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कैसे मिलेगी मलाईदार पोस्टिंग... उठा-पटक में लगे हैं  लूप लाइन में बैठे वन अफसर

कैसे मिलेगी मलाईदार पोस्टिंग... उठा-पटक में लगे हैं लूप लाइन में बैठे वन अफसर

रायपुर. प्रदेश में जब रमन सिंह की सरकार थीं तब भारतीय वन सेवा के अधिकांश अफसर मंत्रालय और अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर मलाई छान रहे थे. नई सरकार के गठन के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लंबे समय से मंत्रालय में पदस्थ रहने वाले अफसरों को अरण्य भवन रास्ता दिखाया, लेकिन वन अफसरों में लोक निर्माण के सचिव अनिल राय, योजना सांख्यिकी में पदस्थ आशीष भट्ट, सामान्य प्रशासन विभाग विभाग के कौशलेंद्र सिंह और सचिव जयसिंह महस्के ऐसे हैं जिनकी पदस्थापना मंत्रालय में है. आशीष भट्ट और महस्के को लेकर गंभीर शिकायतें भी नहीं है, लेकिन भाजपा सरकार में सुपर सीएम की नाक का बाल समझे जाने वाले अनिल राय अब तक मंत्रालय में कैसे टिके हैं इसे लेकर कई तरह की चर्चा प्रशासनिक गलियारों में कायम है. मंत्रालय से बाहर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क में पदस्थ आलोक कटियार की विवादित कार्यशैली की गूंज भी अब हर चौक-चौराहों में सुनाई देने लगी है. सीएसआईडीसी में पदस्थ अरुण प्रसाद से उनका अपना स्टाफ ही खफा चल रहा है. ( आधे से ज्यादा पुराने साहब सुनील मिश्रा से घरोबा रखने वाले हैं. )  अलबत्ता पर्यटन एवं संस्कृति विभाग में पदस्थ अनिल साहू न काहू से दोस्ती न  काहू से बैर... सिद्धांत का पालन करते हुए काम कर रहे हैं.

इधर चुनाव परिणाम के बाद 27 मई तक आचार सहिता हट जाएगी, लेकिन वन विभाग में लूप लाइन में पदस्थ अफसर मलाईदार जगह पाने के लिए अभी से जोड़-तोड़ में लग गए हैं. सुपर सीएम के साथ कई बार विदेश यात्रा करने वाले सुनील मिश्रा अरण्य भवन लौटे तो उन्हें दो महीने तक बैठने की जगह तक नहीं मिली. उनकी सारी हेकड़ी निकल गई थी. जैसे-तैसे उन्होंने वन विभाग की कमान संभालने वाले राकेश चतुर्वेदी को मनाया तो उन्हें काम सौंपा गया. फिलहाल वे वन विभाग की शिकायतों का निराकरण करने में लगे हुए हैं और चिट्ठी-पत्री का जवाब देते हैं. खबर है कि मिश्रा एक बार फिर मंत्री परिक्रमा में लग गए हैं. वन अफसर संजय शुक्ला पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड के बेहद नजदीकी समझे जाते थे. जब तक ढांड मंत्रालय में पदस्थ थे तब तक उन्हें महत्वपूर्ण दायित्व भी दिया जाता रहा. जमीनों की खरीदी और बेशुमार संपत्ति अर्जित करने के आरोपों से घिरे संजय शुक्ला भी अरण्य भवन तो लौटे तो कई दिनों तक खाली रहे. फिलहाल उन्हें अनुश्रणव एवं मूल्यांकन का कामकाज सौंपा गया है. सूत्र बताते हैं कि वे भी अपने पुराने संबंधों के जरिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं. हालांकि श्री शुक्ला राज्य लघु वनोपज संघ में एडिशनल एमडी बनने के लिए पहले भी प्रयासरत थे, लेकिन तब उनका जुगाड़ काम नहीं आया. तुरुप का पता ही फेल हो गया. हार्टिकल्चर से लौटे नरेंद्र पांडे किसी तरह की कवायद में नहीं लगे हैं क्योंकि उनकी सेवानिवृति को कुछ समय ही बाकी है. इसी 30 जून को वरिष्ठ अफसर कौशलेंद्र सिंह, केसी यादव और एके द्विवेदी भी सेवानिवृत हो रहे हैं सो वे भी खामोश है. अगर पुरानी सरकार होती तो अफसर संविदा में तैनाती के लिए आवेदन लगा चुके होते. अरण्य भवन लौटने वालों में वन अफसर नरसिम्हाराव और रामाराव भी शामिल है. ये दो अफसर ऐसे हैं जिनके पास किसी भी तरह का कोई काम नहीं है. ये दोनों अफसर अरण्य भवन में काफी-चाय पीने आते हैं. किसी चपरासी से पूछिए कि साहब... क्या कर रहे हैं तो जवाब मिलता है- साहब... मक्खी मार रहे हैं.

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