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मल्टी विटामिन सिरप घोटालाः ईओडब्लू से बचने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं नाहर बंधु

मल्टी विटामिन सिरप घोटालाः ईओडब्लू से बचने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं नाहर बंधु

रायपुर. छत्तीसगढ़ के आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने भले मल्टी विटामिन सिरप घोटाले की जांच प्रारंभ कर दी है, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी हवा में तैर रहा है कि क्या सच में धमतरी की नाहर मेडिकल एजेंसी पर शिकंजा कस पाएगा. खबर है कि नाहर मेडिकल एजेंसी के रसूखदार कर्ता-धर्ता अपने बचाव के लिए इधर-उधर हाथ-पांव मार रहे हैं. इधर स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त भुवनेश यादव का कहना है कि अगर किसी ने गलत किया है तो उसे बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने अपना मोर्चा डॉट कॉम से कहा कि एक शिकायत के बाद छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन ने सिरप खरीदी की नए सिरे से छानबीन की है जिसकी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है. गौरतलब है कि भाजपा शासनकाल में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन ने एमल्टी विटामिन सिरप की खरीदी कर धमतरी की नाहर मेडिकल एजेंसी को लगभग 13 करोड़ सात लाख रुपए का लाभ पहुंचाया था. इस मामले में कांग्रेस नेता नितिन भंसाली की शिकायत के बाद ईओडब्लू ने प्रारंभिक जांच प्रारंभ तो कर दी है, लेकिन सूत्रों का दावा है कि एजेंसी के कर्ता-धर्ता  प्रशासनिक व अन्य स्तर पर मामले को रफा-दफा करने के खेल में लग गए हैं. यहां यह बताना लाजिमी है कि नाहर मेडिकल एजेंसी नाम तब भी सुर्खियों में आया था जब प्रदेश में कलर डाप्लर और मलेरिया किट खरीदी घोटाला हुआ था. इस एजेंसी के कर्ता-धर्ता बंसत-जितेंद्र नाहर को पूर्व सरकार के एक स्वास्थ्य मंत्री एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष का सरंक्षण प्राप्त था. बताते हैं कि इस परिवार के एक सदस्य को भाजपा शासनकाल में ही छत्तीसगढ़ फार्मेसी काउंसिल का सदस्य भी नामित किया गया था. इस एजेंसी के साथ निखिल डागा नाम के एक व्यक्ति की संलिप्तता भी बताई जा रही है. सूत्र कहते हैं कि इस एजेंसी के एक कर्ताधर्ता की अच्छी-खासी जमीन भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर के पास भी है. सूत्रों का दावा है कि दवा सप्लायर ने पार्टी कार्यालय को आने-जाने के लिए जगह भी मुहैय्या करवाई है. जानकार बताते हैं कि फिलहाल एजेंसी के कर्ता-धर्ता राजनांदगांव जिले के एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के माध्यम से ईओडब्लू में पैठ बनाकर मामले को ठंडे बस्ते में डालने की जोड़-तोड़ में लगे हैं. एजेंसी के कर्ताधर्ता यह कहते फिर रहे हैं- सीबीआई से निपट लिए हैं तो ईओडब्लू से भी निपट लेंगे.

यह है पूरा मामला

दिनांक 23 फरवरी 2016 को डायरेक्टर हेल्थ ऑफ सर्विसेस ने छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन लिमिटेड को 441 दवाईयों की खरीदी के लिए एक पत्र लिखा था. इस पत्र के आधार पर 11 अगस्त 2016 को आनलाइन टेंडर जारी किया गया, लेकिन थोड़े ही दिनों यह कहा जाने लगा कि टेंडर निकालने में देरी हो गई है इसलिए 23 जरूरी दवाईयां ( ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसवीएस ऑफ इंडिया ) बीपीपीआई के माध्यम से अनुमोदित की दरों पर खरीद ली जाए. इसके बाद डायरेक्टर हेल्थ ने बगैर टेंडर के दवाईयां खरीदने की अनुमति मांगी थी.

मल्टीविटामिन सीरप का चक्कर

डायरेक्टर हेल्थ लगभग पचास लाख अठावन हजार पांच सौ चालीस मल्टीविटामिन बोतल ( प्रत्येक बोतल 100 एमएल ) की खरीदी करना चाहता था, लेकिन छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन ने जानकारी दी कि दवा सप्लायरों के पास 200 एमएल की बोतल ही उपलब्ध है जिसकी कीमत 27 रुपए 64 पैसे हैं. इस बारे में डायरेक्टर हेल्थ और छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन लिमिटेड के बीच पत्र व्यवहार चलता रहा. डायरेक्टर हेल्थ ने दिनांक 27 मार्च 2017 को एक पत्र के जरिए अवगत कराया कि उसे अब सीरप की जरुरत नहीं होगी. सीरप के बजाय मल्ली विटामिन टेबलेट ( ड्रग कोड डी-63 ) खरीद लिया जाय.... और तब..........

बताते हैं कि डायरेक्टर हेल्थ और मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन के बीच चले पत्र व्यवहार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री के एक नजदीक के रिश्तेदार ने दबाव देना प्रारंभ किया.उनके दबाव के बाद अचानक 100 एमएल वाली मल्टीविटामिन वाली सीरप की बोतल भी मिल गई. डायरेक्टर हेल्थ महज पचास लाख अठावन हजार पांच सौ चालीस बोतल चाहता था, लेकिन मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन ने 73 लाख 94 हजार पांच सौ बोतल खरीद ली. इस पूरे मामले का सबसे संदिग्ध पक्ष यह है कि जब डायरेक्टर हेल्थ सीरप चाहता था तो सीरप की बोतल नहीं मिल रही थी और जब डायरेक्टर हेल्थ ने कहा कि चलिए बोतल नहीं मिल रही है तो टेबलेट खरीद लीजिए तब अचानक बोतल मिल गई. डायरेक्टर हेल्थ जितनी संख्या में बोतल चाहता था उससे कहीं ज्यादा संख्या में सीरप की खरीदी हो गई. बताते हैं कि सप्लाई का सारा काम धमतरी की नाहर नाम की एक मेडिकल एजेंसी को दिया गया था. इस एजेंसी को भी 90 दिनों के भीतर सप्लाई करनी थी, लेकिन इस सप्लायर ने 75 दिन देरी से सीरप की सप्लाई की. भंसाली का आरोप है कि बाजार से अधिक दर पर मल्टीविटामिन सीरप की खरीदी कर शासन को करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाया गया है जबकि नाहर नाम की मेडिकल एजेंसी 13 करोड़ सात रुपए अतिरिक्त भुगतान हासिल करने में सफल रही. खबर है कि इस मामले में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन के प्रमुख रामाराव को वही पदस्थ कुछ अधिकारियों ने समझाइश दी थी कि वे नियम-कानून से परे जाकर सिरप की खरीदी न करें, लेकिन वे नहीं माने. जिन अफसरों से समझाइश दी थी बाद में उनका तबादला अन्यत्र कर दिया गया.

इधर कुछ नए तथ्य भी जुड़े

खबर है कि कांग्रेस नेता नितिन भंसाली 15 मई को ईओडब्लू के समक्ष अपना पहला बयान दर्ज करवाया है. प्रारंभिक बयान के बाद ईओडब्लूू ने यह मान लिया है कि सिरप की खरीदी में जमकर गड़बड़झाला हुआ है.भंसाली के बयान के बाद अब ईओडब्लू इस मामले की विस्तृत जानकारी स्वास्थ्य महकमे से मांगेगा. इधर सूत्र कहते हैं कि विभाग ने पहले से अपनी तैयारी कर रखी है. भंसाली के बयान के बाद कुछ और नए तथ्य सामने आए हैं. बताया जाता है कि बीपीपीआई ( ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसवीएस ऑफ इंडिया ) की अधिकृत वेबसाइट में 100 एमएल मल्टीविटामिन सिरप सूची में शामिल नहीं है. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन लिमिटेड ने सिरप की खरीदी की थी. जिस सिरप को खरीदा गया उसमें बीपीपीआई का लोगो भी लगा है. यह संदेह भी व्यक्त किया जा रहा है कि या लोगो को नाहर मेडिकल एजेंसी ने तैयार किया है या फिर इस खेल में बीपीपीआई के अधिकारी भी शामिल है. सूत्र बताते है कि नाहर एजेंसी ने हिमाचल प्रदेश की जिस CIAN FARMA से सिरप की खरीदी कर छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन को सप्लाई की वह बीपीपीआई की अधिकारिक वेबसाइट में सूचीबद्ध ही नहीं है. सूत्रों का दावा है कि CIAN FARMA ने नाहर मेडिकल एजेंसी को सिरप आठ रुपए प्रति बोतल की दर से विक्रय किया है जबकि नाहर एजेंसी ने छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन को 18 रुपए प्रति बोतल का बिल थमाया है. छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन ने 13 करोड़ सात लाख रुपए का भुगतान किस मद से किया यह भी साफ नहीं है.

 

 

 

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