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छत्तीसगढ़ में गोदी मीडिया के खिलाफ सड़कों पर नारे और... डोला यात्रा

छत्तीसगढ़ में गोदी मीडिया के खिलाफ सड़कों पर नारे और... डोला यात्रा

राजकुमार सोनी

चापलूस मीडिया को जितनी जल्दी यह बात समझ जाए उतना अच्छा होगा...अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब जनता या तो चापलूस मीडियाकर्मियों को दफ्तरों में घुसकर पीटेगी या फिर सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर मारेगी. यह बात मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि छत्तीसगढ़ के बेमेतरा-नवागढ़ और मुंगेली में गोदी मीडिया के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई है. सामाजिक कार्यकर्ता लाखन सिंह और गुरुघासीदास सेवादार संघ के केंद्रीय संयोजक लखनलाल कुर्रे के निमंत्रण पर इसी महीने 28 अप्रैल को डोला यात्रा में शामिल होने का अवसर मिला तब सड़कों पर पूंजीवाद, मनुवाद, जातिवाद, मोहन भागवत, संघवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ नारेबाजी के बीच गोदी मीडिया से आजादी का नारा भी जोरदार ढंग से गूंजा. हालांकि यात्रा में स्वाभिमानी, मेहनतकश और समय और समाज के लिए प्रतिबद्ध मीडियाकर्मियों के सम्मान की रक्षा के लिए भी नारे लगे. 

आगे यह अवश्य बताना चाहूंगा कि डोला यात्रा क्या है और गत 12 साल से क्यों निकाली जा रही है, लेकिन सबसे पहले इस बात पर थोड़ी चर्चा आवश्यक है कि गोदी मीडिया के खिलाफ नारेबाजी क्यों हुई. यात्रा में शामिल लोगों ने चर्चा में बताया कि पहले मीडिया का जबरदस्त सम्मान हुआ करता था, लेकिन अब वह स्थिति नहीं है. टीवी हो अखबार... हर जगह से गांव और खलिहान की खबरें गायब है. जैसे ही कोई टीवी खोलता है सबसे पहले मोदी दिखाई देता है. हर चैनल में केवल मोदी... मोदी... ऐसा लगता है कि मोदी के अलावा कोई दूसरा जीव इस देश में रहता ही नहीं है. यात्रा में शामिल एक नौजवान का कहना था- छत्तीसगढ़ में भी जब रमन सिंह की सरकार थीं तब सारी मीडिया उनकी जय-जयकार में लगी थीं. विज्ञापन में जय-जय. खबरों में जय-जय. हर अखबार और चैनल वाले जनता को झूठी सूचनाएं परोसते थे. नौजवान का कहना था कि चाहे दिल्ली हो या छत्तीसगढ़... मीडिया के लोग संगठित गिरोह की तरह काम कर रहे हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. एक दिन सबक सीखा दिया जाएगा. मैं छत्तीसगढ़ के लोगों को थोड़ा-बहुत जानता हूं. वे जो बोलते हैं वे करते हैं. जो नहीं बोलते वे नहीं करते. अब यह मीडिया को तय करना है कि उसे चापलूसी का क्रम जारी रखना है  या फिर जनता की खबरों से रिश्ता बरकरार रखना है.

यात्रा में शामिल होने के दौरान ही मुझे पता चला कि लखनलाल कुर्रे सुबोध जी ने अपने कुछ जाबांज साथियों के मिलकर गुरुघासीदास विचार शोध संस्था का निर्माण किया और गुरुघासीदास जी के सामाजिक न्याय और वैज्ञानिक ढंग से किए गए कामों को लेकर अब भी संघर्षरत है. पहले तो मुझे यह लगा था कि डोला यात्रा एक सामान्य यात्रा होगी, लेकिन मेरा यह भ्रम उस वक्त दूर हो गया जब यात्रा में मार्क्स, लेनिन, भीम राव अंबेडकर और फुले को बार-बार याद किया गया. यात्रा में सामाजिक न्याय ( बराबरी ) को महत्वपूर्ण मानने वाला हर विचार शामिल था. यात्रा में लोग चल रहे थे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा विचार चल रहा था. अपनी बात कहने के लिए किसी को भी डीजे लगाकर नाचने-कूदने की जरूरत नहीं पड़ी.

इसलिए निकाली जाती है डोला यात्रा

वर्ष 1882 में नवलपुर पंडरिया के पास महंत भुजबल रहा करते थे. एक बार वे अपने बेटे के विवाह के लिए घोड़े पर सवार होकर चिरहुला गांव जा रहे थे. रास्ते में अमोली सिंह राजपूत ने उन्हें पायलागी महाराज कह दिया. जवाब में मुजबल महंत ने सतनाम साहेब कहा. अमोली को यह बात अखर गई. वह समझ गया कि घोड़े पर सवार शख्स ठाकुर नहीं बल्कि सतनामी है. अमोली ने तुरन्त प्रतिक्रिया में कहा- केवल ऊंची जाति के लोग ही घोड़े पर बैठ सकते हैं. पगड़ी पहन सकते हैं. उसने भुजबल महंत से घोड़ा छोड़कर... पगड़ी- पनही उतारकर सिर पर जूते को रखकर माफी मांगने को कहा. प्रत्युतर में भुजबल महंत ने कहा- हम मनुष्य है. हम किसी के गुलाम नहीं है. बाद में जब भुजबल चिरहुला पहुंचे तो सबको यह जानकारी दी कि किसी ठाकुर ने उनके घोड़े को रोका है. इधर अमोली सिंह ने अपने समाज के लोगों से मिलकर यह योजना बनाई कि अब भुजबल को अकेले नहीं बल्कि तब लूटा जाएगा जब वह अपने बेटे की शादी करेगा और बहु लेकर आएगा. और जब  वह दिन आया तब सतनामियों के आगे अमोली सिंह और उसके आदमियों को मात खानी पड़ी. लखनलाल कुर्रे और गुरूघासीदास सेवादार संघ के साथी इसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में गत 12 साल से डोला यात्रा निकालते हैं. इस यात्रा के जरिए वे यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि हम सभी मनुष्य है. जाति-पांति का बंधन तोड़कर मनुष्य को मनुष्य समझने की कवायद जारी रखो. यात्रा बेमेतरा नवलपुर से नवागढ़ होकर मुंगेली तक गई. रास्ते में जगह- जगह ग्रामीणों ने यात्रा का स्वागत किया. मुंगेली के एक सभागृह में दलितों के लिए लगातार कार्यरत गोल्डी जार्ज, कसम के संयोजक और लेखक तुहिन देव महिला अधिकार मंच की रिनचिन, सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गा झा, छत्तीसगढ़ मुक्तिमोर्चा की श्रेया, बामसेफ के स्थापना सदस्य बीसी जाटव,मजदुर नेता कलादास डेहरिया, पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के डा. लाखन  सिंह, लखनलाल कुर्रे ने संबोधित किया .सभा का संचालन एमडी सतनाम ने किया.पूरे आयोजन को सफल बनाने के लिए दिनेश सतनाम ,तामेश्वर, अनंत,मनमोहन बांधे ,चंन्द्र प्रकाश टंडन ,राजेश जांगडे,भाग चंद ,गुलाब चंद ,देवा बघेल ,अर्जुन जांगडे,ईश्वर खांडे ,रूप दास टंडन ,नेत राम खांडे ,कल्प आर्या ,राजेश आर्या,एम डी सतनाम ,गुलाब अनंत ,मिरही लाल खांडे,भूपेंद्र कौशल ,राधे लाल ,गजेश शांडे ,भगवान दास मोहले ,भानू धारिया ,श्याम चंन्द मिरी , बेनी राम बंजारे,दिनेश सतनाम ,केशव सतनाम ,दौलत धारिया ,किशोर सोनवानी ,राकेश टंडन ,सुरेश ,राम नारायण भारती ,गोपाल ,संतराम ,आत्मा राम ,गोल्डी खांडे ,सुरेश ,चंन्द्र कुमार चतुर्वेदी ,नयन दास अनंत ने विशेष सहयोग दिया.

 

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