सबसे बड़ा सवाल... मुकेश गुप्ता को जेल कब होगी

रायपुर. छत्तीसगढ़ के विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता पर एक के बाद एक कई तरह के मामले पंजीबद्ध हो रहे हैं, लेकिन इन मामलों के पंजीबद्ध होने के साथ ही जन सामान्य के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या कभी मुकेश गुप्ता को जेल की सजा हो पाएगी.

इसमें कोई दो मत नहीं है कि वर्ष 2003 में जोगी के सत्ता में रहने के दौरान मुकेश गुप्ता बेहद पावरफुल थे. याद करिए तब वरिष्ठ भाजपा नेता नंद कुमार साय को लाठी-डंडों से पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया था. उनके पैर टूट गया था. जोगी के सत्ता से बाहर होने के बाद साय इस बात के लिए आशान्वित थे गुप्ता पर कोई बड़ी कार्रवाई होगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. भाजपा के सत्ता में आते ही गुप्ता एक बार फिर शक्तिशाली होकर उभरे और उनके खिलाफ चल रही सारी जांच ठंठे बस्ते में चली गई. इधर मुकेश गुप्ता पर शिकंजा कसने के लिए भूपेश बघेल सरकार की प्रशंसा तो हो रही है, लेकिन जनसामान्य के बीच यह चर्चा भी जमकर चल रही है कि क्या वाकई मुकेश गुप्ता को उनके काले-पीले और अवैध कारनामों के लिए कभी कोई सजा मिल पाएगी.

सवाल उठने के कई कारण है. सबसे पहला कारण तो यही है कि अदालत ने मुकेश गुप्ता को अवैध फोन टैप कांड मामले में फौरी राहत दी है. गुप्ता के पीछे बड़े-बड़े वकीलों की फौज है. इधर गुप्ता महज एक या दो बार ही ईओडब्लू में बयान देने के लिए उपस्थित हुए हैं. पहली बार उपस्थिति के दौरान उनकी अकड़ के किस्से सार्वजनिक हुए तो दूसरी बार यह बात सार्वजनिक हुई है कि वे इतना ज्यादा कूल थे कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है. पूछो जो पूछना है.... जैसा अंदाज था. गुप्ता को निलंबित हुए 90 दिन से ज्यादा हो गए हैं. इस बीच उन्होंने एक भी बार पुलिस मुख्यालय में अपनी आमद नहीं दी है जबकि उनके साथ ही निलंबित किए गए रजनेश सिंह बकायदा पुलिस मुख्यालय के छोटे से कमरे में बैठते हैं और जब बयान देने को कहा जाता है तब उपस्थित होते हैं. नियमानुसार गुप्ता को भी पुलिस मुख्यालय में मौजूद रहना है, लेकिन उनका रवैय्या सब को ठेंगे पर रखने जैसा है. उन्हें बार-बार नोटिस देकर बयान देने के लिए बुलाया जाता है लेकिन जब उनकी मर्जी होती है तब वे फ्लाइट पकड़कर बयान देने के लिए दिल्ली से आते हैं और जब मर्जी होती है फ्लाइट पकड़कर दिल्ली चले जाते हैं. पूर्व सरकार की मेहरबानी से उन्हें पूर्व विधायक की पत्नी देवती कर्मा के ठीक बगल वाला आवास आवंटित किया गया है, लेकिन यहां भी वे यदा-कदा आते हैं. वहां मौजूद सिपाहियों से पूछो तो वे कहते हैं- कई महीने हो गए साहब को देखा ही नहीं. साहब और कही रहते हैं क्या... पूछने पर सिपाहियों का जवाब होता है- हमें नहीं मालूम, लेकिन सुनते हैं कि दिल्ली में घर बना लिया है. वही से आना-जाना करते हैं. मुकेश गुप्ता के इस तरह के बेखौफ आचार- व्यवहार से यह सवाल भी उठ रहा है कि जब उन्हें अपनी सारी कानूनी प्रक्रिया दिल्ली से आकर-जाकर ही पूरी करनी है तो फिर सरकार ने उन्हें आवास सुविधा क्यों दे रखी है. उनके खिलाफ विभागीय जांच भी चल रही है, लेकिन वे एक भी बार अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं. उनका पूरा अंदाज जो करना है... कर लो जैसा है.

जरा सोचिए... अगर कोई साधारण आदमी फोन टैप और धोखाधड़ी जैसी गंभीर धाराओं का आरोपी होता तो क्या ईओडब्लू और पुलिस साधारण आदमी की आरती उतारने का उपक्रम करती. शायद नहीं.... लेकिन मुकेश गुप्ता के मामले में ऐसा ही हो रहा है. जनता के बीच में यह धारणा घर कर गई है कि मुकेश गुप्ता का बाल बांका भी नहीं हो पाएगा. वैसे एक बड़ी आबादी मुकेश गुप्ता और सुपर सीएम बनकर छत्तीसगढ़ को लूटने वाले शख्स को जेल के पीछे देखना चाहती है, लेकिन हाल-फिलहाल तो यह मुमकिन होते नहीं दिख रहा है. जनसामान्य के बीच यह चर्चा भी कायम है कि मुकेश गुप्ता पर ठोस कार्रवाई के मामले में कुछ अफसर सरकार को अंधेरे में रखकर चल रहे हैं. उनकी पूरी कोशिश है कि किसी तरह से मुकेश गुप्ता को मुसीबत के घेरे से बाहर निकाल लिया जाय. बहुत संभव है इन चर्चाओं में कोई दम न हो, लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि चर्चा का स्तर व्यापक है और जबरदस्त है.

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