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बसेगा या उजड़ेगा जिंदल का ऊर्जा नगर

बसेगा या उजड़ेगा जिंदल का ऊर्जा नगर

रमेश अग्रवाल रायगढ़

महाजेनको को आबंटित गारे पेलमा सेक्टर में कोल ब्लॉक के माइनिंग क्षेत्र के अंदर जिदल पावर लिमिटेड तमनार का विशाल उर्जानगर भी आ रहा है. लगभग १५० एकड़ में बनी इस पाश कालोनी में ५५५ फ्लैट व बंगले हैं. इसके साथ ही सी.बी.एस.ई मान्यता प्राप्त शानदार सीनियर सेकेंडरी स्कूल भी इसी कालोनी में संचालित है जहां जिंदल के अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चे पढ़ते हैं. इसके अलावा इस पाश कालोनी में बड़े बड़े पार्क व मंदिर भी हैं.  

वर्ष २००६ में बने इस उर्जानगर के अस्तित्व पर अब सवाल उठने लगे हैं. यद्यपि महाजेनको ने जन सुनवाई के लिये तैयार की गई ई.आई.ए. रिपोर्ट में इसका जिक्र तक नहीं किया है, लेकिन ई.आई.ए. रिपोर्ट में माइनिंग क्षेत्र के दिये गये नक़्शे को गूगल अर्थ में बड़ा कर देखा जाए तो उर्जानगर साफ साफ दिखता है. ( देखें नक्शा  ) 

क्या लगभग १५० एकड़ में बनी इस पाश कालोनी को महाजेनको अधिग्रहण करेगा ? यदि करता है तो उसके लिए यह काम आसान नहीं होगा. ये कोई निरीह आदिवासी की जमीन–मकान नहीं है जिसे भूअर्जन से आसानी से लिया जा सकेगा. जिंदल जैसी बड़ी व ताकतवर कंपनी आसानी से इसे अपने हाथों से नहीं जाने देगी. चाहे इसके लिये उसे सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़े. कारण साफ है हजारों की संख्या में इस कालोनी में रहने वाले जिंदल की अधिकारी कर्मचारियों के लिए दूसरी कालोनी तमनार में जगह मिलना ही मुश्किल है. सवाल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य का भी है.

दूसरी तरफ यदि महाजेनको उर्जानगर को छोड़ कर माइनिंग करता है तो उसे इसके लिए कम से कम २०० एकड़ जमीन  तो छोडनी ही पड़ेगी और इतने बड़े क्षेत्र से निकलने वाले लाखों टन कोयले से हाथ धोना पड़ेगा. जिसकी कीमत अरबों, खरबों में अनुमानित है.  

ताज्जुब की बात है कि जन सुनवाई के लिये ई.आई.ए. रिपोर्ट पर्यावरण विभाग के पास साल भर पहले से आ चुकी थी लेकिन उसने जिला प्रशासन को इस महत्वपूर्ण तथ्य से अवगत नहीं करवाया और आनन- फानन में जन सुनवाई की तिथि निर्धारित करवा ली. यदि रायगढ़ कलेक्टर के संज्ञान में यह बात आई होती तो शायद वे कंपनी से इस बारे में सवाल जरुर करते और हो सकता है माइनिंग प्लान दोबारा बनाने के लिए कहा जाता. बहरहाल उर्जानगर का भविष्य आने वाला समय ही तय करेगा.

विशेष- प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल के इस महत्वपूर्ण आलेख पर जिंदल के जनसंपर्क विभाग का कामकाज देख रहे सुयश शुक्ला ने मंगलवार 4 जून को अपना मोर्चा डॉट कॉम से दूरभाष पर चर्चा की. उनकी आपत्ति थी कि लेख में कोई भी बात सही ढंग से नहीं रखी गई है. हमने श्री शुक्ला से विस्तारपूर्वक उनका पक्ष रखने का आग्रह किया जिस पर वे सहमत नहीं हुए. उनका कहना था कि लेख को वेबसाइट या पोर्टल में जगह ही नहीं मिलनी चाहिए थीं. उन्होंने लेख को पोर्टल से हटाने का आग्रह किया. बहरहाल अब भी श्री शुक्ला इस लेख पर जिंदल कंपनी का कोई पक्ष रखना चाहते हैं तो उसे जस का तस प्रकाशित कर दिया जाएगा. इधर सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने अपने आलेख में जो सवाल उठाए हैं वह पूरी तरह से सही है. अग्रवाल ने बताया कि माइनिंग क्षेत्र में पाश कालोनी बना ली गई है. अब जबकि खदान किसी दूसरे के पास चली गई है तब खनन कैसे संभव होगा.

 

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