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छत्तीसगढ़ की जेलों में बंद चार हजार से ज्यादा आदिवासी जल्द ही होंगे रिहा

राजकुमार सोनी

रायपुर. छत्तीसगढ़ के आठ जिलों में लगभग दस हजार से ज्यादा आदिवासी जेलों में बंद है. सरकार ने फिलहाल चार हजार से ज्यादा आदिवासियों की रिहाई का सैद्धांतिक फैसला कर लिया है. इस फैसले पर आचार संहिता हटने के बाद पक्की मुहर लग जाएगी.गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बेकसूर आदिवासियों को रिहा करने करने की बात कही थीं. नई सरकार के गठन के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महाधिवक्ता कनक तिवारी और राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा को आदिवासियों की रिहाई को लेकर ठोस योजना पर विचार करने को कहा था. महाधिवक्ता कनक तिवारी और राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायमूर्ति  एके पटनायक से प्रारंभिक चर्चा की थी. चूंकि श्री पटनायक छत्तीसगढ़ बिलासपुर उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस भी थे सो उन्होंने आदिवासियों की रिहाई के लिए बनाई गई कमेटी का अध्यक्ष बनना स्वीकार कर लिया. सोमवार 13 मई को इस कमेटी की पहली बैठक स्थानीय सर्किट हाउस में रखी गई. बैठक में कुल 1141 प्रकरणों के चार हजार सात आदिवासियों की रिहाई को लेकर विचार-विमर्श किया गया. बैठक में माओवादी होने के झूठे आरोप में फंसाए गए  340 प्रकरण के 1552 आदिवासी भी जल्द ही रिहा कर दिए जाएंगे.

इन जिलों के आदिवासी होंगे रिहा

फिलहाल कमेटी ने बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर, सुकमा, कोंडागांव और राजनांदगांव की जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई को लेकर विचार-विमर्श किया है. कमेटी के सदस्य पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी, आदिम जाति विभाग के सचिव डीडी सिंह, जेल महानिदेशक गिरधारी नायक, बस्तर आईजी पी सुंदराज, बस्तर आयुक्त ने यह माना है छत्तीसगढ़ की जेलों में कही जंगल से जलाऊ लकड़ी बीनने के आरोप में आदिवासी सजा काट रहे हैं तो कही अत्यधिक मात्रा में शराब निर्माण करने की सजा भुगत रहे हैं. कई बेकसूर आदिवासी माओवादी होने के आरोप में लंबे समय से बंद है. उनके आगे-पीछे कोई नहीं है तो वे जमानत भी  नहीं ले पा रहे हैं. फिलहाल कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके पटनायक ने सोमवार को सभी सदस्यों को जिम्मेदारी सौंपी. महाधिवक्ता कनक तिवारी को रिहाई के मसले पर कानूनी नोट्स तैयार करने को कहा गया है. कमेटी के सभी सदस्यों को 15 जून तक रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है. कमेटी की अगली बैठक 22 जून को होगी.

इधर बैठक उधर इस्तीफे की खबर

इधर आदिवासियों की रिहाई के लिए बनी कमेटी की सर्किट हाउस में बैठक चल रही थीं उधर कुछ चुनिंदा पत्रकारों को कतिपय लोग फोन कर यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि क्या महाधिवक्ता कनक तिवारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. प्रदेश में पिछली सरकार के कतिपय बड़े रसूखदारों लोगों को उच्च न्यायालय से मिली राहत के बाद सूबे में यह चर्चा कायम हो चली है कि आखिरकार घाघ आरोपियों को कोर्ट से राहत कैसे मिल रही है. क्या पुलिस की कार्रवाई या कागज-पत्री में कोई कमी है. या फिर अधिवक्ताओं की लंबी-चौड़ी फौज के बीच किसी तरह का मनमुटाव है. कौन किसको राहत दिलाने में जुटा है इसे लेकर अलग-अलग तरह की अलग कहानियां हवा में तैर रही है जनसामान्य के बीच यह चर्चा कायम है कि पुलिस अफसरों और कानून के जानकारों का एक गुट अब भी पुरानी सरकार की चाकरी में लगा हुआ है. अब तक एक भी रसूखदार की गिरफ्तारी न होने से जनता के बीच यह चर्चा भी चल रही है कि पैसों में बड़ी ताकत होती है. कानून सिर्फ गरीब आदमी के लिए होता है. चर्चा में यह बात भी शामिल है कि दिल्ली में बैठे हुए दो अफसर रिमोट कंट्रोल के जरिए सब कुछ मैनेज कर रहे हैं. घाघ लोग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को फेल करने की साजिश रच रहे हैं. इधर अपना मोर्चा डॉट कॉम ने महाधिवक्ता श्री तिवारी के इस्तीफे के संबंध में पतासाजी की तो ज्ञात हुआ कि कानून के जानकारों के बीच आपसी टकराव के चलते अफवाह उड़ाई गई थी. 

( अपना मोर्चा डॉट कॉम की प्रत्येक खबर को आप प्रकाशित करने के लिए स्वतंत्र है. बस... आपको साभार... अपना मोर्चा डॉट कॉम लिखना होगा. खबरों को जस का तस यानी कापी पेस्ट करने वालों से यह निवेदन मात्र है. ) 

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भाजपा सरकार में अमन सिंह की बीवी को बैठे-बिठाए मिलता था एक लाख रुपए महीना...नृत्य का मानदेय भी लाखों में

रायपुर. विवादास्पद आईपीएस मुकेश गुप्ता, स्टेनो रेखा नायर और पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता पर शिकंजा कसने के बाद पुलिस अब पूर्व मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी यास्मीन सिंह पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है.  इधर अमन सिंह की पत्नी यास्मीन सिंह पर भी यह आरोप लगा है कि वे बगैर किसी योग्यता के लंबे समय तक संविदा में पदस्थ रही और बैठे-बिठाए एक लाख रुपए महीना हासिल करती रही.गौरतलब है कि पिछले महीने 12 अप्रैल को प्रदेश कांग्रेस के सचिव विकास तिवारी ने राज्य के मुख्य सचिव सुनील कुजूर को अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ शिकायत की थी.  फिलहाल सरकार यास्मीन सिंह के खिलाफ नियम-कानून की पक्की और अब तक विवादों से दूर रही भारतीय प्रशासनिक सेवा की तेज-तर्रार अफसर रेणु पिल्ले को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया है. श्रीमती पिल्ले को तीन माह के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया है. 

यास्मीन पर लगे कई गंभीर आरोप

सामान्य प्रशासन विभाग की सचिव रीता शांडिल्य 10 मई को जारी आदेश में कहा है कि यास्मीन सिंह एक नृत्यांगना है. उनकी प्रोफाइल में भी यही उल्लेखित है कि उन्होंने देश के कई हिस्सों में अपनी प्रस्तुति दी है. यास्मीन ने कभी किसी तरह का शासकीय कार्य नहीं किया बावजूद इसके उन्हें नवम्बर 2005 में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में संचालक, संचार, क्षमता विकास इकाई ( सीसीडीयू ) बना दिया गया. वे लंबे समय तक पदस्थ रही.इतना ही नहीं उनकी संविदा नियुक्ति हर बार बढ़ाई जाती रही. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे अमन सिंह की पत्नी है. नियुक्ति के दौरान उन्हें केवल 35 हजार रुपए का वेतनमान दिया जाना तय हुआ था जिसे बाद में गुपचुप ढंग से बढ़ाकर एक लाख रुपए कर दिया  गया. यास्मीन सिंह 14 साल तक संविदा में पदस्थ रही,लेकिन उनका ज्यादातर कार्य नृत्यांगना के रुप में ही प्रचारित होता था. उन्हें सरकार की ओर से आयोजित समारोह में नृत्य करने के लिए  अत्यधिक मानदेय पर आमंत्रित किया जाता था जबकि छत्तीसगढ़ के कलाकार काम के लिए तरसते थे. यास्मीन सिंह को एक कार्यक्रम के लिए एक से डेढ़ लाख का भुगतान किया जाता था. रीता शांडिल्य ने जांच के बिन्दुओं में यह सवाल भी शामिल किया है कि लंबे समय तक पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में पदस्थ रहने के बावजूद इनके कार्य, अवकाश, नृत्य प्रदर्शन के लिए विभागीय अनुमति की कोई जानकारी संधारित क्यों नहीं है. इन सारे बिन्दुओं पर रेणु पिल्ले को जांच करने के लिए कहा गया है. सूत्र बताते हैं कि इस मामले में जांच के बाद यास्मीन सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी. पूरे प्रकरण में दोनों विभागों के कई अधिकारियों के फंसने के भी संभावना है. इधर यास्मीन सिंह ने अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को निराधार और असत्य बताया है. उनका कहना है कि उनकी नियुक्ति सारे नियमों के हवाले से  सक्षम अधिकारी की मंजूरी के साथ पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए की गई है. किसी भी मामले में उन्होंने अपनी नियुक्त स्वयं नहीं की. इसलिए यदि राज्य सरकार को उनकी नियुक्ति में कोई चिंता दिखती है तो वह अधिकारियों से पूछताछ कर सकती है जो नियुक्ति के लिए जिम्मेदार है. यह आरोप गलता है कि मैंने ( यास्मीन सिंह ) राज्य सरकार से कोई अनुचित लाभ लिया है. उन्होंने कहा कि उनका चयन पूरी योग्यता के आधार पर हुआ है. ऐसा लगता है कि राज्य सरकार के मामलों की देख-रेख करने वाले अब तक के प्रशासन और उनके परिवार वालों को राजनीतिक विद्वेष साधने के लिए टारगेट कर रहे हैं. यास्मीन सिंह ने कहा कि वे सारे लोग जो मुझे बदनाम करना चाहते हैं उनके खिलाफ तो मुकदमा करेगी साथ ही जांच के संबंध में भी समुचित कदम उठाएंगी.

अमन सिंह पर भी गंभीर आरोप 

विकास तिवारी ने अपनी शिकायत में कहा है कि अमन सिंह भारतीय राजस्व सेवा के एक कनिष्ठ अधिकारी थे. वर्ष 2004 में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के संयुक्त सचिव बनाए गए थे. उनके पिता वाईएन सिंह मध्यप्रदेश  सरकार में संयुक्त पंजीयक थे. एक मध्यवर्गीय परिवार से होने के नाते उनके परिवार के नाम पर कोई बड़ी भारी संपत्ति नहीं थी, लेकिन अमन सिंह के छत्तीसगढ़ में पदस्थ होने के साथ उनके परिजनों की संपत्ति में इजाफा होने लगा. शिकायत में आगे कहा है कि अमन सिंह ने शासन को करोड़ों का चूना लगाकर भ्रष्टाचार किया है. उनके हर भ्रष्टाचार की जानकारी पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को मालूम थीं लेकिन वे खामोश बने रहे. तिवारी ने मुख्य सचिव को जो शिकायत सौंपी है उसमें अमन सिंह की संपत्ति के ब्यौरे के साथ दस्तावेज भी दिए हैं. शिकायत में बताया गया है कि अमन सिंह ने दिल्ली के महारानी बाग में 12 करोड़ का मकान खरीदा है. लगभग एक साल पहले एक अंतराष्ट्रीय कंपनी कारगिल एमएनसी ने शिमला में एक महंगा गेस्ट हाउस बेचा था. इस गेस्ट हाउस को भी अमन सिंह ने खरीदा है. शिकायत में कहा गया है कि राजनांदगांव के ग्राम ढेलकाढीह और खैरागढ़ रोड से 15 किलोमीटर दूर पर स्थित एक गांव में भी अमन सिंह ने अपनी पत्नी यास्मीन सिंह के रिश्तेदारों के नाम पर लगभग पांच सौ एकड़ बेनामी संपत्ति खरीदी है. अमन सिंह के विदेश में कनेक्शन को लेकर काफी बातें लंबे समय से कही जाती रही है. शिकायत में कहा गया है कि अमन सिंह ने अपनी अकूत दौलत का एक बड़ा हिस्सा अपनी पत्नी के नाम से दुबई के बैंकों में जमा कर रखा है. शिकायतकर्ता ने एक बैंक का आईडी नंबर भी दिया है. इसके अलावा भोपाल में औद्योगिक भूमि खरीदने, विधानसभा रोड़ पर जमीन खरीदने का जिक्र भी है. 

 

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मोदी जी... क्या रमन का प्यारा दामाद पुनीत गुप्ता भी नीरव मोदी बनकर हो जाएगा फरार

रायपुर. जो काम छत्तीसगढ़ की पुलिस को करना चाहिए वह काम नागरिक कर रहे हैं. कई गंभीर मामलों में अपराध दर्ज होने के बावजूद भी पुलिस अब तक पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता पर हाथ नहीं डाल पाई है. सार्वजनिक स्थलों और गाड़ियों पर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद का मोस्ट वांटेड पोस्टर चस्पा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पंजाब नेशनल बैंक के जोनल हेड ( भोपाल ) को खत लिखा है. अपने खत में कुणाल ने कहा है कि मोदी जी... आप खाऊंगा न खाने दूंगा की बात करते हैं तो खुशी होती है, लेकिन क्या आपको पता है कि आपकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता डाक्टर रमन सिंह के दामाद ने करोड़ों रुपए का फ्राड किया है…क्या आप उसे भी नीरव मोदी तरह विदेश भागने का मौका देना चाहते हैं.

रमन को सब पता था

गौरतलब है कि डाक्टर पुनीत गुप्ता ने राजधानी रायपुर के सरकारी अस्पताल  भीमराव अंबेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल  को सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में तब्दील करने के लिए 99 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार किया था। वर्ष 2016-17 में जब यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया तब राज्य सरकार के पास बजट नहीं था. लिहाज़ा, अस्पताल के लिए मशीनों और उपकरण की ख़रीदी के लिए पंजाब नेशनल बैंक से लोन लेने का फ़ैसला लिया गया. लोन के लिए पूरी प्रक्रिया डॉ. पुनीत गुप्ता के निर्देश पर हुई थी. सूत्र बताते हैं कि पुनीत गुप्ता की इस तमाम तरह की कार्रवाई की जानकारी पूर्व मुख्यमंत्री को थी. इस मामले में सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के अवर सचिव सुनील विजयवर्गीय को गारंटर बनाकर पीएनबी से 64 करोड़ रुपए का टर्म लोन और 5 करोड़ रुपये के कैश क्रेडिट की मंजूरी करवाई गई थीं.

फर्जी हस्ताक्षर से लिया लोन

बैंक से रकम जारी होने के बाद डॉ. पुनीत गुप्ता ने मनमाने तरीके़ से अस्पताल की मशीनें और उपकरण ख़रीदे। इसकी ख़रीद में उन्हीं कंपनियों को टेंडर में प्राथमिकता दी गई, जिनका चयन पुनीत गुप्ता ने किया था. नियमानुसार किसी भी प्रोजेक्ट के लिये लोन जारी करने से पहले बैंक, आवेदन पत्र के साथ उस संस्थान की ऑडिट रिपोर्ट अनिवार्य रूप से जमा करवाता है. एक शिकायत के बाद पुलिस को पता चला कि जो ऑडिट रिपोर्ट जमा की गई है उसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) प्रकाश के हस्ताक्षर फर्जी है. सीए प्रकाश देशमुख ने पुलिस को दिए अपने बयान में भी मान लिया है कि पंजाब नेशलन बैंक को भेजी गई ऑडिट रिपोर्ट में उसने किसी तरह का कोई हस्ताक्षर नहीं किया है. सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला का कहना है कि क्या जब पुनीत गुप्ता विदेश फरार हो जाएगा तब कार्रवाई होगी. यहां यह बताना लाजिमी है कि करोड़ों रुपए की चपत लगाने वाले नीरव मोदी को भी पंजाब नेशनल बैंक ने कर्ज दिया था. कुणाल ने बैंक के जोनल हेड को भेजी शिकायत में पूछा है कि अब तक बैंक की तरफ से पुनीत गुप्ता के खिलाफ एफआईआर क्यों दर्ज नहीं करवाई गई. क्या पंजाब नेशनल बैंक भी पुनीत गुप्ता के फरार होने का इंतजार कर रहा है. क्या बैंक एक और नीरव मोदी की फरारी के बाद ही एफआईआर दर्ज करवाएगा.

 

 

 

 

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अब अडानी के विज्ञापन में प्रधानमंत्री की फोटो

रायपुर. अब अडानी कंपनी के एक विज्ञापन में भी प्रधानमंत्री की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है.मंगलवार 30 अप्रैल को प्रधानमंत्री की तस्वीर वाला यह विज्ञापन दैनिक भास्कर के पृष्ठ क्रमांक 9 में प्रकाशित हुआ है. यह भी संभव है कि अलग-अलग संस्करण में विज्ञापन की जगह बदल गई हो, लेकिन इस विज्ञापन में प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ दावा किया गया है कि कंपनी भारत सरकार से मान्यता प्राप्त है और पूरे भारत में पांच हजार बायो डीजल पंप निर्माण का लक्ष्य पूरा करने जा रही है. विज्ञापन में कंपनी के कुछ फोन नंबर और सूरत ( गुजरात ) का पता दिया गया है. विज्ञापन के ठीक बाजू में बायोडीजल को ईंधन का बेहतरीन विकल्प बताते हुए एक आर्टिकल भी छापा गया है. ( शायद यह भी विज्ञापन का अंश हो. ) लेकिन इस विज्ञापन को देखकर छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती रमन सरकार का वह नारा भी याद आता है- डीजल नहीं अब खाड़ी से... डीजल मिलेगा बाड़ी से. जब छत्तीसगढ़ में रतनजोत से बायोडीजल बनाने की योजना फ्लाप हो गई तब कांग्रेस के मोहम्मद अकबर का नारा था- न झाड़ी में न बाड़ी में.... क्या वापस जाय खाड़ी में.

आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या है इस विज्ञापन में जिसका जिक्र हो रहा है. सबसे बड़ी बात तो यही है कि पूरे देश में पिछले पांच सालों में अगर प्रधानमंत्री के रिश्तों को अगर किसी तरह की कोई चर्चा हुई है तो वह अंबानी और अडानी ही है. प्रधान सेवक पर यह आरोप लगता रहा है कि वे अंबानी और अडानी को उपकृत करने का काम करते रहे हैं. गौरतलब है कि वर्ष 2016 में मुकेश अंबानी की रिलायंस कंपनी ने अपने एक विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल किया था तब फेसबुक, ट्विटर सहित अन्य माध्यमों में मोदी की जमकर आलोचना देखने को मिली थीं. भले ही रिलायंस इंडस्ट्री ने अपने विज्ञापन डिजिटल इंडिया को आधार बनाया था लेकिन तब यह सवाल उठा था कि क्या एक प्रधानमंत्री को किसी निजी कंपनी का ब्रांड एम्बेसडर बनना चाहिए था.जब इस मामले की गूंज संसद में सुनाई दी तब सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने यह माना था कि जियो के विज्ञापन में प्रधानमंत्री की तस्‍वीर छापने और दिखाने के लिए कंपनी की ओर से किसी भी प्रकार की अनुमति नहीं ली गयी थीं. उन्होंने इस मामले में उचित कार्रवाई के संकेत भी दिए थे. बाद में यह बात भी सार्वजनिक हुई कि जियो कंपनी को पांच सौ रुपए का जुर्माना लगाया गया है.

कंपनी नहीं कर सकती व्यावसायिक इस्तेमाल

राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों और नामों के गलत इस्तेमाल को लेकर 1950 में बने कानून के सेक्शन-3 के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने व्यापारिक या कारोबारी उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों और नामों का केंद्र सरकार या सक्षम अधिकारी से अनुमति लिए बगैर इस्तेमाल नहीं कर सकता. इस कानून के तहत करीब तीन दर्जन नामों और चिह्नों की सूची तैयार की गयी है, जिनका कोई व्यक्ति सरकारी अनुमति के बिना अपने कारोबारी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता. इनमें देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्य के गवर्नर, भारत सरकार या कोई राज्‍य सरकार, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, संयुक्त राष्ट्र संघ, अशोक चक्र और धर्म चक्र शामिल हैं. अब अडानी को प्रधानमंत्री की तस्वीर के उपयोग के लिए अनुमति दी गई है या नहीं यह अभी साफ नहीं है.

 

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छत्तीसगढ़ में गोदी मीडिया के खिलाफ सड़कों पर नारे और... डोला यात्रा

राजकुमार सोनी

चापलूस मीडिया को जितनी जल्दी यह बात समझ जाए उतना अच्छा होगा...अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब जनता या तो चापलूस मीडियाकर्मियों को दफ्तरों में घुसकर पीटेगी या फिर सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर मारेगी. यह बात मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि छत्तीसगढ़ के बेमेतरा-नवागढ़ और मुंगेली में गोदी मीडिया के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई है. सामाजिक कार्यकर्ता लाखन सिंह और गुरुघासीदास सेवादार संघ के केंद्रीय संयोजक लखनलाल कुर्रे के निमंत्रण पर इसी महीने 28 अप्रैल को डोला यात्रा में शामिल होने का अवसर मिला तब सड़कों पर पूंजीवाद, मनुवाद, जातिवाद, मोहन भागवत, संघवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ नारेबाजी के बीच गोदी मीडिया से आजादी का नारा भी जोरदार ढंग से गूंजा. हालांकि यात्रा में स्वाभिमानी, मेहनतकश और समय और समाज के लिए प्रतिबद्ध मीडियाकर्मियों के सम्मान की रक्षा के लिए भी नारे लगे. 

आगे यह अवश्य बताना चाहूंगा कि डोला यात्रा क्या है और गत 12 साल से क्यों निकाली जा रही है, लेकिन सबसे पहले इस बात पर थोड़ी चर्चा आवश्यक है कि गोदी मीडिया के खिलाफ नारेबाजी क्यों हुई. यात्रा में शामिल लोगों ने चर्चा में बताया कि पहले मीडिया का जबरदस्त सम्मान हुआ करता था, लेकिन अब वह स्थिति नहीं है. टीवी हो अखबार... हर जगह से गांव और खलिहान की खबरें गायब है. जैसे ही कोई टीवी खोलता है सबसे पहले मोदी दिखाई देता है. हर चैनल में केवल मोदी... मोदी... ऐसा लगता है कि मोदी के अलावा कोई दूसरा जीव इस देश में रहता ही नहीं है. यात्रा में शामिल एक नौजवान का कहना था- छत्तीसगढ़ में भी जब रमन सिंह की सरकार थीं तब सारी मीडिया उनकी जय-जयकार में लगी थीं. विज्ञापन में जय-जय. खबरों में जय-जय. हर अखबार और चैनल वाले जनता को झूठी सूचनाएं परोसते थे. नौजवान का कहना था कि चाहे दिल्ली हो या छत्तीसगढ़... मीडिया के लोग संगठित गिरोह की तरह काम कर रहे हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. एक दिन सबक सीखा दिया जाएगा. मैं छत्तीसगढ़ के लोगों को थोड़ा-बहुत जानता हूं. वे जो बोलते हैं वे करते हैं. जो नहीं बोलते वे नहीं करते. अब यह मीडिया को तय करना है कि उसे चापलूसी का क्रम जारी रखना है  या फिर जनता की खबरों से रिश्ता बरकरार रखना है.

यात्रा में शामिल होने के दौरान ही मुझे पता चला कि लखनलाल कुर्रे सुबोध जी ने अपने कुछ जाबांज साथियों के मिलकर गुरुघासीदास विचार शोध संस्था का निर्माण किया और गुरुघासीदास जी के सामाजिक न्याय और वैज्ञानिक ढंग से किए गए कामों को लेकर अब भी संघर्षरत है. पहले तो मुझे यह लगा था कि डोला यात्रा एक सामान्य यात्रा होगी, लेकिन मेरा यह भ्रम उस वक्त दूर हो गया जब यात्रा में मार्क्स, लेनिन, भीम राव अंबेडकर और फुले को बार-बार याद किया गया. यात्रा में सामाजिक न्याय ( बराबरी ) को महत्वपूर्ण मानने वाला हर विचार शामिल था. यात्रा में लोग चल रहे थे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा विचार चल रहा था. अपनी बात कहने के लिए किसी को भी डीजे लगाकर नाचने-कूदने की जरूरत नहीं पड़ी.

इसलिए निकाली जाती है डोला यात्रा

वर्ष 1882 में नवलपुर पंडरिया के पास महंत भुजबल रहा करते थे. एक बार वे अपने बेटे के विवाह के लिए घोड़े पर सवार होकर चिरहुला गांव जा रहे थे. रास्ते में अमोली सिंह राजपूत ने उन्हें पायलागी महाराज कह दिया. जवाब में मुजबल महंत ने सतनाम साहेब कहा. अमोली को यह बात अखर गई. वह समझ गया कि घोड़े पर सवार शख्स ठाकुर नहीं बल्कि सतनामी है. अमोली ने तुरन्त प्रतिक्रिया में कहा- केवल ऊंची जाति के लोग ही घोड़े पर बैठ सकते हैं. पगड़ी पहन सकते हैं. उसने भुजबल महंत से घोड़ा छोड़कर... पगड़ी- पनही उतारकर सिर पर जूते को रखकर माफी मांगने को कहा. प्रत्युतर में भुजबल महंत ने कहा- हम मनुष्य है. हम किसी के गुलाम नहीं है. बाद में जब भुजबल चिरहुला पहुंचे तो सबको यह जानकारी दी कि किसी ठाकुर ने उनके घोड़े को रोका है. इधर अमोली सिंह ने अपने समाज के लोगों से मिलकर यह योजना बनाई कि अब भुजबल को अकेले नहीं बल्कि तब लूटा जाएगा जब वह अपने बेटे की शादी करेगा और बहु लेकर आएगा. और जब  वह दिन आया तब सतनामियों के आगे अमोली सिंह और उसके आदमियों को मात खानी पड़ी. लखनलाल कुर्रे और गुरूघासीदास सेवादार संघ के साथी इसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में गत 12 साल से डोला यात्रा निकालते हैं. इस यात्रा के जरिए वे यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि हम सभी मनुष्य है. जाति-पांति का बंधन तोड़कर मनुष्य को मनुष्य समझने की कवायद जारी रखो. यात्रा बेमेतरा नवलपुर से नवागढ़ होकर मुंगेली तक गई. रास्ते में जगह- जगह ग्रामीणों ने यात्रा का स्वागत किया. मुंगेली के एक सभागृह में दलितों के लिए लगातार कार्यरत गोल्डी जार्ज, कसम के संयोजक और लेखक तुहिन देव महिला अधिकार मंच की रिनचिन, सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गा झा, छत्तीसगढ़ मुक्तिमोर्चा की श्रेया, बामसेफ के स्थापना सदस्य बीसी जाटव,मजदुर नेता कलादास डेहरिया, पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के डा. लाखन  सिंह, लखनलाल कुर्रे ने संबोधित किया .सभा का संचालन एमडी सतनाम ने किया.पूरे आयोजन को सफल बनाने के लिए दिनेश सतनाम ,तामेश्वर, अनंत,मनमोहन बांधे ,चंन्द्र प्रकाश टंडन ,राजेश जांगडे,भाग चंद ,गुलाब चंद ,देवा बघेल ,अर्जुन जांगडे,ईश्वर खांडे ,रूप दास टंडन ,नेत राम खांडे ,कल्प आर्या ,राजेश आर्या,एम डी सतनाम ,गुलाब अनंत ,मिरही लाल खांडे,भूपेंद्र कौशल ,राधे लाल ,गजेश शांडे ,भगवान दास मोहले ,भानू धारिया ,श्याम चंन्द मिरी , बेनी राम बंजारे,दिनेश सतनाम ,केशव सतनाम ,दौलत धारिया ,किशोर सोनवानी ,राकेश टंडन ,सुरेश ,राम नारायण भारती ,गोपाल ,संतराम ,आत्मा राम ,गोल्डी खांडे ,सुरेश ,चंन्द्र कुमार चतुर्वेदी ,नयन दास अनंत ने विशेष सहयोग दिया.

 

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अब थ्री स्टार वाली सरकारी गाड़ी से ठसनबाजी नहीं कर पाएंगे मुकेश गुप्ता

रायपुर. देश के सबसे विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता अब थ्री स्टार वाली सरकारी गाड़ी में ठसनबाजी नहीं कर पाएंगे. सरकार ने वाहन क्रमांक सीजी 03/ 6494 को वापस करने का निर्देश दिया है. पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी ने इस बाबत योजना एवं प्रबंध के विशेष महानिदेशक को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए आदेश जारी कर दिया है. इतना ही नहीं पुलिस महानिदेशक ने गुप्तवार्ता के विशेष महानिदेशक संजय पिल्लै एवं रायपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शेख आरिफ हुसैन को एक पत्र लिखकर मुकेश गुप्ता को प्रदाय की जाने वाली सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करने के निर्देश भी दिए हैं. अवस्थी ने पत्र में लिखा है- जितना बल आवश्यक हो, उतना ही दिया जाय... शेष बल तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाय.  

अवस्थी ने बताया कि शासन स्तर पर एक सुरक्षा समिति होती है जो श्रेणी के आधार पर यह तय करती है कि किसे कितनी सुरक्षा की आवश्यकता है. अगर प्रोटेक्शन रिव्यू कमेटी ने यह मान लिया कि मुकेश गुप्ता को सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है तो फिर उनके साथ एक भी गनमैन नहीं रहेगा. वैसे निलंबित मुकेश गुप्ता एक असफल खुफिया चीफ रहे और  माओवादी क्षेत्र में सीधे कभी पदस्थ नहीं रहे. उनका ज्यादातर कार्यकाल शहरी क्षेत्र का है. निलंबन के दौरान भी उन्हें पुलिस मुख्यालय में आमद देने को कहा गया है, निलंबन के बाद से वे एक भी बार पुलिस मुख्यालय नहीं पहुंचे. माना जा रहा है कि गुप्ता को सुरक्षा की वैसी आवश्यकता नहीं है इसलिए सभी गनमैन जल्द ही वापस ले लिए जाएंगे.

सरकारी गाड़ी में पहुंचकर दिखाया था रौब

गौरतलब है कि अपना मोर्चा डॉट कॉम ने शुक्रवार को इस आश्य की खबर दी थी कि निलंबित होकर भी मुकेश गुप्ता सरकारी गाड़ी और गनमैन का उपयोग कर रहे हैं. नियमानुसार एक निलंबित अफसर को केवल जीवन निर्वाह भत्ता लेने की पात्रता होती है, लेकिन गुप्ता जब गुरुवार को ईओडब्लू के दफ्तर में बयान दर्ज करने के लिए पहुंचे तब सरकारी गाड़ी का दरवाजा उनके गनमैन ने खोला था. गुप्ता ने गाड़ी से उतरकर फिल्मी अंदाज में फोटो खिंचवाई थीं और रौब झाड़ते हुए कहा था- आप लोगों ने मेरा काम देखा है... और अब देखिए क्या हो रहा है. 

 

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निलंबित होकर भी मुकेश गुप्ता दौड़ा रहे हैं सरकारी गाड़ी

रायपुर. क्या एक निलंबित अफसर सरकारी गनमैन और सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल कर सकता है. नियम तो यही कहता है कि निलंबित अफसर को केवल जीवन निर्वाह भत्ता लेने की पात्रता होती है, लेकिन विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता के साथ ऐसा नहीं है. वे अब भी सरकारी गाड़ी में गनमैन को साथ लेकर चल रहे हैं. गुरुवार को जब वे ईओडब्लू के दफ्तर में बयान दर्ज करने के लिए पहुंचे तब सरकारी गाड़ी का दरवाजा उनके गनमैन ने ही खोला था. गुप्ता ने गाड़ी से उतरकर फिल्मी अंदाज में फोटो खिंचवाई और कहा- आप लोगों ने मेरा काम देखा है... और अब देखिए क्या हो रहा है.

बंगले में भी तैनात है गनमैन

मुकेश गुप्ता के पास कुल कितनी संपत्ति है. वे कितने वैध-अवैध प्लाट और मकानों के मालिक है इसकी जानकारी ईओडब्लू ने जुटा ली है. उनका एक सरकारी आवास मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निवास के पास ही है. मुकेश गुप्ता के घर के बाजू में देवती कर्मा का मकान है और थोड़ी ही दूरी पर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को आवास आवंटित किया गया है. फिलहाल मुकेश गुप्ता के सरकारी आवास पर दो गनमैन तैनात है. उनकी गाड़ी में भी एक गनमैन रहता ही है. नियमानुसार निलंबित आईपीएस गुप्ता के पास से गनमैन और वाहन की सुविधा हटा ली जानी चाहिए थीं, लेकिन वे अब भी इसका लाभ ले रहे हैं. पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी का कहना है कि पहले चार गनमैन थे, लेकिन निलंबित होते ही दो गनमैन हटा लिए गए हैं. सरकारी गाड़ी के इस्तेमाल के संबंध में उन्होंने कहा कि वे शुक्रवार को इसकी पूरी नियमावली देखकर आवश्यक कार्रवाई करेंगे. पुलिस विभाग के एक सेवानिवृत अफसर जो इन दिनों दिल्ली में हैं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि निलंबित अफसर को राज्य स्तरीय सुरक्षा समिति के निर्देश के बाद ही सरकारी वाहन और गनमैन की सुविधा दी जा सकती है, लेकिन पुलिस विभाग ने मुकेश गुप्ता को गनमैन की सुविधा शायद इसलिए दे रखी है ताकि वे स्वयं होकर यह आरोप न लगा दें कि सरकार उनकी जान लेना चाहती है. नक्सलियों ने अटैक कर दिया आदि-आदि.

राजेश टोप्पो ने भी नहीं लौटाई गाड़ी

इधर पत्रकारों की सेक्स सीडी बनाने के खेल में लगे राजेश सुकुमार टोप्पो पर भले ही ईओडब्लू ने मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन खबर है कि उन्होंने भी गाड़ी क्रमांक सीजी 02- 9333 जनसंपर्क विभाग को वापस नहीं लौटाई है. टोप्पो अभी मंत्रालय में अटैच है और उनके पास कोई विभाग भी नहीं है बावजूद इसके वे सरकारी गाड़ी लेकर घूम रहे हैं. इतना ही नहीं विभाग के दो वाहन चालकों की सेवाएं भी वे ले रहे हैं.

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राहुल गांधी ने चौकीदार से नहीं...सुप्रीम कोर्ट से जताया खेद

नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी काफी लंबे समय से खुद को देश का चौकीदार बताने वाले प्रधानमंत्री को चोर की संज्ञा से नवाजते रहे हैं. अभी हाल के दिनों की एक चुनावी रैली में उन्होंने कहा था- अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार चोर है. उनके इस कथन के बाद भाजपा नेत्री मीनाक्षी लेखी ने एक याचिका दायर कर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगाया था. बीते 15 अप्रैल को लेखी की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगाई ने साफ किया था कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी कोई ऐसा बयान नहीं दिया है जिसे गलत ढंग से प्रस्तुत किया जाय. कोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी को नोटिस जारी कर सफाई भी मांगी थी. सोमवार 22 अप्रैल को जब एक बार फिर सुनवाई हुई तो राहुल ने सुप्रीम कोर्ट को जोड़कर कही गई अपनी बातों के लिए खेद जता दिया.

भक्तों को लगा हो गई बल्ले-बल्ले

राहुल गांधी के खेद जताने के साथ ही मोदी भक्त खुशी से उछल पड़े है. सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में राहुल को चरसी... गंजेडी और मंदबुद्धि लिखा जा रहा है. अपनी निजी टिप्पणियों में भक्त यह भी लिख रहे हैं कि चोर-चोर कहने से भाजपा को लगातार नुकसान हो रहा था, लेकिन अब तीसरे चरण के चुनाव के साथ ही स्थिति सुधर जाएगी और बाजी पलट जाएगी. इधर कांग्रेस समर्थक भी सोशल मीडिया में सफाई दे रहे हैं कि राहुल ने चौकीदार से नहीं ब्लकि सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी है. समर्थकों का कहना है कि चौकीदार अब भी चोर ही है.

 

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मोदी से कांपने वाली दलाल मीडिया ने ढंग से नहीं छापी पुण्य प्रसुन बाजपेयी की खबर

रायपुर. शनिवार को देश के प्रसिद्ध पत्रकार पुण्य प्रसुन बाजपेयी गांधी ग्लोबल फैमली की ओर से आयोजित प्रतिरोध के स्वर नामक एक कार्यक्रम में  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मौजूद थे. उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग साइंस कॉलेज के पास स्थित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम पहुंचे. सत्ता की गलत नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षर के रुप में विख्यात बाजपेयी को कव्हरेज करने अमूमन सभी अखबार और चैनलों के नामचीन प्रतिनिधि भी मौजूद थे, लेकिन अततः हुआ वहीं जिसका अंदेशा था. कार्यक्रम की समाप्ति के बाद कई प्रबुद्ध श्रोताओं ने आशंका जताई कि बाजपेयी की सच्ची बातों को गोदी मीडिया में क्या ठीक-ठाक जगह मिल पाएगी. उनका अंदेशा सही साबित हुआ. अखबारों ने तड़का-फड़का टैलेंट... महिलाओं ने खेला सांप-सीढ़ी का खेल और पेशाब कम होने पर ज्यादा पानी पीने की सलाह देने वाली खबरें तो छापी लेकिन बाजपेयी को ढंग से जगह नहीं दी. ( एक- दो अखबार और चैनल को छोड़कर...एक अखबार ने तो मरी-खपी सी जगह पर फोटो के साथ कैप्शन लगाकर इतिश्री कर ली.) हालांकि सोशल मीडिया में बाजपेयी की खबर जमकर चली और अब भी चल रही है.

अपने ढ़ाई घंटे के तार्किक भाषण में बाजपेयी ने शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी अधिकारों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए. उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों को आधार बनाकर बताया कि सरकार बेहद खौफनाक ढंग से आवाम को बेवकूफ बना रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र की सरकार ने देश का पूरा सिस्टम ही ध्वस्त कर दिया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की वेबसाइट में लोगों को भरमाने के लिए कई तरह के आंकड़े दे रखे हैं, लेकिन जब इन आंकड़ों की तस्दीक की जाती है तो वे झूठे निकलते हैं. उन्होंने कहा कि हर विभाग को पर्याप्त बजट जारी होता है, लेकिन उसका लाभ देश की जनता को नहीं मिल पा रहा है. बजट की भारी-भरकम राशि का उपयोग कार्पोरेट जगत से जुड़े लोग ही कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब देश का होनहार बच्चा देश छोड़कर जाता है तो फिर दोबारा लौटने की नहीं सोचता क्योंकि देश का माहौल उतना बेहतर नहीं है. कुछ अरसा पहले विदेशी बच्चे भी भारत की सभ्यता और संस्कृति को जानने समझने के लिए आते थे, लेकिन अब उनकी संख्या में भी भारी कमी आ गई है. बाजपेयी ने कहा कि हम अब तक एक भी ऐसा विश्वविद्यालय खड़ा नहीं कर पाए हैं जिस पर हमें गर्व हो.बाजपेयी ने देश की मीडिया को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि मीडिया का स्वरुप पूरी तरह से बदल गया है. उन्होंने मीडिया को प्रचार के लिए जारी होने वाली राशि का भी खुलासा किया और कहा कि अब मीडिया में जनता से जुड़ी हुई सच्ची और अच्छी खबरों की गुंजाइश खत्म कर दी गई है. उन्होंने हॉल में उपस्थित दर्शकों को 23 मई तक  टीवी न देखने की सलाह भी दी. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय अंधेरे का समय अवश्य है, लेकिन देश के लोगों को तय करना होगा कि वे अंधेरे से लड़ना चाहते हैं या फिर अंधेरे में रहना चाहते हैं. 

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साध्वी को टिकट दिए जाने का देशभर में विरोध... भाजपा की जमकर फजीहत

रायपुर. महाराष्ट्र के मालेगांव बम बलास्ट की एक आरोपी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से टिकट दिए जाने का देशभर में विरोध हो रहा है, छत्तीसगढ़ भी उससे अछूता नहीं है. शनिवार को प्रदेश के अमन पसन्द नागरिक भगत सिंह चौक पर साध्वी के उस बयान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि आईपीएस हेमंत करकरे को उनके कर्मों की वजह से सजा मिली है. करकरे को उनका श्राप लग गया.

संगठित मीडिया दबाव में

देश का संगठित मीडिया जिसे मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है वह अब भी भगवा दबाव में दिखाई देता हैं और यह खबर छापने से कतरा रहा है कि साध्वी को टिकट दिए जाने के पीछे का असली खेल क्या है. अब तक संगठित मीडिया में इस बात को लेकर किसी तरह की कोई गंभीर रपट देखने को नहीं मिली कि साध्वी पर दांव खेलने की सबसे बड़ी वजह क्या है. मोटे तौर पर केवल यह बात ही प्रचारित की जा रही है कि साध्वी को जेल हुई थी... और उसे जेल में बहुत सताया गया है. मुख्यधारा की मीडिया का फोकस इस बात को लेकर नहीं है कि आतंकवाद का जड़ मूल से खात्मा कर देने का दावा कर देने वाली भाजपा को आतंकवाद के कंधों की जरूरत क्यों पड़ रही है.

मुखर है सोशल मीडिया

फेसबुक, टिव्हटर व अन्य माध्यमों में इस बात को लेकर तीखी बहस चल रही है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक को किनारे कर भगवा आतंकवाद के सहारे चुनावी नैय्या पार लगना चाहते हैं. साध्वी ने बम ब्लास्ट के आरोप में कई साल जेल में बिताए हैं और इन दिनों वह सशर्त जमानत पर रिहा है. साध्वी के रोने-धोने और जेल की कथा-कहानी के जरिए मीडिया का एक बड़ा वर्ग सहानुभूति की पतंग उड़ाने की कवायद कर रहा है, लेकिन इसके उलट सोशल मीडिया में प्रतिक्रिया बेहद तीखी है. आइए... कुछ पोस्ट का जिक्र यहां करते हैं- रोशनी सागर ने अपने फेसबुक पर लिखा है-मीडिया भाजपा के वोटों के लिए शहीदों का गीत गाती है, लेकिन अब प्रज्ञा ने जो बयान दिया है उस पर खामोश अख्तियार कर ली है. सफाई कामगारों पर किताब लिखने वाले संजीव खुदशाह की टिप्पणी है- प्रज्ञा ठाकुर के बयान से तो लगता है कि कसाब को इसी ने बुलाया था. यानी दोनों आतंकवादी आपस में  मिले हुए थे. शैलेंद्र गुप्ता ने लिखा है- मनोज तिवारी से लोग गाने की फरमाइश करते थे. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से बम फोड़कर दिखाने की फरमाइश करेंगे. नवीन जायसवाल साह ने लिखा है-भाजपा ने साध्वी को टिकट देकर साबित कर दिया है कि कल अगर जमानत मिले तो वह आशाराम और राम-रहीम को भी टिकट दे सकती है. राकेश परिहार लिखते हैं- प्रज्ञा कह रही है कि उसे करकरे ने फंसा दिया था. करकरे भ्रष्ट है. क्या एक भ्रष्ट अधिकारी देश के लिए अपनी जान दे सकता है. अब्दुल कलाम ने फेसबक में लिखा है- मित्रों जब पाकिस्तान में हाफिज सईद चुनाव लड़ सकता है तो भारत में प्रज्ञा ठाकुर क्यों नहीं लड़ सकती. मोदी ने पाक को उसी भाषा में जवाब दिया है. बिग्रेडियर प्रदीप यदु का कहना है- पुलवामा में 42 सैनिक मारे गए और इधर भाजपा ने एक आतंकी को टिकट दे दिया. यह है दिखावे का राष्ट्रवाद. धनजंय सिंह ठाकुर का कहना है- किरकिरी के बाद भाजपा प्रज्ञा ठाकुर के बयान से किनारा कर रही है. जब बयान से पल्ला झाड़ना था तो फिर टिकट ही क्यों दिया. रमन सिंह की सरकार में जेल भेजे गए बस्तर के एक पत्रकार प्रभात सिंह ने लिखा है- अपुन को भी टिकट चाहिए. अपुन आतंकवादी न सही जेल तो देखेला है बीडू. साहित्यकार बुद्धिलाल पाल ने लिखा है- प्रज्ञा के राजतिलक से पूरी दुनिया में यह संदेश तो चला ही गया है कि भारत में आतंकवादियों की बल्ले-बल्ले है. स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता अनुज लिखते हैं- प्रज्ञा अगर साधु होना तुम्हारे जैसा होना है तो मैं तुम्हारी पूरी जमात से नफरत करता हूं. पीयूसीएल के पूर्व अध्यक्ष लाखन सिंह ने लिखा है- प्रज्ञा को टिकट देकर मालेगांव के निवासियों के जख्मों पर नमक छिड़क दिया गया है. सोनू शर्मा की टिप्पणी व्यंग्य से भरी हुई है. उन्होंने लिखा है- नमो टीवी की नई पेशकश... साध्वी बनी श्रापन. सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंह चौहान ने अपने वॉल पर एक लंबी टिप्पणी लिखी है. वे लिखते हैं- अशोक चक्र से सम्मानित हेमंत करकरे का अपमान कर प्रज्ञा ने अक्षम्य अपराध किया है. यह अपराध अब माफी मांगने से भी माफ नहीं होगा. नचिकेता ने एक पोस्टर शेयर किया है. इसमें लिखा है- भोपालवासियों... क्या आपका बहुमूल्य वोट मालेगांव बम बलास्ट के आरोपियों क समर्पित हो सकता है. सुदर्शन लिखते हैं- प्रज्ञा ठाकुर साध्वी है या बम बाइक वाली बाई. सोनू ने इंदौर के एक अखबार की कतरन शेयर की है. अग्निबाण नाम के इस अखबार की खबर है- शिवराज सरकार ने प्रज्ञा को दो बार गिरफ्तार करवाया था. विनोद दुबे ने भी एक खबर का लिंक शेयर किया है जिसमें लिखा है-बीजेपी प्रत्याशी प्रज्ञा पर है छह लोगों की हत्या का इल्जाम. अभी जमानत पर है.

 

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रमन के चेहरे पर फेयर एंड लवली चुपड़ने के खेल में लगे टोप्पो पर जुर्म दर्ज

रायपुर. कमाल के हैं टोप्पो साहब...। टोप्पो मतलब राजेश सुकुमार टोप्पो। कद-काठी में छोटे हैं. लगता है कि जैसे अभी-अभी किसी गांव की हायर सेकेंडरी स्कूल से बारहवीं पास करके निकले हैं. नाम के साथ सुकुमार चस्पा है तो यह अहसास भी होता है कि सुकुमार ही होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. प्रदेश में जब भाजपा की सरकार थीं तो पूर्व मुख्यमंत्री और सुपर सीएम के नाम से कुख्यात एक भ्रष्ट अफसर की नाक के बाल बने हुए थे. टोप्पो साहब से हर कोई भयभीत रहता था. हर छोटी-बड़ी खबर में अखबार और चैनल के मालिकों को फोन किया करते थे और समझाइश देने से भी नहीं चूकते थे कि खबर कैसी लिखी जानी चाहिए. साहब को हाइलाइट करने का गुर समझाते रहते थे. उनकी भक्ति को इस कदर शक्ति मिली हुई थीं कि वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल की सीडी बनवाने के खेल में लगे हुए थे. बहुत बाद में यह भी साफ हुआ कि पूर्व मुख्यमंत्री के निवास में पदस्थ ओएसडी अरुण बिसेन और सुपर सीएम के इशारे पर वे छत्तीसगढ़ के चुनिंदा पत्रकारों को बैंकाक-पटाया ले जाकर उनकी सेक्स सीडी भी बनवाना चाहते थे. ( हालांकि पहली खेप में वे पत्रकारों के एक दल को बैकांक-पटाया भेजने में सफल भी हो गए. ) लेकिन इधर नई सरकार बनने के बाद टोप्पो ईओडब्लू के हत्थे चढ़ गए हैं. शुक्रवार को उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा- 7 ( सी ) व धारा 13 ( ए ) के तहत दो मामलों में अपराध दर्ज कर लिया गया हैं. ईओडब्लू के प्रमुख जीपी सिंह के मुताबिक यह रिपोर्ट संवाद के प्रमुख उमेश मिश्रा, पंकज गुप्ता, हीरालाल देवांगन, जेएल दरियो की कमेटी की ओर से प्रारंभिक जांच के बाद सौंपी गई रिपोर्ट और नए सिरे की गई तहकीकात के आधार पर दर्ज की गई है. उन्होंने बताया कि अभी कई खुलासे बाकी है. संभव है आगे कुछ और मामलों में एफआईआर दर्ज हो.

बचाव में लगे थे टोप्पो

पुरानी सरकार में आग भूंकने वाले टोप्पो नई सरकार के बनते ही थोड़े समय के लिए अंर्तध्यान हो गए थे. जैसे सुपर सीएम के बारे में यह अफवाह प्रचारित थीं कि वे गोवा के मुख्यमंत्री पर्रिकर के यहां जगह बनाने में सफल हो गए हैं ठीक वैसे ही टोप्पो को लेकर कहा जा रहा था कि वे नौकरी छोड़कर किसी मल्टीनेशनल कंपनी को ज्वाइन करने वाले हैं. इधर सामाजिक कार्यकर्ता उचित शर्मा उनकी करतूतों का भांडा फोड़ने में लगे हुए थे. सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई जानकारियों के बाद उचित शर्मा यह प्रमाणित करने में सफल हो गए कि जनसंपर्क और संवाद के प्रमुख रहने के दौरान टोप्पो ने कई करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ियों को अंजाम दिया है. बताते हैं कि टोप्पो ने पिछले दिनों राज्य के कई कद्दावर अफसरों और नेताओं से अपने बचाव के लिए मेल-मुलाकात की थीं. प्रशानिक हल्कों में यह चर्चा थीं कि वे किसी न किसी तरह की जोड़-जुगाड़ से बच निकलेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. शुक्रवार को उनके साथ-साथ क्यूब मीडिया एंड ब्रांडिग लिमिटेड, मूविंग फिक्सल सहित अन्य कुछ कंपनियों के प्रमुखों को आरोपी बनाया गया है.

48 फर्म जांच के दायरे में

नई सरकार बनने के बाद जनसंपर्क और संवाद के अधिकारियों ने 21 निविदा प्रक्रियाओं के तहत पंजीबद्ध 48 फर्मों और एजेंसियों को जांच के दायरे में रखा था. जिन कंपनियों को जांच के दायरे में रखा गया उनमें मुंबई की बैटर कम्युनिकेशन, एड फैक्टर, टच वुड, 77 इंटरटेनमेंट, एक्सेस माई इंडिया, दिल्ली की वीडियो वॉल, करात इंटरटेनमेंट, ग्रीन कम्युनिकेशन, सिल्वर टच, यूएनडीपी, गुजरात की वॉर रुम, मूविंग फिक्सल, रायपुर की ब्रांड वन, व्यापक इंटरप्राइजेस, क्यूबस मीडिया लिमिटेड, आईबीसी 24, कंसोल इंडिया, भिलाई की कंपनी क्राफ्ट, आसरा शामिल थीं. इसके अलावा आलोक नाम के एक प्रोफेसर ने भी संवाद में अपनी दुकान खोल रखी थी. जबकि क्यूब मीडिया के सीईओ श्री डोढ़ी का कारोबार भी संवाद से ही संचालित हो रहा था. हैरत की बात यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अफसर की पत्नी की जितनी सक्रियता मुख्यमंत्री निवास में बनी हुई थीं उससे कहीं ज्यादा वह संवाद में सक्रिय थीं. अफसर की पत्नी यही से पूर्व मुख्यमंत्री के साथ छत्तीसगढ़ के गरीब बच्चों की तस्वीरों को फेसबुक, वाट्सअप में शेयर करती थी और लिखती थीं- गरीब बच्चों को आशीष दे रहे हैं हमारे बड़े पापा...हम सबके बड़े पापा.

भाजपा के प्रचार का अड्डा बन गया था संवाद

शासन की नीतियों का प्रचार-प्रसार तो अमूमन सभी शासकीय विभाग करते हैं,लेकिन छत्तीसगढ़ के संवाद का दफ्तर भाजपा के प्रचार का अड्डा बन गया था. यहां विभिन्न निजी कंपनियों के लिए कार्यरत कर्मचारी सुबह से लेकर शाम तक सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में यही देखा करते थे कि विपक्ष की कौन सा मैटर ट्रोल हो रहा है. पाठकों को याद होगा कि कंसोल इंडिया से जुड़े कर्मचारियों ने ही सोशल मीडिया में किसानों की कर्ज माफी को लेकर झूठी पोस्ट वायरल की थी. इस निजी कंपनी में एक कद्दावर अफसर की पत्नी का भाई कार्यरत था. वैसे तो इस कंपनी के कई जगहों पर कार्यालय थे लेकिन रायपुर के अंबुजा माल स्थित मुख्य दफ्तर में ही इस कंपनी ने प्रदेश के मूर्धन्य संपादकों, इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को धन बांटा था और उनका वीडियो भी बनाया था. फिलहाल इस दफ्तर में ताला जड़ गया है.

सुपर सीएम का दखल

हालांकि अभी केवल आईएएस टोप्पो पर जुर्म दर्ज किया गया है, लेकिन बताते हैं कि जनसंपर्क विभाग और संवाद में सुपर सीएम की जबरदस्त दखलदांजी कायम थीं. वे हर पल यहीं देखते थे कि मुख्यमंत्री रमन सिंह के चेहरे को कैसे प्रोजेक्ट किया जाए. सीएम को प्रोजक्ट करने के चक्कर में कई बार अन्य मंत्रियों की तस्वीरों को भी हटा दिया जाता था. जनसंपर्क विभाग और संवाद का दफ्तर उनके निर्देशों की पालना में ही लगा रहता था. एक कर्मचारी ने बताया कि जनसंपर्क और संवाद का काम सही आकंड़ों को प्रस्तुत करना है, लेकिन पूरा महकमा जनता के समक्ष झूठ परोसने के काम में ही लगा हुआ था. विभाग के एक कर्मचारी का कहना है कि संवाद ने जिला विकास नाम की जो पुस्तिका प्रकाशित की थीं उसमें सारे के सारे आकंड़े झूठे थे लेकिन सरकार के कामकाज को बेहद विश्वसनीय और अनोखा बताने के लिए कमजोर आकंड़ों को मजबूत बताने की कवायद की गई थीं.

कुछ ऐसे चला खेल

यह कम हैरत की बात नहीं है कि वर्ष 2003 के बाद से जनसंपर्क विभाग कभी भी जनता से सीधा संपर्क नहीं रख पाया। विभाग और उसकी सहयोगी संस्था संवाद में बट्टमार और उठाईगिर जगह बनाने में इसलिए सफल हो गए हैं क्योंकि निजी कंपनियों के लोग अफसरों और कर्मचारियों को बगैर किसी मध्यस्थता के सीधे घर पर जाकर कमीशन देने लगे थे. विभाग के कतिपय लोग यह भी कहते हैं कि कतिपय अफसर शराब और शबाब के शौकीन थे. जिसका फायदा निजी कंपनियों ने जमकर उठाया. इस विभाग में निजी कंपनियों की इंट्री तब सबसे ज्यादा हुई जब वर्ष 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए. गुजरात से यह हवा चली कि मोदी को जिताने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका है. मोदी ने एक टीम बनाकर काम किया और....

सर्वविदित है कि संवाद का काम केवल पब्लिसिटी मैटर क्रियेट करना है, लेकिन मोदी की जीत के बाद निजी कंपनियों को काम देने के लिए विज्ञापन निकाला गया. सबसे पहले मुंबई की एड फैक्टर ने इंट्री ली. यह कंपनी वर्ष 2015 से लेकर 2017 तक सक्रिय रही और इसे प्रत्येक माह लगभग साढ़े पांच लाख रुपए का भुगतान मिलता रहा. इसी कंपनी में कार्यरत तुषार नाम के एक शख्स ने कुछ ही दिनों में वॉर रुम नाम की एक नई संस्था खोली और जनसंपर्क आयुक्त राजेश टोप्पो के साथ मिलकर लंबा खेल खेला.

 

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सियासत में गिरते ग्राफ को बचाने फिल्म मोदी को हिट करवाने हथकंडा

रायपुर. ओमंग कुमार निर्देशित फिल्म पीएम मोदी को हिट करने के लिए एक पार्टी विशेष से जुड़े लोग सिनेमाघरों के मालिकों को पूरे एक हफ्ते की टिकट सुरक्षित रखने के लिए लगातार फोन कर रहे हैं. राजधानी के एक सिनेमाघर के मालिक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब तक सलमान, शाहरुख, आमिर और अक्षय कुमार के फैन्स फिल्म को हिट करवाने के लिए जोर आजमाइश किया करते थे, लेकिन पहली बार एक फ्लाप एक्टर विवेक ओबेरॉय की फिल्म को लेकर गुणा-भाग दिख रहा है. बहरहाल अगर आप एक सामान्य दर्शक है और फिल्म को देखने के बादअपनी कोई राय बनाना चाहते हैं तो आपको थोड़ा इंतजार करना चाहिए. अगर आप हर फिल्म को पहले ही हफ्ते में देखने के शौकीन है तब भी आपको थोड़ी प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि पूरे एक हफ्ते छत्तीसगढ़ के सिनेमाघर.... चौकीदारों से भरे रहने वाले हैं. हर संवाद के साथ अगर आपको मैं भी हूं चौकीदार... मैं भी हूं चौकीदार का शोर सुनाई देगा तो फिल्म देखने का मजा किरकिरा हो सकता है.

चुनाव के समय ही फिल्म क्यों

 यह सौ फीसदी सच है कि पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब पहले जैसी नहीं है. उनका ग्राफ कमजोर हुआ है. वर्ष 2014 में वे हर-हर मोदी... घर-घर मोदी थे, लेकिन इन दिनों अबकी बार... माफ कर यार... की गूंज कुछ ज्यादा ही सुनाई दे रही है. अब जबकि इसी 11 अप्रैल से लोकसभा चुनाव के पहले चरण की शुरूआत हो जाएगी तब ओमांग कुमार निर्देशित फिल्म पीएम मोदी भी रिलीज हो जाएगी. पहले यह फिल्म पांच अप्रैल को सिनेमाघरों में आने वाली थीं, लेकिन चुनाव के समय राजनीतिक दलों की आपत्ति के बाद रिलीज की डेट को लेकर संशय बढ़ गया है. माना जा रहा है कि अब यह फिल्म 12 अप्रैल को प्रदर्शित हो सकती है. अब तक तो यह आम धारणा रही है कि जो फिल्म रिलीज होने के पहले सुर्खिया बटोरती है वह रिलीज होने के बाद पैसे भी बटोरती है, लेकिन ऐसा तब हो पाता है जब दर्शक फिल्म को स्वाभाविक ढंग से स्वीकार कर उसकी माउथ पब्लिसिटी करता है. फिलहाल तो ऐसा मुमकिन नहीं दिख रहा है.  विवेक ओबेरॉय के अभिनय से सजी इस फिल्म का ट्रेलर ही दर्शकों को पसन्द नहीं आ रहा है. फिल्म लाइन को जानने-समझने वालों का मानना है कि चावल के एक दाने को हाथ में लेने के बाद ही यह समझ में आ जाता है कि वह पका है या नहीं. अभी तो ट्रेलर देखकर ही लग रहा है कि फिल्म को मोदी भक्तों के अलावा एक सामान्य दर्शक का प्यार और दुलार नहीं मिलने वाला है. वैसे जब से यह बात प्रचारित हुई है कि फिल्म के एक प्रोड्यूसर आनंद महाराष्ट्र के भाजपा कामर्स सेल के कोषाध्यक्ष भी रहे हैं तब से फिल्म को लेकर और ज्यादा नकारात्मक प्रचार प्रारंभ हो गया है. इस फिल्म के निर्माण के साथ ही यह सवाल उठने लगा था कि फिल्म से जुड़े लोग एक खास एजेंडे के तहत फिल्म बना रहे हैं.

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पुनीत है या अजीत

राजकुमार सोनी

रायपुर. कई हिंदी फिल्मों में शानदार ढंग से खलनायक की भूमिका अदा करने वाले अजीत को भला कौन नहीं जानता है. फिल्मों में अजीत सोने के बिस्कुट की तस्करी करते थे. सिगार पीते थे. लाल-पीली-नीली लाइट और अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित अड्डे में किसी न किसी मोना डार्लिंग से घिरे रहते थे. जब कोई हीरो उनसे दो-दो हाथ करने पहुंचता तो बेहद शालीन ढंग से कहते थे- सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है... और हजरत एक आप ही है जिनसे पहले कभी मुलाकात नहीं हुई. अब आप सोच रहे होंगे कि इस खबर में पुनीत गुप्ता के साथ खलनायक अजीत की तस्वीर का क्या कोई मेल है. दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता को लेकर जो खबरें आ रही है वह खलनायक अजीत के तौर-तरीकों की याद दिला रही है.

पिछले कुछ समय से मीडिया में पुनीत गुप्ता को लेकर कई तरह की खबरें चल रही है. एक खबर आई कि वे वाट्स अप कर देते थे और टेंडर जारी हो जाता था. इस खबर को पढ़कर लगा कि जैसे अजीत ने अपने सहयोगी को दस रुपए का फटा हुआ नोट देकर आदेश दिया हो- राबर्ट... तुम ठीक रात को 12 बजे समुन्दर के पास चले जाना... वहां इस फट्टे नोट का दूसरा हिस्सा मिलेगा. नोट का मिलान करने के बाद सारा सोना लेकर चले आना. पुनीत गुप्ता को लेकर बुधवार को एक दूसरी खबर यह आई है कि वे आयुष विश्वविद्यालय के पैसे पर विदेश गए थे और इस दौरे में उनके साथ कोई महिला भी थीं. महिलाकर्मी ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया है कि वह गुप्ता के साथ गई तो थीं लेकिन निजी खर्चों पर. इधर एक महिला चिकित्सक का दावा है कि पुनीत गुप्ता एक नहीं कई बार विदेश गए थे और हर बार उनके साथ एक-दो महिलाएं अवश्य रहती थीं. खबर में यह भी उल्लेखित है कि डीकेएस में अधीक्षक रहने के दौरान पुनीत गुप्ता ने अपने चैंबर को बेहद हाईटेक बनवाया था. उन्होंने अपने चैंबर के अंदर ही पांच-छह आलमारियां बना रखीं थी. एक ऐसी आलमारी भी थी जिसका बटन उनके पास ही था. जब वे बटन दबाते थे तब आलमारी खुलती थीं और फिर आलमारी के पीछे एक आलीशान कमरा नजर आता था. ( याद आया आपको... ऐसा अजीत की फिल्मों में कई बार होता था. दर्शक कमरे की भव्यता...शराब की बोतलें... कैबरे डांसर... झूमर... मरे हुए शेर की खाल...अनुशासित ढंग से खड़े हुए सिक्युरिटी गार्ड... लप-लप-लीप-लीप करते हुए कैमरों को देखकर भौंचक रह जाता था. )

खैर... सूत्रों के हवाले  से खबर में यह दावा भी किया गया है कि पुनीत गुप्ता के आलमारी के पीछे नजर आने वाले कमरे में सारी सुविधा मौजूद थी. डायनिंग टेबल, फ्रिज, बिस्तर... इतना ही नहीं आरोपी पुनीत गुप्ता जब तक स्वयं नहीं चाहते थे तब तक कोई उनसे मिल भी नहीं सकता था. अपने स्टिंग ऑपरेशन के जरिए कई नामचीन लोगों को बेनकाब करने वाले फिरोज सिद्धकी भी जैसे-तैसे उनसे मिल पाए थे... मगर स्टिंग करने में सफल रहे. हालांकि यह पहले से ही प्रमाणित था पुनीत गुप्ता अंतागढ़ टेपकांड में शामिल हैं, लेकिन अब जाकर यह बात पुष्ट हो रही है कि वे कई बड़े कारनामों के  मास्टर माइंड भी थे. सूत्रों का कहना है कि पुनीत गुप्ता के हाइटेक कमरे में सप्लायर लोकेश शर्मा और प्रसुन सिंह उर्फ मोनू सिंह की बेरोक-टोक आवाजाही थीं. बताते है कि दोनों में से एक सप्लायर लोकेश शर्मा कृषि विभाग में हर तरह के सामानों की सप्लाई का ठेका लेने वाले गिरोह हिस्सा था जबकि मोनू खुद को पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी का रिश्तेदार बताकर सभी काम हथिया लिया करता था. दोनों सप्लायरों से अफसर भय खाते थे. इन्हें पुनीत गुप्ता ने नियम-कानून से परे जाकर उपकृत कर रखा था. डीकेएस के हर छोटे-बड़े काम में इनकी दखल थीं. यहां तक लोगों को नौकरी लगाने में भी. पुनीत गुप्ता के अधीक्षक रहने के दौरान डीकेएस में एचआर के पद पर अमित मिश्रा, सीनियर मार्केटिंग मैंनेजर श्वेता और निकिता जसवानी  को सीनियर ट्रांसप्लांट काउंसलर के तौर पर नियुक्त किया गया था. स्वास्थ्य विभाग ने फिलहाल इनकी नियुक्ति को फर्जी मान लिया है. 

जैसे फिल्मों में अजीत को हीरो के साथ-साथ पुलिस भी खोजती थी, ठीक वैसे ही छत्तीसगढ़ की पुलिस भी पुनीत को खोज रही है. कमबख्त अजीत भी छकाता था... पुनीत भी छका रहा है.

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सोशल मीडिया में जमकर उड़ रहा है रमन सिंह और पुनीत गुप्ता का मजाक

रायपुर. इस खबर के साथ एक तस्वीर चस्पा की गई है. यह तस्वीर वाट्स अप और फेसबुक विश्वविद्यालय के गलियारों में जमकर विचरण कर रही है. आजकल इसी का जमाना है क्योंकि दलाली के चक्कर में अखबार और चैनल वालों ने अपनी विश्वसनीयता दांव पर लगा रखी हैं.सच तो यह है कि अब अखबारों में आप दूसरे दिन वहीं सब कुछ पढ़ने को मजबूर है जो किसी वेबसाइट या सूचना के जरिए सोशल मीडिया के समुन्दर में पहले ही तैर चुकी होती है. खैर... गौर से देखिए... तस्वीर में क्या लिखा है. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के हाथ में फोन हैं, वे पूछ रहे हैं- कहा फरार हो गे हस रे पुनीत...। जवाब में पुनीत गुप्ता कहते हैं- का बताऊं तोर अमन... हमन सबके बाजा बजवा दिस.

सच्चा चौकीदार होने का परिचय दो

विधानसभा चुनाव से पहले अखबार वालों को कई-कई पेज का विज्ञापन मिलता था सो पहले पेज से लेकर अंतिम पेज तक में रमन सिंह की विभिन्न मुद्राओं में तस्वीरें छपा करती थीं. चुनाव हारने के बाद अखबार वालों ने पलटी तो मारी, लेकिन अब भी ऐसा लग रहा है कि सुपर सीएम और कंसोल इंडिया का हैंग ओवर उतरा नहीं है. इस मामले में एक बड़े सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है- पन्द्रह साल से नमक खाने वाले लोगों से आप उम्मीद करेंगे कि वे स्वामी भक्ति छोड़ देंगे तो आप गलत ठहरा दिए जाएंगे. हो सकता है कि सामाजिक कार्यकर्ता का सोचना सही हो. इधर कुछ समय पहले जब डाक्टर रमन सिंह ने अपने नाम के आगे चौकीदार लगाया तो उन्हें जमकर सुर्खियां मिली, लेकिन अब उनके दामाद को लेकर उनकी चौकीदारी पर ही सवाल उठने लगा है. फेसबुक विश्वविद्याल में उमेश केशरवानी ने लिखा है- चौकीदार रमन सिंह को अपने फरार दामाद को सामने लाकर सच्चा चौकीदार होने का परिचय देना चाहिए. सतीश जटवार लिखते हैं- घोटालेबाज और घपलेबाज चौकीदार रमन सिंह के फरार दामाद पुनीत गुप्ता का कुछ पता चलें तो हमें भी बताना. समीर चंद्राकर ने लिखा है- चौकीदार रमन सिंह के चोरहा दामाद फरार हो गे हे. आखिर कहा तक अऊ कब तक भाग बे रे चोरहा. दिनेश नेताम की टिप्पणी है- दमाद बाबू दुलरू कहा लुकागे रे. पुष्कर ने लिखा है- आवश्यकता है- मैं भी चौकीदार कहने वाले सालों की... ताकि वे अपने जीजा पुनीत गुप्ता को पुलिस के हवाले कर सकें.

पुलिस की भूमिका को लेकर भी उठे सवाल

जल-जंगल-जमीन को लेकर आंदोलन करने वाले सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता भी पुनीत गुप्ता की गिरफ्तारी जल्द से जल्द चाहते हैं. अभी चंद रोज पहले दो आरटीआई कार्यकर्ता नेहरु दुतकामड़ी और राकेश कौशिक ने दुर्ग के कलक्टर परिसर में सत्याग्रह किया था. इन दोनों का वीडियो भी जमकर वायरल हुआ. दोनों कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर कोई साधारण आदमी पचास करोड़ का घपला करता तो पुलिस उसे तुरन्त जेल भेज देती, लेकिन पुलिस डाक्टर रमन सिंह के दामाद को गिरफ्तार करने से घबरा रही है. प्रसिद्ध एक्टिविस्ट अनिल अग्रवाल ने अपने फेसबुक में एक के बाद एक कई पोस्ट शेयर की है. अनिल ने लिखा है- पत्रकार विनोद वर्मा को पकड़ने में पुलिस ने जो मुस्तैदी दिखाई थीं वैसी मुस्तैदी अब क्यों नहीं दिखा रही है. क्या पुलिस पुनीत गुप्ता को जमानत का अवसर देकर बचाना चाहती है. अपनी एक पोस्ट में उन्होंने रायपुर के पुलिस अधीक्षक को भी चुनौती दे डाली है. अनिल ने इस पोस्ट में लिखा है- अगर मुझे एक घंटे के लिए रायपुर का पुलिस अधीक्षक बना दिया जाएगा तो पुनीत गुप्ता जेल की सलाखों के पीछे होगा.

पहिली तोर दामाद ला तो...

मजे की बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह ने जनता के सवालों का जवाब देने के लिए शनिवार को फेसबुक पर मौजूद थे. फेसबुक में वे ज्यादातर समय नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहे तो टिप्पणियों में लोग उनके मुख्यमंत्रित्व काल के घपले-घोटालों और अनियमिताओं को लेकर सवाल उठाते रहे. ( आज के अखबारों में शायद इन टिप्पणियों का उल्लेख नहीं होगा. ) कुछ लोगों ने यहां भी उनके दामाद को घेरा है. लोधी धर्मराज ने पूछा - आपका दामाद कहां भागा है. नीतेश पत्रकार का सवाल है- आपके दामाद पर जो आरोप है उस पर आपका क्या कहना है. रविंद्र  का कमेंट है- पहिली तोर दामाद ला तो छोछ के ला.

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देश के सीने पर चुभ रही है मोदी की सफेद दाढ़ी

 

राजकुमार सोनी

 

पहले वे आए कम्युनिस्टों के लिए

और मैं कुछ नहीं बोला

क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था.

फिर वे आए ट्रेड यूनियन वालों के लिए

और मैं कुछ नहीं बोला

क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था.

फिर वे आए यहूदियों के लिए

और मैं कुछ नहीं बोला

क्योंकि मैं यहूदी नहीं था.

फिर वे मेरे लिए आए

और तब तक कोई नहीं बचा था

जो मेरे लिए बोलता.

 

मोदी  ने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में जिस ढंग से मानवाधिकार संगठनों, कार्यकर्ताओं और संवैधानिक संस्थाओं को कुचलने का काम किया है उसके बाद हिटलर के शासनकाल के एक कवि और फासीवादी विरोधी कार्यकर्ता पास्टर निमोलर की यह कविता बरबस याद आती है. देश अब लोकसभा का चुनाव देखने को तैयार है. इस बार भाजपा की यह पूरी कोशिश होगी कि उसका वोटर राम नाम की माला जपते हुए उसका बेड़ा पार लगा दें, लेकिन सरकार की कारगुजारियों से इतना संकेत तो मिलता ही है कि अब की बार... मोदी सरकार का नारा अब की बार... माफ कर दो यार में बदल सकता है. हालांकि मोदी भक्तों का संसार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है. मोदी को कण-कण में भगवान जैसा मानने वाले मूढ़ भक्तों को लगता है कि यदि देश को मुसलमानों से बचाना है तो मोदी को लाना जरूरी है. उनको लगता है कि देश की सरहद पर मजदूर और किसान के बेटे नहीं ब्लकि मोदी का विचार एक सैनिक ( रक्षा कवच ) बनकर तैनात है और मोदी देश को सर्जिकल स्ट्राइक में झोंककर सुरक्षित रखे हुए हैं. मोदी की दुनिया को सर्वव्यापी बताने वाले विचारक यह मानने को तैयार ही नहीं है कि तिलिस्म टूट चुका है और मोदी अब एक ऐसी ढलान पर है जहां से उन्हें नीचे और नीचे ही उतरते जाना है.

बहरहाल अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में मोदी ने जितनी ज्यादा बार झूठ का सहारा लिया है उससे कहीं ज्यादा बार उन्होंने अपनी हत्यारी करतूतों से लेखकों, पत्रकारों, कवियों, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराया-धमकाया है. उनके भक्त गंदे तरीके से यह बात प्रचारित करते हैं कि मुसलमान देश को डराने के लिए दाढ़ी रखते हैं, लेकिन वे कभी नहीं कहते कि मोदी की झक सफेद दाढ़ी का एक-एक बाल आवाम और अभिव्यक्ति की छाती पर भद्दे तरीके से चूभता रहा है और अब भी चूभ ही रहा है. यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद देश को एक नए तरह के आपातकाल से गुजरना पड़ा है और यह भयावह स्थिति शायद हथकंड़ों के जरिए चुनाव के परिणामों तक बरकरार रहने वाली है.

यह कैसा राष्ट्रवाद

मोदी सरकार और उनके अनन्य भक्तों ने एक नए तरह के राष्ट्रवाद को जन्म दे रखा है. भक्त मानते हैं कि अगर कोई मुसलमान गाय को घूर लें तो गाय अपवित्र हो जाती है. और कोई हाथ फेरता हुआ पकड़ा जाए तो फिर उसकी खैर ही नहीं.अभी हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक रिपोर्ट जारी की है जो आंख खोलने वाली है. इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि मोदी सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों को रोकने और उनकी जांच को लेकर पूरी तरह से नाकाम रही है. वर्ष 2017 में कतिपय कट्टरपंथियों ने जानबूझकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बारे में यह अफवाह फैलाई थीं कि वे गायों को खरीदते-बेचते हैं और फिर उन्हें मार देते हैं. इस अफवाह का नतीजा यह हुआ कि अल्पसंख्यकों को जानलेवा हमले का शिकार होना पड़ा. वर्ष 2017 में देशभर में 38 से ज्यादा हमले हुए जिसमें दस लोग मारे गए. ह्यूमन राइट्स वॉच' का यह भी आरोप है कि सत्ताधारी दल भाजपा के कई नेताओं ने भारतीयों के बुनियादी अधिकारों की कीमत पर केवल हिंदू ही श्रेष्ठ हैं के एजेंडे पर काम किया और एक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जिसमें हिंसा का स्थान महत्वपूर्ण हो गया.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने 90 से ज़्यादा देशों में मानवाधिकारों की स्थिति का जायजा लेते हुए अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता के अधिकार के हनन और क़ानून व्यवस्था लागू करने के नाम पर भारत में इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के चलन का मुद्दा भी उठाया है. रिपोर्ट बताती है कि राज्य सरकारों ने हिंसा या सामाजिक तनाव रोकने की आड़ लेकर इंटरनेंट बंद करने सहारा लिया है ताकि क़ानून व्यवस्था को कायम रखा जा सके. इंटरनेट सेवाओं को ठप करने की सबसे खराब स्थिति जम्मू और कश्मीर में बताई गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता और अभिव्यक्ति की आजादी  के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों का दर्जा दिया था, लेकिन धरातल पर ऐसा नजर नहीं आया बल्कि हुआ यूं कि दमनकारी सरकारी नीतियों की आलोचना करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, कवियों, पत्रकारों को आपराधिक मानहानि और राजद्रोह जैसे मामलों का सामना करना पड़ा.

 

देशभर में सबसे ज्यादा बुरी स्थिति छत्तीसगढ़ की रही हैं. अब तो यहां कांग्रेस सत्तासीन है, लेकिन जब भाजपा की सरकार थीं तो उसने चुन-चुनकर पत्रकारों को निशाना बनाया. भाजपा ने कार्पोरेट जगत के अखबार मालिकों को तो बख्श दिया, लेकिन उनके यहां कार्यरत पत्रकार जेल में ठूंसे गए या फिर नौकरी से हकाल दिए गए. सत्ता के आगे मालिकों की घुटना टेक नीति के चलते छोटे-बड़े सभी तरह के पत्रकारों को रोजी-रोटी का संकट झेलने को भी विवश होना पड़ा. सर्वाधिक प्रताड़ना माओवाद प्रभावित बस्तर के पत्रकारों को झेलनी  पड़ी. इसके अलावा सरकार की नीतियों के खिलाफ असहमति व्यक्त करने वाले सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सीधे पर माओवादी घोषित किए गए. बच्चों के कुपोषण के खिलाफ काम करने वाले डाक्टर विनायक सेन माओवादियों के शहरी नेटवर्क का हिस्सा होने के आरोप में लंबे समय तक जेल में बंद रहे. पिछले साल 29 अगस्त को देश भर छापे डाले गए. छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के अधिकारों को लेकर कार्यरत रही नामी अधिवक्ता सुधा भारद्वाज सहित अन्य पांच प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ने यह दर्शाया कि मोदी जरूरत से ज्यादा डरे हुए हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जिस  ढंग से प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में शामिल होना बताया गया उससे हुआ कि पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां किसी न किसी बहाने जन आंदोलन से जुड़े लोगों को जेल के सींखचों के पीछे धकेलकर विरोध के स्वर को कुचलना चाहती है.

 

फिलहाल तो सरकार असहमति रखने वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाना आम बात हो गई है. दलितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को माओवादी कहकर जेल में डाल देने की प्रवृत्ति अब भी बरकरार है. जब अदालतें हस्तक्षेप करती हैं, तभी पीड़ित और प्रताड़ित लोगों को कुछ उम्मीद बंधती है, लेकिन अब अदालतों में न्यायाधीशों की चीख-पुकार भी सामने आने लगी है. पिछले दिनों देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की चीख-पुकार एक पत्रकार वार्ता के जरिए सामने आई थी.

 

यहां यह बताना लाजिमी है कि केंद्र में जिसकी भी सरकार होती है विपक्ष उसकी सीबीआई को तोता कहता रहा है. बात तोता और मैना तो ठीक थीं, लेकिन मोदी सरकार के साढ़े चार सालों के कार्यकाल में पहली सीबीआई के दो शीर्ष अफसर आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश आस्थाना के बीच अभूतपूर्व झगड़े की गूंज देशभर में सुनाई दी. इस झगड़े से राष्ट्रीय जांच एजेंसी छवि को काफी नुकसान पहुंचा. दोनों अफसरों के बीच झगड़े की शुरूआत 2017 में हुई थी जब वर्मा ने कुछ अफसरों को एजेंसी में शामिल करने की सिफारिश की अस्थाना को नई तैनाती पर आपत्ति थीं. यह झगड़ा जब बढ़ गया तो केंद्र का दखल साफ तौर पर दिखने लगा. रात के अंधेरे में कार्रवाई होने लगी. सीबीआई में जो कुछ हुआ उसे पूरे देश ने देखा. इस झगड़े के बीच सोशल मीडिया में एक टिप्पणी काफी मजेदार ढंग से लोकप्रिय हुई. हालांकि यह महज टिप्पणी है, लेकिन इसे पढ़कर लगता है कि निजी चैनल में दिखाए जाने वाले क्राइम पेट्रोल की एक नहीं ब्लकि दस-बीस स्टोरी अकेले सीबीआई को लेकर ही बनाई जा सकती है.

 

टिप्पणी कुछ इस तरह की है- वर्मा अस्थाना के खिलाफ हैं, अस्थाना वर्मा के खिलाफ हैं, अस्थाना शर्मा के भी खिलाफ हैं, शर्मा भी अस्थाना के खिलाफ हैं, वर्मा राव के खिलाफ हैं, राव बस्सी के खिलाफ हैं, बस्सी अस्थाना के खिलाफ हैं. यह भी देखो कि प्रधानंमत्री किसके साथ हैं और भाजपा अध्यक्ष किसके साथ हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसके साथ हैं और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव किसका साथ दे रहे हैं, वित्त मंत्री किसके साथ हैं और कैबिनेट सचिव किसके पक्ष में हैं.

 

जो भी हो... अभी तो देश का लोकतंत्र निलंबित है.

 

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार ने एक नारा दिया है- छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र बहाल हो गया है. उम्मीद करनी चाहिए कि देश में भी लोकतंत्र निलंबित नहीं  रहेगा.

 

 

 

 

 

 

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जिस मॉडल की हत्या हुई उसके निकट थे भारतीय वन सेवा के 19 अफसर

रायपुर. वन विभाग के एक रेंजर उदय सिंह ठाकुर की करीबी रही आंचल यादव की हत्या के बाद पुलिस को तफ्तीश के दौरान कई सनसनीखेज जानकारी मिली है. पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी के निर्देश के बाद बालोद पुलिस अधीक्षक एमएल कोटवानी की अगुवाई में गठित टीम ने बुधवार को रायपुर स्थित फ्लावर वैली में आंचल के घर पर छापामार कार्रवाई में कई आपत्तिजनक सामाग्री बरामद की है. पुलिस ने एक लैपटॉप, चार पैन ड्राइव, एक हार्डडिस्क सहित कई तरह की सीडी और कम उम्र की लड़कियों की अश्लील तस्वीरों की जप्ती बनाई है. इन लड़कियों के साथ रायपुर शहर के कई रसूखदार घरानों के लड़कों की तस्वीरें भी है. इसके अलावा पुलिस को भारतीय वन सेवा के 19 ऐसे अफसरों के बारे में भी पता चला है जो आंचल के संपर्क में थे. पुलिस को विनय विपिन बिहारी नाम के एक ऐसे कोयला कारोबारी के बारे में भी जानकारी मिली है जिसने आंचल को फ्लावर वैली में मकान दिलवाया था. बताते हैं कि यह कोयला कारोबारी आंचल के घर नियमित रुप से आया- जाया करता था.

मूल रुप से धमतरी की रहने वाली आंचल वैसे तो एक साधारण परिवार से हैं, लेकिन पैसों की चमक-दमक और ऐशो-आराम की जिंदगी ने उसे बेहद हाईप्रोफाइल बना दिया था. वह पहली बार सुर्खियों में तब आई जब उसने धमतरी के एक रेंजर उदय सिंह ठाकुर के साथ खुद की आपत्तिजनक तस्वीरों को सार्वजनिक किया. आंचल का आरोप था कि उदय ठाकुर लंबे समय से उसका शारीरिक शोषण कर रहा था. पुलिस ने तब आंचल की शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाय उदय सिंह की रिपोर्ट को तव्वजो दी थीं और उसे ढाई महीने जेल में रहना पड़ा था. अभी चंद रोज पहले जब उसकी हत्या हुई तब वह धमतरी में थीं. पुलिस को शक है कि कुछ लोग धमतरी से ही उसका अपहरण कर बालोद ले गए थे और गुरुर नहर में उसे मारकर फेंक दिया गया. बहराल पुलिस जप्त किए लैपटॉप, पैन ड्राइव की जांच कर रही है. पुलिस ने घटना के बाद जो मोबाइल जप्त किया है उसमें कई रसूखदार लोगों का मैसेज भी है.

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