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छत्तीसगढ़ः मीटर की शिफ्टिंग में पांच करोड़ से अधिक का घोटाला

छत्तीसगढ़ः मीटर की शिफ्टिंग में पांच करोड़ से अधिक का घोटाला

रायपुर. प्रदेश में जब भाजपा की सरकार थी तब मीटर शिफ्टिंग में घोटाले की बात सामने आई थीं, लेकिन पुरानी सरकार ने मामले को उजागर नहीं होने दिया. इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार को विधानसभा में जानकारी दी कि वर्ष 2014 तक मीटिर शिफ्टिंग के मामले में कुल पांच करोड़ 64 लाख 42 हजार 513 हजार रुपए की अनियमितता पकड़ में आई है और अब तक 64 कर्मचारियों को नोटिस भी जारी किया गया है.

कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा ने यह जानना चाहा था कि मीटर शिफ्टिंग और उच्च दरों पर कचरा बिजली खरीदी पर कितनी वित्तीय अनियमियतता हुई है और इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की गई है. प्रश्न के जवाब में मुख्यमंत्री  जो ऊर्जा विभाग के मंत्री भी है ने बताया कि छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मीटर शिफ्टिंग की प्रारंभिक जांच केवल आठ जिलों में ही पांच करोड़ 64 लाख 42 हजार 513 रुपए की अनियमितता संज्ञान में आई है. उन्होंने बताया कि ठेकेदारों ने फर्जी कार्यादेश और देयक प्रस्तुत कर भुगतान प्राप्त कर लिया था जिसके चलते अब तक 65 अधिकारियों और कर्मचारियों पर विभागीय जांच चल रही है. मुख्यमंत्री ने बताया कि जो कार्यादेश जारी किया उसमें कई तरह की कमियां उजागर हुई, इस वजह से 83 अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भी आरोप पत्र जारी किया गया है.

कई ठेकेदारों का नाम आया सामने

जब भाजपा सत्ता में थीं तब भी यह मामला जोर-शोर से उछला था. तब मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सभी दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों पर कार्रवाई करने की बात कही थीं, लेकिन कुछ नहीं हुआ. इस बीच एक-दो ठेकेदारों ने अदालत की शरण लेकर राहत पाने की कवायद की. इस मामले में  तुलसी नगर कोरबा के मेसर्स विधवानी इन्फ्राटेक, बिलासपुर सरकंडा के विजय कुमार अचवानी कटघोरा के पंकज केला, पाली के राघवेन्द्र जायसवाल, कटघोरा के संजय नायडू, अमित कुमार जायसवाल, जगदलपुर के सहारा दास, सुनील कड़से, पिंटू ठाकुर का नाम प्रमुख रुप से  उभरा था. तब इन ठेकेदारों को महज काली सूची में डाला गया था. शासन को करोड़ों रुपए की चपत लगाने वाले ठेकेदार बच निकले थे.

इस तरह हुआ था घोटाला

अप्रैल 2012 से लेकर नवंबर 2014 के बीच बिजली कंपनी ने ठेकेदारों को घरों और उद्योगों में कमरों के भीतर लगे मीटरों को उखाड़कर बाहर लगाने का वर्कऑर्डर दिया था. इसमें हर काम के लिए राशि तय की गई थी। मसलन, केबल लगाने, मीटर का बोर्ड पुराने के बजाय नया लगाने के लिए रुपए ठेकेदार को दिए जाने थे. मीटर बाहर लगाने, कनेक्शन करने और केबल लगाने के लिए एक कनेक्शन पर 405 रुपए खर्च करने थे. दो साल में करीब एक लाख कनेक्शन के लिए 4.05 करोड़ रुपए का भुगतान ठेकेदारों को किया गया, लेकिन हकीकत यह थी कि कहीं कम केबल लगाकर रुपए बचाए गए और कहीं केबल ही नहीं लगाए गए. अधिकांश स्थानों पर केबल की राशि कंज्यूमर से ही वसूल की गई. मीटर बोर्ड भी नया लगाने के बजाय अंदर का ही उखाड़कर बाहर लगा दिया गया. यानि बड़ी होशियारी से सरकारी रकम की चपत लगाई गई. इस खेल में ठेकेदार व अधिकारी दोनों शामिल थे.

 

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