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यूपी चुनाव में नहीं चला हिन्दू-मुस्लिम खेला

यूपी चुनाव में नहीं चला हिन्दू-मुस्लिम खेला

नवम्बर 2021 को जब यह तस्वीर वायरल हुई थीं तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने टिव्हटर पर लिखा था-

हम निकल पड़े हैं प्रण करके

अपना तन-मन अर्पण करके

जिद है एक सूर्य उगाना है.

अम्बर से ऊँचा जाना है

एक भारत नया बनाना है.

इस तस्वीर के वायरल होते ही राजनीति के गलियारों में यह चर्चा चल पड़ी थीं कि योगी और मोदी के बीच किसी भी तरह की कोई दूरी नहीं है. योगी को मोदी का भरपूर साथ मिल रहा है. इधर यूपी चुनाव के पांच चरणों के चुनाव के बाद तस्वीर थोड़ी पलट गई है. खबरें बताती है कि चुनाव के दौरान किसी पोस्टर से योगी का चेहरा गायब था तो कहीं पर मोदी की तस्वीर गायब थीं. उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखने समझने वाले राजनीतिक प्रेक्षक बताते हैं कि चुनावी रैलियों के दौरान भी योगी और मोदी के बीच विभाजन साफ-साफ देखने को मिला है. यानि जिस रैली में मोदी थे वहां योगी नहीं थे और जहां योगी रैली कर रहे थे वहां मोदी अनुपस्थित थे.अमूमन ऐसा होता नहीं है. किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री अपने शीर्ष नेतृत्व के आगमन पर पलक पावड़े बिछाकर खड़ा रहता है,लेकिन यूपी में यह परम्परा एक सिरे से ओझल थीं.

बहरहाल यूपी में किसकी सरकार बनेगी इसका खुलासा तो 10 मार्च को ही होगा जब परिणाम घोषित होंगे, लेकिन भाजपा की राजनीति को पसंद करने वाला एक बड़ा धड़ा मानता है कि चाहे जो परिस्थिति हो... सरकार भाजपा की बनने वाली है जबकि बहुत से लोग ऐसे हैं जो मान रहे हैं कि इस बार यूपी में बदलाव की बयार बह रही है. मोदी और योगी मौजूदगी को महत्वपूर्ण मानने वाले एक प्रेक्षक की राय है कि यूपी में कई तरह के फैक्टर काम कर रहे हैं. हर सीट का अपना गणित है और हर गणित को हल करने मास्टर टीवी और यू ट्यूब चैनल पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं. एक धड़े की राय है कि प्रदेश में ठाकुरवाद के हावी होने के बाद से ब्राम्हण लॉबी पूरी तरह से नाराज चल रही थीं सो यह लॉबी भाजपा को सबक सिखाने के पक्ष में हैं. यूपी में पूर्वांचल का एक बड़ा धड़ा जो भूमिहार है वह ब्राम्हणों की उपेक्षा से नाराज चल रहा है. यह धड़ा 2024 को होने वाले आम चुनाव में मोदी को तो वोट देने की कसम तो खाता है लेकिन योगी को सबक सिखाने की बात भी कहता है. 

चुनाव से ठीक पहले यह समझा जा रहा था कि यूपी में हिन्दू-मुस्लिम का कार्ड जोरदार ढंग से चल जाएगा और सफल भी होगा,लेकिन बंगाल की तरह यह कार्ड यहां भी लगभग फेल हो गया है. पश्मिमी उत्तर प्रदेश में पूरी कोशिश यहीं थीं कि जाट और मुस्लिम मतदाताओं के बीच एका ना  हो पाए... लेकिन यह कोशिश बेकार साबित हुई. यूपी के अयोध्या में जहां भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन रहा है वहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अभय सिंह पांडे की स्थिति मजबूत बताई जा रही है. अगर भाजपा के हाथ से अयोध्या निकल जाती है तो 2024 के आम चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है. हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में अभय सिंह पहले भी चुनाव जीत चुके हैं. खबर तो यह भी है कि कौशांबी जिले की सिराथू सीट से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या चुनाव हार रहे हैं.

हालांकि अभी तीन और सात मार्च को कुल दो चरण में चुनाव का होना बाकी है. राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि छठवें चरण के बाद ही यह साफ हो पाएगा कि यूपी में भाजपा अपने को संभाल पाने की स्थिति में हैं या नहीं ? प्रेक्षक मानते हैं कि इस चुनाव में किसानों और छात्रों की नाराजगी का असर भी देखने को मिल रहा है. इन वर्गों का वोट सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी की तरफ शिफ्ट हुआ है जबकि प्रियंका गांधी के धुंआधार प्रचार के चलते महिलाओं की एक बड़ी आबादी ने कांग्रेस को वोट देना मुनासिब समझा है. प्रेक्षक मान रहे हैं कि सपा प्रमुख अखिलेश ने राजभर और निषाद समाज को जोड़कर बाजी अपने पक्ष में कर ली है. पिछले चुनाव में मुस्लिम वोटर बसपा की तरफ चला गया था, लेकिन इस बार वह समाजवादी पार्टी की तरफ बताया जा रहा है. वैसे सपा के पास यादव समाज का बड़ा वोंट बैंक पहले से ही मौजूद है. शहरी इलाकों में मतदान कम होने को लेकर यह बात भी सामने आई है कि चुनाव में भाजपा के कट्टर मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को वोट नहीं दिया है. (  यहां तक अपनी पार्टी को भी नहीं ) चुनावी विश्लेषकों की माने तो ऐन-केन-प्रकारेण सत्ताधारी दल को लाभ पहुंचाने वाली औवेसी की जादूगरी भी इस चुनाव में फेल हो गई है. विश्लेषक मानते हैं कि इस बार मुस्लिम वोटरों ने इधर-उधर भागने के बजाय सीधे तौर पर यह तय कर लिया है कि भाजपा प्रत्याशी को छोड़कर किसी भी दल के उस प्रत्याशी को ही वोट करना है जो जीतने की स्थिति में हैं. यहीं स्थिति पिछड़ा व अन्य वर्ग के वोट देने वाले वोटरों के बीच भी कायम है.

बहरहाल जनता से बातचीत के आधार पर किया गया हर सर्वेक्षण समाजवादी पार्टी के वोट और सीट बढ़ने की रायशुमारी दिखा रहा है. मोटे तौर पर यह तो माना ही जा रहा है कि भाजपा की सीटें बुरी तरह से घटने जा रही है. उत्तर प्रदेश में एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम की जगह समुदाय विशेष और जाति की राजनीति का डंका बजने जा रहा है.

यह टिप्पणी यूपी की राजनीति को बेहद नजदीक से देखने-समझने वाले

राजनीतिक विश्लेषकों से की गई बातचीत पर आधारित है  

 

 

 

 

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